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लैंड स्क्वीज़ का वैश्विक प्रभाव

  • 23 May 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों का अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-खाद्य), राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)  2013, सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA)

मेन्स के लिये:

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-खाद्य) की रिपोर्ट, भारत में भूमि उपयोग, लैंड स्क्वीज़ और खाद्य असुरक्षा के मुद्दे से निपटने के लिये भारत की पहल से लैंड स्क्वीज़ के संबंध में मुख्य बातें

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

सतत् खाद्य प्रणालियों पर विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPES-फूड) द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में अभूतपूर्व 'लैंड स्क्वीज़' पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे किसानों और खाद्य उत्पादन को खतरा है।

  • भूमि संकुचन से तात्पर्य उस स्थिति से है, जहाँ विभिन्न प्रयोजनों (कृषि, शहरीकरण, बुनियादी ढाँचे आदि) के लिये भूमि की मांग उपलब्ध कृषि योग्य भूमि से अधिक हो जाती है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • इस रिपोर्ट में भूमि की बढ़ती कीमतों, भूमि पर कब्ज़ा करने और कार्बन योजनाओं के कारण प्रचलित "लैंड स्क्वीज़" की चेतावनी दी गई है, जिससे किसानों एवं खाद्य उत्पादन को जोखिम हो सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर, विश्व के सबसे बड़े फार्मों में से शीर्ष 1% अब विश्व की 70% कृषि योग्य भूमि को नियंत्रित करते हैं।
    • जैसे-जैसे भूमि दुर्लभ हो जाती है, वैसे इसे कृषि भूमि से अन्य उपयोगों में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे खाद्य उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
  • वर्ष 2008-2022 के मध्य वैश्विक स्तर पर भूमि की कीमतें दोगुनी हो गई हैं।
    • इस दौरान सर्वाधिक वृद्धि विशेष रूप से मध्य-पूर्वी यूरोप में देखी गई है, जहाँ कीमतों में तीन गुना तक वृद्धि हुई।
  • पर्यावरण को आधार बनाकर "ग्रीन ग्रैब्स" के रूप में भूमि अधिग्रहण हो रहा है, अब बड़े स्तर पर होने वाले भूमि अधिग्रहण में इसकी लगभग 20% हिस्सेदारी है।
    • ग्रीन ग्रैबिंग का तात्पर्य पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिये भूमि और संसाधनों के बड़े पैमाने पर अधिग्रहण या नियंत्रण से है, जिसके अक्सर नकारात्मक सामाजिक तथा आर्थिक परिणाम होते हैं। यह मूलतः पर्यावरण संरक्षण को आधार बनाकर भूमि पर किये गए कब्ज़े से संबंधित है।
  • कार्बन पृथक्करण परियोजनाओं के लिये सरकारों द्वारा नामित कुल भूमि में से आधी से अधिक से छोटे स्तर के किसानों एवं स्थानीय लोगों की आजीविका के संबंध में संभावित जोखिम बना हुआ है।
    • अगले 7 वर्षों में कार्बन ऑफसेट बाज़ार के चार गुना होने की उम्मीद है।

Global_State_of_Land_Inequality

Reasons_of_Land_Squeeze

भूमि अधिग्रहण के पीछे मुख्य कारण क्या हैं?

  • अवैध अधिग्रहण: 
    • सरकारों, निगमों और सट्टेबाजों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण से किसान और मूलनिवासी समुदाय विस्थापित हो रहे हैं।
    • ये अधिग्रहण मुख्यतः संसाधन निष्कर्षण (खनन, लकड़ी कटाई) या निर्यातोन्मुख कृषि के लिये होते हैं।
  • बढ़ती जनसंख्या और मांगें:
    • बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के साथ-साथ भोजन, चारा, फाइबर और ईंधन की भारी मांग के कारण भूमि की उपलब्धता पर व्यापक दबाव पड़ रहा है।
  • वैश्विक खाद्य उत्पादन प्रणालियों में बदलाव:
    • इसमें भूमि के बड़े क्षेत्रों को औद्योगिक कृषि जैसे कि संकेन्द्रित पशु आहार प्रचालन (Concentrated Animal Feeding Operations- CAFO) और एकल कृषि पद्धतियों के लिये स्थानांतरित करना शामिल है।
      • औद्योगिक कृषि फसलों और पशुओं का बड़े पैमाने पर, गहन उत्पादन है, जिसमें अक्सर फसलों पर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और पशुओं पर एंटीबायोटिक दवाओं का हानिकारक प्रयोग शामिल होता है।
    • इसके अलावा, जैव ईंधन और अन्य गैर-खाद्य उपयोगों के लिये भूमि की मांग में वृद्धि हुई है।

भारत में भूमि उपयोग की क्या स्थिति है?

