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जैव विविधता और पर्यावरण

G20 जलवायु जोखिम एटलस

  • 29 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

G20 जलवायु जोखिम एटलस, हीटवेब्स, खाद्य सुरक्षा

मेन्स के लिये:

G20 देशों में जलवायु परिदृश्य एवं G20 जलवायु जोखिम एटलस का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज’ (CMCC) ने ‘G20 जलवायु जोखिम एटलस’ नामक एक रिपोर्ट में बताया है कि G20 (20 देशों का एक समूह) देश, जिसमें अमेरिका, यूरोपीय देश और ऑस्ट्रेलिया जैसे सबसे धनी देश शामिल हैं, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के अत्यधिक प्रभावों को सहन करेंगे। ।

  • यह पहला अध्ययन है जो G20 देशों में जलवायु परिदृश्य, सूचना, डेटा और भविष्य में जलवायु परिवर्तन संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • यह रिपोर्ट अक्तूबर 2021 के अंत में रोम में G20 शिखर सम्मेलन से दो दिन पहले आई है।

प्रमुख बिंदु:

  • G20 देशों पर प्रभाव:
    • हीटवेब्स:
      • सभी G20 देशों में हीटवेब्स कम-से-कम दस गुना अधिक समय तक चल सकती है, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और इंडोनेशिया में हीटवेव वर्ष 2050 तक 60 गुना अधिक समय तक चल सकती हैं।
        • ऑस्ट्रेलिया में बुश फायर्स, तटीय बाढ़ और चक्रवात बीमा लागत बढ़ा कर संपत्ति के मूल्यों को वर्ष 2050 तक 611 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक कम कर सकते हैं।
    • सकल घरेलू उत्पाद में हानि:
      • G20 देशों में जलवायु क्षति के कारण जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का नुकसान हर वर्ष बढ़ रहा है, जो वर्ष 2050 तक वार्षिक रूप से कम-से-कम 4% तक बढ़ सकता है। यह वर्ष 2100 तक 8% से अधिक तक पहुँच सकता है, जो कोविड-19 से हुए आर्थिक नुकसान के दोगुने के बराबर है।
        • कुछ देश इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे, जैसे कि कनाडा, वर्ष 2050 तक इसके सकल घरेलू उत्पाद में कम-से-कम 4% की कमी और 2100 तक 13% से अधिक की कमी हो सकती है।
    • समुद्र स्तर में वृद्धि:
      • समुद्र स्तर में वृद्धि 30 वर्षों के भीतर तटीय बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकती है, जापान को 404 बिलियन यूरो और दक्षिण अफ्रीका को वर्ष 2050 तक 815 मिलियन यूरो का नुकसान हो सकता है।
    • बाढ़:
      • वर्ष 2050 तक नदियों की बाढ़ से अनुमानित वार्षिक नुकसान कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 376.4 बिलियन यूरो और उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 585.6 बिलियन यूरो तक बढ़ने का अनुमान है।
  • भारत पर प्रभाव:
    • उत्सर्जन परिदृश्य:
      • कम उत्सर्जन (वर्तमान की तुलना में कम):
        • अनुमानित तापमान भिन्नता की स्थिति वर्ष 2050 और 2100, दोनों तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे बनी रहेगी।
      • मध्यम उत्सर्जन (वर्तमान के समान):
        • वर्ष 2036 और 2065 के बीच भारत में सबसे गर्म महीने का अधिकतम तापमान मध्यम उत्सर्जन की तुलना में कम-से-कम 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है।
      • उच्च उत्सर्जन (वर्तमान से अधिक):
        • वर्ष 2050 तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
    • वर्षण:
      • वर्ष 2050 तक सभी उत्सर्जन परिदृश्यों में 8% से 19.3% तक की वृद्धि के साथ वार्षिक वर्षा में भारी वृद्धि दर्ज किये जाने की संभावना है।
    • आर्थिक प्रभाव:
      • भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण चावल और गेहूँ की पैदावार में गिरावट आने से वर्ष 2050 तक 43 से 81 बिलियन यूरो (जीडीपी के 1.8-3.4%) के बीच आर्थिक नुकसान हो सकता है।
      • वर्ष 2050 तक कृषि के लिये पानी की मांग लगभग 29% बढ़ने की संभावना है, जिसका अर्थ है कि उपज के नुकसान को कम करके आँका जा सकता है।
    • हीटवेब्स:
      • यदि भारत में उत्सर्जन (4 डिग्री सेल्सियस) अधिक होता है तो वर्ष 2036-2065 के बीच हीटवेब्स का प्रभाव 25 गुना अधिक रहेगा, वहीं वैश्विक तापमान वृद्धि लगभग 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित होने पर पाँच गुना अधिक और उत्सर्जन बहुत कम होने पर डेढ़ गुना अधिक समय तक इनका प्रभाव रहेगा और तापमान में वृद्धि केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचेगी।
    • कृषिगत सूखा:
      • 4 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापन पर वर्ष 2036-2065 तक कृषि सूखा की बारंबारता 48% अधिक हो जाएगी।
    • बाढ़:
      • यदि उत्सर्जन अधिक होता है तो 1.8 मिलियन से कम भारतीयों को वर्ष 2050 तक बाढ़ का खतरा हो सकता है, जो वर्तमान के 13 लाख की तुलना में अधिक है।
    • श्रम:
      • गर्मी में वृद्धि के कारण वर्ष 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत कुल श्रम 13.4% और मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत वर्ष 2080 तक 24% घटने की उम्मीद है।
    • खाद्य सुरक्षा:
      • भारत में चावल और गेहूँ के उत्पादन में गिरावट से वर्ष 2050 तक 81 बिलियन यूरो तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है तथा वर्ष 2100 तक किसानों की आय में 15% तक का नुकसान हो सकता है।

आगे की राह

  • G20 देश कोविड-19 के कारण प्रभावित आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहित करते हैं और COP-26 से पहले जलवायु योजना तैयार करेंगे, उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था की रक्षा करने व कम कार्बन वाले भविष्य के लिये विभिन्न प्रयास करने होंगे।
  • जी20 के लिये अपने आर्थिक एजेंडे को जलवायु एजेंडा बनाने का समय आ गया है। उत्सर्जन से निपटने के लिये त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने से इसके गंभीर प्रभावों को सीमित किया जा सकेगा।
  • G20 सरकारों को वैज्ञानिकों की चेतावनियों पर ध्यान देना चाहिये और दुनिया को एक बेहतर, निष्पक्ष एवं अधिक स्थिर भविष्य के रास्ते पर लाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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