भारतीय अर्थव्यवस्था
ऋण अधिस्थगन के प्रभावों के आकलन हेतु विशेष समिति
- 11 Sep 2020
- 5 min read
प्रिलिम्स के लियेकोरोना वायरस महामारी से निपटने से किये गए विभिन्न उपाय मेन्स के लियेऋण स्थगन के प्रभाव और इसकी आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र घोषित छह महीने की अधिस्थगन अवधि (Moratorium Period) के दौरान ऋण पर ब्याज और उपचित ब्याज (Interest Accrued) पर ब्याज में छूट देने के आर्थिक प्रभावों का आकलन करने के लिये तीन-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।
- उपचित ब्याज (Interest Accrued) ऋण से प्राप्त होने वाली ब्याज की वह राशि होती है, जिसे अभी तक एकत्र नहीं किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) राजीव महर्षि की अध्यक्षता में गठित यह तीन-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता पर ऋण अधिस्थगन अवधि के दौरान ब्याज़ पर छूट देने के आर्थिक प्रभावों की समीक्षा करेगी।
- पूर्व CAG राजीव महर्षि के अलावा इस समिति में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति के पूर्व सदस्य रविंद्र एच. ढोलकिया और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) तथा आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के पूर्व प्रबंध निदेशक बी. श्रीराम को भी शामिल किया गया है।
- वित्त मंत्रालय द्वारा गठित यह समिति बैंकों तथा अन्य हितधारकों से विचार-विमर्श कर एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी
समिति के विचारार्थ विषय
- भारतीय अर्थव्यवस्था और देश की वित्तीय स्थिरता पर कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से संबंधित ऋण स्थगन के तहत दी गई छूट के प्रभावों का आकलन करना।
- समाज के विभिन्न वर्गों पर वित्तीय दबाव को कम करने हेतु आवश्यक उपाय अपनाने का सुझाव देना।
पृष्ठभूमि
- ध्यातव्य है कि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए 27 मार्च, 2020 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों द्वारा दिये गए ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के अस्थायी स्थगन की घोषणा की थी, इस अवधि को बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया था।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा घोषित इस कदम का प्राथमिक उद्देश्य महामारी के दौरान उधारकर्त्ताओं को राहत प्रदान करना था, जिसके लिये इसके तहत ब्याज की राशि और मूल राशि दोनों को कवर किया गया था।
- ऋण स्थगन को किसी भी प्रकार से ऋण माफी के रूप में नहीं देखा जा सकता है और न ही इसके तहत ब्याज भुगतान पर कोई स्थायी छूट दी जाती है, किंतु यह तनावग्रस्त ग्राहकों को अपने खातों को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में परिवर्तित हुए बिना या उनके क्रेडिट स्कोर को प्रभावित किये बिना ऋण और ब्याज चुकाने के लिये अतिरिक्त समय प्रदान करता है।
ऋण स्थगन का प्रभाव
- उधारकर्त्ताओं के लिये: देश भर में लागू किये गए लॉकडाउन के कारण देश के अधिकांश उद्योगों और व्यवसायों की आय में भारी गिरावट देखी गई थी, जिसके कारण उनके लिये ऋण का पुनर्भुगतान करना काफी मुश्किल हो गया था। इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा घोषित ऋण स्थगन अवधि के कारण न केवल उधारकर्त्ताओं को राहत मिली है, बल्कि इससे बैंकों के NPA में वृद्धि की संभावना को भी कम किया गया है।
- बैंकों के लिये: रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित ऋण स्थगन ने कारण बैंकों और ऋण संस्थानों के नकदी प्रवाह को प्रभावित किया है, कोई RBI की घोषणा के कारण बैंकों को तकरीबन छह माह तक किसी भी प्रकार का भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है, हालाँकि रिज़र्व बैंक ने यह घोषणा करते हुए बैंकों के लिये नकद आरक्षित अनुपात (CRR) की आवश्यकता को कम कर दिया था, जिसके कारण बैंकों को अतिरिक्त तरलता प्राप्त हुई थी।
- प्रत्येक बैंक को अपने कुल कैश रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात (CRR) कहा जाता है।