Land use in India

लैंड स्क्वीज़ और खाद्य असुरक्षा के मुद्दे से निपटने के लिये भारत की पहल:

लैंड स्क्वीज़ के प्रमुख प्रभाव क्या हैं? 

  • किसानों एवं ग्रामीण समुदायों के लिये पहुँच और नियंत्रण में कमी:
    • विस्थापन और निर्वासन: भूमि कब्ज़ा और अन्य दबाव छोटे स्तर के किसानों तथा स्वदेशी समुदायों को उनकी भूमि से वंचित कर देते हैं, जिससे उनकी आजीविका व जीवन के पारंपरिक तौर-तरीके बाधित होते हैं।
    • खाद्य सुरक्षा को खतरा: खाद्य उत्पादन के लिये कम भूमि उपलब्ध होने से, समग्र खाद्य सुरक्षा, (खासकर स्थानीय समुदायों के लिये) खतरे में पड़ जाती है।
    • मोलभाव करने की शक्ति: भूमि स्वामित्व का नुकसान किसानों को शक्तिशाली कृषि व्यवसायों से अपने उत्पादों के लिये उचित कीमतों पर मोलभाव करने में असमर्थ बनाता है।
    • निर्धनता में वृद्धि: भूमि तक सीमित पहुँच ग्रामीण जनसंख्या के लिये अवसरों को प्रतिबंधित करती है, जिससे वे निर्धनता के दुष्चक्र में फँस जाते हैं।
  • पर्यावरण क्षरण:
    • अस्थिर प्रथाएँ: बड़े स्तर पर, निर्यात-उन्मुख कृषि पर ध्यान केंद्रित करने से अक्सर भूमि उपयोग की प्रथाएँ जैसे; वनों की कटाई, मृदा का ह्रास और जल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से अस्थिर हो जाती हैं।
    • जैवविविधता हानि: खनन, बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक कृषि के लिये भूमि के रूपांतरण के फलस्वरूप प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं तथा जैवविविधता को खतरा होता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि: मृदा के स्वास्थ्य में गिरावट और प्राकृतिक वनस्पति की हानि पारिस्थितिक तंत्र को कमज़ोर करती है, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • सामाजिक अशांति और संघर्ष:
    • संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा: स्थानीय आबादी और निवेशकों के बीच सामाजिक अशांति एवं संघर्ष भूमि संसाधनों की सीमित मात्रा के लिये प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकते हैं।
      • IPES-फूड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकारों ने कार्बन पृथक्करण की परियोजनाओं के लिये जो भूमि आवंटित की है, उसका आधे से अधिक भाग छोटे किसानों और स्थानीय समुदायों की आजीविका में हस्तक्षेप का खतरा उत्पन्न करता है।
    • अस्थिरता और प्रवासन: 
      • भूमि और आजीविका के अवसरों की हानि से ग्रामीण-शहरी प्रवासन शुरू हो जाता है, जिससे शहरी संसाधनों एवं सामाजिक सेवाओं पर दबाव पड़ता है।

रिपोर्ट की क्या सिफारिशें हैं? 

  • भूमि कब्ज़ा पर नियंत्रण: भूमि कब्ज़े को नियंत्रित करने एवं स्थानीय समुदायों और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए भूमि उपयोग निर्णय सुनिश्चित करने के लिये नीतियों एवं विनियमों की आवश्यकता है।
  • छोटे किसानों का समर्थन: छोटे किसानो को सशक्त बनाने के लिये ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश, सुरक्षित भूमि स्वामित्व और वित्तपोषण तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
  • सतत् भूमि प्रबंधन: उन प्रथाओं को बढ़ावा देना जो मृदा के स्वास्थ्य की रक्षा करती हैं, जैवविविधता का संरक्षण करती हैं और दीर्घकालिक खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करती हैं।
  • निष्पक्ष व्यापार नीतियाँ: सतत् कृषि को बढ़ावा देने और छोटे किसानों की आजीविका की रक्षा के लिये व्यापार समझौतों में सुधार किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भूमि अधिग्रहण एक जटिल मुद्दा है जिसके लिये बहुआयामी समाधान की आवश्यकता है। अंतर्निहित कारणों को संबोधित करके और छोटे पैमाने के खाद्य उत्पादकों का समर्थन करके, हम भूमि तक समान पहुँच सुनिश्चित कर हम अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं जिससे भविष्य के लिये अधिक सतत् खाद्य प्रणाली का निर्माण कर संभव हो सकेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. लैंड स्क्वीज़ के खतरों पर प्रकाश डालते हुए भारत के भूमि उपयोग पैटर्न और इससे जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल वे ही परिवार सहायता प्राप्त खाद्यान्न लेने की पात्रता रखते हैं जो "गरीबी रेखा से नीचे"(बी.पी.एल.) की श्रेणी में आते हैं।
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार का मुखिया होगी।
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छः महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)

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