ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: गर्ल्स राइट इन क्राइसिस | 13 Oct 2021
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मेन्स के लिये:भारत में बाल विवाह की समस्या और कोविड-19 का प्रभाव, सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने ‘ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: गर्ल्स राइट इन क्राइसिस’ जारी की है।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस
- पृष्ठभूमि:
- यह प्रतिवर्ष 11 अक्तूबर को मनाया जाता है। इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा की गई थी और यह दिवस पहली बार वर्ष 2012 में मनाया गया था।
- 19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित करने का एक प्रस्ताव पारित किया गया था।
- यह दिवस बालिकाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनके लिये अवसरों में सुधार करते हुए लैंगिक समानता पर जागरूकता बढ़ाने हेतु समर्पित है।
- यह प्रतिवर्ष 11 अक्तूबर को मनाया जाता है। इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा की गई थी और यह दिवस पहली बार वर्ष 2012 में मनाया गया था।
- वर्ष 2021 की थीम:
- ‘डिजिटल जनरेशन, अवर जनरेशन’।
प्रमुख बिंदु
- ‘बाल विवाह’ की दर:
- पश्चिम और मध्य अफ्रीका में बाल विवाह की दर दुनिया में सबसे अधिक है।
- बाल विवाह के कारण मृत्यु:
- बाल विवाह के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 60 से अधिक लड़कियों की मृत्यु होती है, वहीं पश्चिम और मध्य अफ्रीका में यह आँकड़ा 26 तथा दक्षिण एशिया में 6 के आसपास है।
- दक्षिण एशिया के बाद पूर्वी एशिया और प्रशांत तथा लैटिन अमेरिकी और एवं कैरिबिया का स्थान है।
- मृत्यु का कारण मुख्यतः गर्भावस्था एवं बाल विवाह के परिणामस्वरूप होने वाले बच्चे का जन्म है।
- बाल विवाह के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 60 से अधिक लड़कियों की मृत्यु होती है, वहीं पश्चिम और मध्य अफ्रीका में यह आँकड़ा 26 तथा दक्षिण एशिया में 6 के आसपास है।
- बाल विवाह पर कोविड का प्रभाव:
- स्कूल बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव व अधिक परिवारों के गरीबी में धकेले जाने के कारण महिलाओं और लड़कियों को लंबे लॉकडाउन के दौरान हिंसा के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ा है।
- वर्ष 2030 तक दस मिलियन लड़कियों का बाल विवाह होने की संभावना है, जिससे मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होने का खतरा है।
- इससे पहले ‘चाइल्डलाइन इंडिया’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण मध्य प्रदेश में महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन बाल विवाह के नए कारक साबित हुए हैं।
- साथ ही कर्नाटक के कुछ कार्यकर्त्ताओं और संगठनों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समक्ष लॉकडाउन में बाल विवाह बढ़ने का मुद्दा उठाया है।
- स्कूल बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव व अधिक परिवारों के गरीबी में धकेले जाने के कारण महिलाओं और लड़कियों को लंबे लॉकडाउन के दौरान हिंसा के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ा है।
- सुझाव: रिपोर्ट में सरकार के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये गए हैं:
- लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाना:
- सभी सार्वजनिक निर्णय लेने में सुरक्षित एवं सार्थक भागीदारी के अधिकार का समर्थन करके लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाना आवश्यक है।
- लैंगिक समानता पर ध्यान देना:
- लड़कियों के अधिकारों और लैंगिक समानता को कोविड-19 के केंद्र में रखकर तथा मानवीय प्रतिक्रियाओं, विकास नीति एवं बेहतर तरीके से आगे बढ़ने के व्यापक प्रयासों के माध्यम से बाल विवाह सहित लिंग आधारित हिंसा के तत्काल व मौजूदा जोखिमों का समाधान करना आवश्यक है।
- लड़कियों के अधिकारों की गारंटी:
- समावेशी नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित कर असमानता व भेदभाव के विभिन्न रूपों से प्रभावित लड़कियों के अधिकारों की गारंटी दी जानी चाहिये। मौजूदा आर्थिक, जलवायु और संघर्ष संबंधी संकटों पर कोविड-19 के प्रभाव को वास्तविक समय में बेहतर ढंग से समझने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु सुरक्षित तथा नैतिक डेटा संग्रह में भी सुधार किया जाना चाहिये।
- महिला कर्मचारियों की भागीदारी सुनिश्चित करना:
- सभी मानवीय प्रतिक्रिया प्रयासों में महिला कर्मचारियों की सुरक्षित और अप्रतिबंधित भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये, जिसमें प्रत्येक स्तर पर सभी मानवीय सेवाओं की आवश्यकताओं का आकलन एवं डिज़ाइन, कार्यान्वयन और निगरानी व मूल्यांकन करना शामिल है।
- ‘जनरेशन इक्वलिटी मूवमेंट’ में शामिल होना:
- यह आंदोलन ‘ग्लोबल एक्सेलेरेशन प्लान फॉर जेंडर इक्वलिटी’ को पूरा करने की दिशा में कार्य कर रहा है, जिसके तहत आगामी पाँच वर्षों में नौ मिलियन ‘बाल विवाह’ रोकने का लक्ष्य रखा गया है।
- लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाना:
- संबंधित भारतीय पहल:
- वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करता है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं एवं पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष तथा 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिये लागू किया गया था।
- केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया है। यह समिति जया जेटली की अध्यक्षता में गठित की गई है।
- इस समिति का प्रस्ताव केंद्रीय बजट 2020-21 में किया गया था।
- बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है। यह लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने से संबंधित है।
बाल विवाह के संदर्भ में भारत का डेटा
- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का अनुमान है कि भारत में प्रतिवर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 1.5 मिलियन लड़कियों का विवाह किया जाता है, यही कारण है कि भारत में विश्व की सबसे अधिक (तकरीबन एक-तिहाई) बाल वधू हैं।
- वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16 प्रतिशत किशोरियों की शादी हो चुकी है।
- जबकि वर्ष 2005-2006 में 18 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों की शादी का आँकड़ा 47% था जो 2015-2016 में घटकर 27% हो गया है।