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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कतर में पूर्व नौसेना कर्मी को मृत्युदंड

  • 30 Oct 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कतर में पूर्व नौसेना कर्मियों को मौत की सज़ा, भारतीय नौसेना, भारत-कतर संबंध, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), संयुक्त राष्ट्र (UN)

मेन्स के लिये:

कतर में पूर्व नौसेना कर्मियों को मौत की सज़ा, भारत के समक्ष कानूनी विकल्प और इसका भारत-कतर संबंधों पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कतर के एक न्यायालय ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को जासूसी के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई है।

  • संबद्ध अधिकारियों को अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था और उन पर गोपनीय जानकारी साझा करने संबंधी आरोप लगाए गए थे।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिका:
    • दोहा में अल दहरा ( कतर की निजी सुरक्षा कंपनी) के साथ कार्य कर रहे अभियुक्त अधिकारियों पर वर्ष 2022 में कतर में उनकी गिरफ्तारी के समय कथित तौर पर गोपनीय जानकारी साझा करने का आरोप लगाया गया था।
    • दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज़ एंड कंसल्टेंट सर्विसेज़, जिस कंपनी के लिये उन्होंने कार्य किया था, वह इतालवी मूल की उन्नत पनडुब्बियों के उत्पादन से भी जुड़ी थी, जो अपनी गुप्त युद्ध क्षमताओं के लिये भी जानी जाती हैं।
    • हालाँकि कतरी अधिकारियों द्वारा आठ भारतीय अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

  • पिछला परीक्षण:
    • इस मामले में 2023 के मार्च और जून में दो परीक्षण हुए हैं। जबकि बंदियों को कई मौकों पर कांसुलर एक्सेस (Consular Access) प्रदान की गई थी, भारतीय और कतरी दोनों अधिकारियों ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए इस मामले में गोपनीयता को बनाए रखा है।
  • भारत की प्रतिक्रिया:
    • भारत ने अपने नागरिकों को दी गई मौत की सज़ा पर चिंता व्यक्त की है और उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिये सभी संभावित कानूनी विकल्प तलाश रहा है।
    • विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस मामले से जुड़े बड़े महत्त्व से अवगत कराया है और हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को कांसुलर तथा कानूनी सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।

इस मामले के कूटनीतिक निहितार्थ:

  • यह निर्णय संभावित रूप से भारत और कतर के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न कर सकता है, जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी आर्थिक एवं राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।
  • कतर में सात लाख से अधिक भारतीय आबादी निवास करती हैं जिससे भारत सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ जाता है कि वहाँ की जेलों में बंद कैदियों की जान बचाने हेतु उच्चतम स्तर की कार्रवाई की जाए।
    • वे अलग-अलग क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहे हैं। कतर में भारतीयों को उनकी ईमानदारी, कड़ी मेहनत, तकनीकी विशेषज्ञता और कानून का पालन करने वाले स्वभाव के लिये बहुत सम्मान दिया जाता है।
    • कतर में भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा भारत को भेजी जाने वाली धनराशि प्रति वर्ष लगभग 750 मिलियन डॉलर होने का अनुमान है।
  • यह मामला भारत-कतर संबंधों में पहले बड़े संकट का प्रतिनिधित्व करता है, जो आमतौर पर स्थिर रहे हैं।
    • दोनों देशों ने वर्ष 2016 में भारत के प्रधानमंत्री के दोहा दौरे के साथ उच्च स्तरीय बैठकें कीं, जिसके बाद कतर के अमीर (Emir) के साथ भी बैठकें हुईं।
  • कतर भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है, जो भारत के LNG आयात का एक बड़ा भाग रखता है।

नौसेना कर्मियों की सज़ा को रोकने हेतु भारत के विकल्प:

  • राजनयिक विकल्प:
    • भारत मामले का समाधान तलाशने के लिये कतर सरकार के साथ सीधी कूटनीतिक वार्त्ता कर सकता है। दोनों देशों के बीच संबंधों के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व को देखते हुए राजनयिक उत्तोलन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • सरकार मृत्युदंड को रोकने के लिये राजनयिक दबाव का भी उपयोग कर सकती है।
    • जिन संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है उनमें निर्णय के खिलाफ अपील दायर करना या दोषी कैदियों के स्थानांतरण के लिये वर्ष 2015 में भारत और कतर द्वारा हस्ताक्षरित समझौते का उपयोग करना है ताकि वे अपने गृह देश में अपनी सज़ा पूरी कर सकें।
    • गैर सरकारी संगठन और नागरिक समाज इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठा सकते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र का दबाव भी बनाया जा सकता है।
  • कानूनी विकल्प:
    • पहला कदम कतर में न्यायिक प्रणाली के अंतर्गत अपील करना है। मौत की सज़ा पाने वाले व्यक्ति कतर की कानूनी प्रणाली के तहत अपील दायर कर सकते हैं।
      • भारत बंदियों को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करके यह सुनिश्चित कर सकता है कि अपील करने के उनके अधिकार का उचित रूप से पालन किया जाए।
    • यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है या अपील प्रक्रिया अव्यवस्थित है, तो भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकता है।
      • ICJ एक विश्व न्यायालय के रूप में कार्य करता है जिसके पास दो प्रकार के क्षेत्राधिकार हैं अर्थात् राज्यों के बीच उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए कानूनी विवाद (विवादास्पद मामले) और संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों (सलाहकार कार्यवाही) द्वारा इसे संदर्भित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय के लिये अनुरोध।

भारत किन मामलों में ICJ में शामिल था?

  • कुलभूषण जाधव मामला (भारत बनाम पाकिस्तान)
  • भारतीय क्षेत्र पर मार्ग का अधिकार (पुर्तगाल बनाम भारत, वर्ष 1960 में समाप्त)।
  • ICAO परिषद् के क्षेत्राधिकार से संबंधित अपील (भारत बनाम पाकिस्तान, वर्ष 1972 में समाप्त)।
  • पाकिस्तानी युद्धबंदियों का मुकदमा (पाकिस्तान बनाम भारत, वर्ष 1973 में समाप्त)।
  • 10 अगस्त, 1999 की हवाई घटना (पाकिस्तान बनाम भारत, वर्ष 2000 में समाप्त )।
  • परमाणु हथियारों की होड़ को रोकने और परमाणु निरस्त्रीकरण की वार्ता से संबंधित दायित्व (मार्शल आइलैंड्स बनाम भारत, वर्ष 2016 में समाप्त)।

आगे की राह 

  • इस दिशा में आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है और इसमें समय लगने एवं भारत को दृढ़ता दिखाने की आवश्यकता हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और कतर में कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं से निपटते हुए भारत को अपने नागरिकों के कल्याण एवं उनके कानूनी अधिकारों के लिये प्रतिबद्ध रहना आवश्यक है।
  • सफल और उचित समाधान के लिये राजनयिक प्रयासों, कानूनी कार्रवाइयों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयोजन की आवश्यकता हो सकती है।

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