जीन एडिटिंग (Genome Editing) | 01 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज़, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, डीऑक्सी-राइबोन्यूक्लिक एसिड,  जीनोम एडिटिंग।

मेन्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के समक्ष बोझिल ‘GMO’ (आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव) विनियमन के बिना जीनोम संपादित पौधों की अनुमति दी है।

  • सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के नियम 7-11 से ‘साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज़’ (SDN) 1 और 2 जीनोम को छूट दी है, इस प्रकार जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के माध्यम से इस प्रकार की GM फसलों के अनुमोदन हेतु एक लंबी प्रक्रिया से बचने की अनुमति मिलेगी।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत संस्थागत जैव सुरक्षा समिति (IBSC) को अब यह प्रमाणित करने का कार्य सौंपा जाएगा कि जीनोम एडिटिंग वाली फसल किसी भी विदेशी डीएनए से रहित है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति: 

  • यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत कार्य करती है।
  • यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी है।
  • समिति प्रायोगिक क्षेत्र परीक्षणों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादों से संबंधित प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC का विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करता है और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा सह-अध्यक्षता की जाती है।

जीनोम एडिटिंग क्या है?

  • जीन एडिटिंग (जिसे जीनोम एडिटिंग भी कहा जाता है) प्रौद्योगिकियों का एक समुच्चय है जो वैज्ञानिकों को एक जीव के डीएनए (DNA) को बदलने की क्षमता उपलब्ध कराता है। 
  • ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।

Genome-Editing

  • उन्नत शोध ने वैज्ञानिकों को अत्यधिक प्रभावी क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड पैलिंड्रोमिक रिपीट (CRISPR) से जुड़े प्रोटीन आधारित सिस्टम विकसित करने में मदद की है। यह प्रणाली जीनोम अनुक्रम में लक्षित हस्तक्षेप को संभव बनाती है।
    • इस युक्ति ने पादप प्रजनन में विभिन्न संभावनाओं को उजागर किया है। इस प्रणाली की सहायता से कृषि वैज्ञानिक अब जीन अनुक्रम में विशिष्ट लक्षणों को समाविष्ट कराने हेतु जीनोम को एडिट/संपादित कर सकते हैं।
  • एडिटिंग की प्रकृति के आधार पर संपूर्ण प्रक्रिया को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- SDN1, SDN2 और SDN3
    • साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज (SDN) 1 विदेशी आनुवंशिक सामग्री के प्रवेश के बिना ही छोटे सम्मिलन/विलोपन के माध्यम से मेज़बान जीनोम के DNA में परिवर्तन का का सूत्रपात करता है।
    • SDN2 के तहत एडिटिंग में विशिष्ट परिवर्तनों की उत्पत्ति हेतु एक छोटे DNA टेम्पलेट का उपयोग करना शामिल है। इन दोनों प्रक्रियाओं में विदेशी आनुवंशिक सामग्री शामिल नहीं होती है और अंतिम परिणाम पारंपरिक नस्ल वाली फसल की किस्मों के समरूप ही होता है।
    • SDN3 प्रक्रिया में बड़े DNA तत्त्व या विदेशी मूल के पूर्ण लंबाई वाले जीन शामिल होते हैं जो इसे आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के विकास के समान बनाता है।

जीन एडिटिंग GMO विकास से किस प्रकार भिन्न है?

  • यह आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) में एक विदेशी आनुवंशिक सामग्री के प्रवेश द्वारा मेज़बान जीन की आनुवंशिक सामग्री में संशोधन करना है। 
  • कृषि के संदर्भ में मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणु ऐसे जीन के लिये सबसे अच्छा स्रोत हैं जिन्हें बाद में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग करके मेज़बान जीनोम में डाला जाता है। 
    • उदाहरण के लिये मिट्टी के जीवाणु बैसिलस थुरिंजिनेसिस (बीटी) से प्राप्त किये गए  क्राय 1 एसी और क्राय 2 एबी जीन देशी कपास के पौधे को स्वाभाविक रूप से गुलाबी बॉलवर्म से लड़ने के लिये एंडोटॉक्सिन (Endotoxins) उत्पन्न करने की अनुमति देते हैं।
    • बीटी कॉटन इस लाभ का उपयोग किसानों को स्वाभाविक रूप से गुलाबी बॉलवर्म से लड़ने में मदद करने के लिये करता है जो कपास किसानों हेतु सबसे आम कीट है।
  • जीनोम एडिटिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग के बीच मूल अंतर यह है कि जीनोम एडिटिंग में विदेशी आनुवंशिक सामग्री का प्रवेश शामिल नहीं है जबकि जेनेटिक इंजीनियरिंग में ऐसा होता है।
  • कृषि के संदर्भ में दोनों तकनीकों का उद्देश्य जैविक व अजैविक रूप से अधिक प्रतिरोधी तथा बेहतर उपज देने वाले बीज उत्पन्न करना है।
  • आनुवंशिक इंजीनियरिंग के आगमन से पहले चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से इस तरह की विविधता में सुधार किया गया था जिसमें बीजों में वांछित गुण उत्पन्न करने के लिये विशिष्ट लक्षणों वाले पौधों को सावधानीपूर्वक उत्पन्न करना शामिल था।
  • जेनेटिक इंजीनियरिंग ने न केवल इस काम को और अधिक सटीक बना दिया है बल्कि वैज्ञानिकों को विशेष रूप से विकास पर अधिक नियंत्रण रखने की अनुमति भी दी है।

तकनीकी को रोकने से संबंधित नियामक मुद्दे:

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें या जीएम फसलें विश्व भर में चर्चा का विषय रही हैं, कई पर्यावरणविदों ने जैव सुरक्षा और अधूरे डेटा के आधार पर इसका विरोध भी किया है। भारत में जीएम फसलों की शुरुआत एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है जिसमें जाँच के कई स्तर शामिल हैं।
    • अब तक बीटी कपास ही एकमात्र फसल है जिसे भारत में नियामकीय मंज़ूरी प्राप्त हुई है।
  • भारत और विश्व भर के वैज्ञानिकों ने जीएम फसलों और जीनोम संपादित फसलों के बीच अंतर स्पष्ट करने में तेज़ी से कार्य किया है। उन्होंने यह दर्शाया है कि जीनोम संपादित फसलों में ऐसी कोई विदेशी आनुवंशिक सामग्री नहीं है, इसलिये वे पारंपरिक संकर नस्लों के समरूप हैं।
    • वैश्विक स्तर पर, यूरोपीय संघ के देशों ने जीएम फसलों को जीनोम संपादित फसलों के समान ही  माना है। वहीं अर्जेंटीना, इज़रायल, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में जीनोम संपादित फसलों के लिये उदार नियम हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस