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जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक मीथेन आकलन: मीथेन उत्सर्जन कम करने के लाभ और लागत

  • 10 May 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक मीथेन आकलन: मीथेन उत्सर्जन कम करने के लाभ और लागत (Global Methane Assessment: Benefits and Costs of Mitigating Methane Emission) नामक एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि विश्व को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से बचने के लिये अपने मीथेन उत्सर्जन में अत्यधिक कटौती करने की आवश्यकता है।

मीथेन

मीथेन के विषय में:

  • मीथेन गैस पृथ्वी के वायुमंडल में कम मात्रा में पाई जाती है। यह सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) शामिल होते हैं। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है। यह एक ज्वलनशील गैस है जिसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थ के टूटने या क्षय से होता है। इसे आर्द्रभूमियों, मवेशियों, धान के खेत जैसे प्राकृतिक और कृत्रिम माध्यमों द्वारा वातावरण में उत्सर्जित किया जाता है।

मीथेन का प्रभाव:

  • मीथेन कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली गैस है और यह वायुमंडल में लंबे समय तक नहीं रहती है। इसके उत्सर्जन को अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में कम करके ग्लोबल वार्मिंग को ज़्यादा कम किया जा सकता है।
  • यह जमीनी स्तर के ओज़ोन (Ozone) को खतरनाक वायु प्रदूषक बनाने के लिये ज़िम्मेदार है।

प्रमुख बिंदु

वर्तमान स्थिति:

  • वर्ष 1980 के दशक के बाद से मानव-निर्मित मीथेन का उत्सर्जन किसी अन्य समय की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरा है। हालाँकि वातावरण में मीथेन पिछले वर्ष रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया था।
  • यह चिंता का कारण है क्योंकि यह पूर्व-औद्योगिक समय से लगभग 30% ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार था।

मीथेन उत्सर्जन को इसके प्रमुख स्रोतों से कम करना:

  • जीवाश्म ईंधन:
    • कुल मीथेन उत्सर्जन में तेल और गैस निष्कर्षण, प्रसंस्करण तथा वितरण जैसे जीवाश्म ईंधन क्षेत्र 23% तक ज़िम्मेदार है। कोयला खनन से मीथेन उत्सर्जन 12% तक होता है।
    • जीवाश्म ईंधन उद्योग के पास कम लागत वाली मीथेन कटौती की सबसे बड़ी क्षमता है, तेल और गैस उद्योग में 80% तक उपायों को नकारात्मक या कम लागत पर लागू किया जा सकता था।
    • इस क्षेत्र में लगभग 60% मीथेन कटौती आर्थिक रूप से लाभदायक हो सकती है क्योंकि इसके रिसाव को कम करने से बिक्री हेतु अधिक गैस उपलब्ध होगी।
  • अपशिष्ट:
    • अपशिष्ट क्षेत्र में लगभग 20% उत्सर्जन लैंडफिल और अपशिष्ट जल से होता है।
    • अपशिष्ट क्षेत्र पूरे विश्व में सीवेज के निपटान में सुधार करके मीथेन उत्सर्जन में कटौती कर सकता है।
  • कृषि:
    • कुल मीथेन उत्सर्जन में पशुओं के अपशिष्ट से बने खाद और आंत्र किण्वन का लगभग 32% और धान की खेती का 8% हिस्सा है।
    • अगले कुछ दशकों में प्रति वर्ष 65-80 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन को कम करने में खाद्य अपशिष्ट और नुकसान को कम करना, पशुधन प्रबंधन में सुधार तथा स्वस्थ आहार को अपनाना ये तीन व्यवहार परिवर्तन मदद कर सकते हैं।

क्षेत्र-वार उत्सर्जन में कमी :

  • यूरोप:
    • यहाँ खेती से मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की बड़ी संभावना है साथ ही जीवाश्म ईंधन संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन में भी यह क्षमता है।
      • यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय संघ मीथेन रणनीति (European Union Methane Strategy) को अपनाया था।
  • भारत:
    • यहाँ अपशिष्ट क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की सबसे बड़ी क्षमता है।
  • चीन:
    • मीथेन शमन क्षमता कोयला उत्पादन और पशुधन में सबसे अच्छी थी।
  • अफ्रीका:
    • यहाँ के पशुधन में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की क्षमता सबसे अधिक है, इसके बाद तेल और गैस क्षेत्र हैं।

आवश्यकता और लाभ:

  • जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिये मानव जनित मीथेन उत्सर्जन में 45% की कटौती की जानी चाहिये।
  • इस तरह की कटौती से वर्ष 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग में 0.3 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि को रोका जा सकेगा। यह वार्षिक रूप से समय से पूर्व होने वाली 260,000 लाख मौतों,  7,75,000 लाख अस्थमा से संबंधित मरीज़ों के साथ-साथ 25 मिलियन टन फसल के नुकसान को भी रोक सकता है।
  • मीथेन उत्सर्जन में कटौती से निकट भविष्य में वार्मिंग की दर में तेज़ी से कमी आ सकती है।

इस संदर्भ में भारत की पहलें:

समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा:

  • सेंट्रल साल्ट एंड मरीन केमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Salt & Marine Chemical Research Institute) ने देश के तीन प्रमुख संस्थानों के साथ मिलकर एक समुद्री शैवाल आधारित पशु आहार विकसित किया है, जिसका उद्देश्य मवेशियों से मीथेन उत्सर्जन कम करना है और मवेशियों तथा मुर्गी पालन में प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना है।

भारत का ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम:

  • इंडिया GHG कार्यक्रम डब्ल्यूआरआई इंडिया (WRI India- गैर लाभकारी संगठन), कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के नेतृत्व में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने और प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग-नेतृत्व वाली स्वैच्छिक रूपरेखा है।
  • यह कार्यक्रम उत्सर्जन को कम करने और भारत में अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी और टिकाऊ व्यवसायों तथा संगठनों को चलाने के लिये व्यापक माप एवं प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change) वर्ष 2008 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा निपटने के विषय में जागरूकता पैदा करना है।

भारत स्टेज-VI मानक:

जलवायु और स्वच्छ वायु संघ

  • इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया था। यह जलवायु की रक्षा और वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु प्रतिबद्ध सरकारों, अंतर सरकारी संगठनों, व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थानों तथा नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है।
    • भारत इस संघ का सदस्य है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

शुरुआत:

  • यह 5 जून, 1972 को स्थापित एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।

कार्य:

  • यह विश्व स्तर पर पर्यावरणीय कार्यक्रमों को तैयार करता है, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करता है।

प्रमुख रिपोर्ट:

प्रमुख अभियान:

मुख्यालय:

  • नैरोबी, केन्या।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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