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विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले गैर-लाभकारी संस्थानों पर सख्ती

  • 17 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम

मेन्स के लिये 

विदेशी अंशदान के दुरुपयोग पर नियंत्रण, COVID-19 से निपटने में गैर-लाभकारी संस्थानों की भूमिका   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश में ‘विदेशी अंशदान लाइसेंस’ (Foreign Contribution Licence) वाले सभी गैर-लाभकारी संस्थानों (Nonprofit Organisations) को COVID-19 से निपटने में उनके योगदान की जानकारी प्रति माह सरकार के साथ साझा करने को कहा है।

मुख्य बिंदु:  

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 7 अप्रैल, 2020 को दी गई जानकारी के अनुसार, देश में ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’ (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA), 2010 के तहत विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले गैर-लाभकारी संस्थानों को हर महीने की 15 तारीख तक एक ऑनलाइन फॉर्म के माध्यम से COVID-19 से निपटने में उनके योगदान की जानकारी सरकार के साथ साझा करनी होगी।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश में कार्य कर रहे गैर-लाभकारी संस्थानों को COVID-19 के नियंत्रण के संबंध में भेजा गया यह दूसरा पत्र था।
  • इससे पहले भेजे गए पत्र में MHA ने गैर-लाभकारी संस्थानों से COVID-19 के नियंत्रण में सरकार और स्थानीय प्रशासन का सहयोग करने का आग्रह किया था।
  • इस पत्र में MHA ऐसे कई क्षेत्रों का उल्लेख किया था जिनमें गैर-लाभकारी संस्थान अपना सहयोग दे सकते हैं, जैसे- प्रवासी मज़दूरों और बेघर लोगों के लिये सामुदायिक रसोई की स्थापना, बेघर दिहाड़ी मज़दूरों और गरीबों के लिये आश्रय का प्रबंध करना आदि। 
  • ध्यातव्य है कि सरकार की तरफ से गैर-लाभकारी संस्थान से सहयोग के आग्रह के पहले हाल ही सरकार ने सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत संस्थानों पर कठोर कार्यवाही की थी। साथ ही पिछले कुछ वर्षों में गैर-लाभकारी संस्थानों को विदेशों से प्राप्त होने वाले अंशदान में भारी गिरावट देखी गई है।    

गैर-लाभकारी संस्थानों पर सरकार की कार्रवाई: 

  • पिछले पाँच वर्षों में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश में  लगभग 14500 NGOs का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है।     
  • साथ पिछले तीन वर्षों में FCRA के प्रावधानों का उल्लंघन करने के कारण 6600 से अधिक गैर-लाभकारी संस्थाओं के विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है।  
  • पिछले वर्ष संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा राज्यसभा को दी गई जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान FCRA के तहत पंजीकृत NGOs को कुल 2244.77 करोड़ रुपए (28 नवंबर तक) विदेशी योगदान के रूप में प्राप्त हुआ जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में NGOs  को प्राप्त कुल अंशदान 16,902.41 करोड़ रुपए था। 

गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान: 

  • गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान को सामान्यतः एनजीओ (NGO) के नाम से जाना जाता है। NGO ऐसे संगठन होते है जो न तो सरकार का हिस्सा होते हैं और न ही वे अन्य व्यावसायिक संस्थानों की तरह लाभ के उद्देश्य से कार्य करते हैं। 
  • ये संस्थान धर्मार्थ कार्यों के तहत शिक्षा, चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
  • भारत में ‘धार्मिक विन्यास अधिनियम, 1863’, सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882’ आदि के तहत NGOs का पंजीकरण किया जाता है। 
  • NGOs को विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लिये ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’, 2010 के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है।
  • विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन नियम, 2012 के अनुसार, FCRA के तहत पंजीकरण के बगैर NGO 25,000 से अधिक आर्थिक सहायता या कोई अन्य विदेशी अंशदान नहीं स्वीकार कर सकते।          

विदेशी अंशदान/योगदान:  

  • FCRA, 2010 के तहत किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी विदेशी स्रोत से उपहार के रूप में प्राप्त कोई वस्तु, मुद्रा या प्रतिभूतियों को विदेशी अंशदान के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • हालाँकि भारतीय नागरिकता धारक अनिवासी भारतीयों ('Non-resident Indians- NRI) द्वारा प्राप्त अंशदान को विदेशी अंशदान नहीं माना गया है।   

आगे की राह: 

  • गृह मंत्रालय के आदेश के बाद गैर-लाभकारी संस्थान को COVID-19 से निपटने के लिये प्राप्त होने वाले विदेशी अंशदानों की बेहतर निगरानी सुनिश्चित की जा सकेगी परंतु  इससे इन संस्थाओं पर अनावश्यक दबाव बढ़ सकता है।
  • वर्तमान में भारत जैसे विशाल देश में सरकार के लिये सुदूर क्षेत्रों तक COVID-19 के नियंत्रण हेतु आवश्यक सहायता उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है, ऐसे में  गैर-लाभकारी संस्थान इस बीमारी से लड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • सरकार के द्वारा स्थानीय स्तर पर मूलभूत सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये NGOs और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर कार्य करने से इस बीमारी के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।     

स्रोत: द हिंदू

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