जैव विविधता और पर्यावरण
गोवा में वनाग्नि
- 10 May 2023
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प्रिलिम्स के लिये:वनाग्नि के प्रकार, कारण, फायदे और नुकसान, वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF), राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP) मेन्स के लिये:वनाग्नि एवं उसका शमन |
चर्चा में क्यों?
गोवा वन विभाग द्वारा मार्च 2023 में झाड़ियों में लगी आग की जाँच में पाया गया है कि यह आग बड़े पैमाने पर प्राकृतिक कारणों से लगी थी।
वन विभाग की जाँच के निष्कर्ष:
- अक्तूबर 2022 के बाद से गोवा में बहुत कम बारिश, ग्रीष्म लहर जैसी स्थिति और न्यून आर्द्रता ने वनाग्नि के लिये उपयुक्त स्थिति उत्पन्न कर दी।
- वनाग्नि का कारण: रिपोर्ट बताती है कि वनाग्नि की घटना का कारण एक अनुकूल वातावरण और चरम मौसम की स्थिति, विगत मौसम में न्यूनतम वर्षा, असामान्य रूप से उच्च तापमान तथा कम नमी है।
- गोवा में वनाग्नि:
- भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा प्रकाशित इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR), 2021 में गोवा के 100% वन आवरण को "न्यून अग्नि प्रवण" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- इसके अतिरिक्त गोवा में क्राउन फायर (पेड़ों के घर्षण के कारण) की घटना देखने को नहीं मिलती हैं, ऐसी घटनाएँ अधिकतर विदेशों में देखी जाती हैं।
- गोवा के आर्द्र पर्णपाती वनों में सतह पर लगने वाली आग सामान्य हैं।
- मवेशियों के चरागाह वाली भूमि को साफ करने के लिये ग्रामीणों द्वारा उपयोग की जाने वाली स्लेश-एंड-बर्न तकनीक में सामान्यतः वन क्षेत्र में भूमिगत और मृत कार्बनिक पदार्थों को जलाने हेतु सतही आग का प्रयोग किया जाता है।
- काजू की खेती करने वाले किसान अक्सर खरपतवारों को साफ करने और उसे कम करने के लिये आग का कम प्रयोग करते हैं।
वनाग्नि:
- परिचय:
- वनाग्नि अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन है जिसे ज्वलनशील वनस्पतियों की अधिकता वाले क्षेत्रों जैसे कि वन, घासभूमि, क्षुपभूमि (Shrubland) में पौधों/वनस्पतियों के दहन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
- कारण:
- प्राक्रतिक: तड़ित/आकाशीय बिजली (Lightning) के कारण भी वृक्षों में आग लग जाती है। हालाँकि इस तरह की वनाग्नि को वर्षा ही बुझा देती है तथा बहुत अधिक क्षति नहीं होती।
- शुष्क वनस्पतियों के स्वतः दहन और ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण भी वनों में आग लगती है।
- उच्च वायुमंडलीय तापमान और सूखा (कम आर्द्रता) वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करते हैं।
- मानवजनित कारण: खुले में किसी प्रकार कि लौ जलाने, सिगरेट अथवा बीड़ी या विद्युतीय चिंगारी या प्रज्वलन के किसी स्रोत की ज्वलनशील सामग्री के संपर्क में आने पर भी वनों में आग लग सकती है.
- प्राक्रतिक: तड़ित/आकाशीय बिजली (Lightning) के कारण भी वृक्षों में आग लग जाती है। हालाँकि इस तरह की वनाग्नि को वर्षा ही बुझा देती है तथा बहुत अधिक क्षति नहीं होती।
- प्रकार:
- शिखर अग्नि सबसे तीव्र एवं जोखिम पूर्ण वनाग्नि है वृक्षों के शिखर तक को अपनी चपेट में ले लेती है।
- सतही अग्नि केवल सतही स्तर पर वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ इसकी चपेट में आती हैं । यह सबसे आसानी से बुझाई जा सकने योग्य वनाग्नि है जिस कारण इससे वनों को होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है।
- भूमिगत अग्नि (कभी-कभी भूमिगत अथवा उपसतह अग्नि कहा जाता है) कम तीव्रता की आग जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है।
- लाभ:
- वनीय तल की सफाई
- आवास उपलब्धता
- रोगों का निवारण
- पोषक तत्त्व पुनर्चक्रण
- हानि:
- अनपेक्षित वनस्पति की हानि
- कटाव और अवसादन का कारण बन सकती है
- पारितंत्र की क्षति
- मानवीय जीवन के लिये संकट उत्पन्न करती है
- भारत में सुभेद्यता:
- भारत में वनाग्नि की घटनाएँ आमतौर पर नवंबर से जून मध्य तक होती है।
- ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की एक रिपोर्ट में कहा गया है:
- पिछले दो दशकों में वनाग्नि की घटनाओं में दस गुना वृद्धि हुई है और यह रिपोर्ट बताती है कि 62% से अधिक भारतीय राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि से ग्रसित हैं।
- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तेलंगाना और पूर्वोत्तर राज्य वनाग्नि के लिये सर्वाधिक संवेदनशील हैं।
- मिज़ोरम में पिछले दो दशकों में वनाग्नि की घटनाएँ सबसे अधिक देखी गई हैं और इसके 95% ज़िले वनाग्नि के हॉटस्पॉट हैं।
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021 का अनुमान है कि देश के 36% से अधिक वन क्षेत्र में बार-बार आग लगने का खतरा है, जबकि 6% 'अत्यधिक' अग्नि-प्रवण है और लगभग 4% 'अत्यंत' प्रवण क्षेत्र है।
- इसके अतिरिक्त भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में वनों के अंतर्गत लगभग 10.66% क्षेत्र 'अत्यंत' से 'अत्यधिक' अग्नि-प्रवण है।
वनाग्नि के प्रबंधन से संबंधित भारत की पहलें:
- वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF): इस कार्ययोजना को वर्ष 2018 में वनाग्नि की घटनाओं को कम करने के लक्ष्य के साथ जंगल के किनारे रह रहे समुदायों को सूचित, सक्षम और सशक्त बनाने तथा उन्हें राज्य वन विभागों से सहयोग के लिये प्रोत्साहित करने हेतु शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन (GIM): इसे जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत लॉन्च किया गया है, GIM का उद्देश्य वन क्षेत्र को बढ़ाना और क्षतिग्रस्त वनों को पुनर्स्थापित करना है।
- यह समुदाय आधारित वन प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण और सतत् वन प्रथाओं के उपयोग को बढ़ावा देता है, जो वनाग्नि को रोकने में योगदान करते हैं।
- वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (FFPM): FFPM को MoEF&CC के तहत FSI द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। इसका उद्देश्य रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके वनाग्नि प्रबंधन प्रणाली को मज़बूत करना है।
- यह वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता हेतु समर्पित सरकार द्वारा प्रायोजित एकमात्र कार्यक्रम है।
वनाग्नि को कम करने हेतु उपाय:
- फायर ब्रेक्स का निर्माण: फायर ब्रेक्स ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वनस्पति को हटा दिया जाता है, जिससे एक खाई बन जाती है जो आग के प्रसार को धीमा कर सकती है या रोक सकती है।
- वनों की निगरानी और प्रबंधन: वनों की निगरानी और उनका उचित प्रबंधन आग को शुरू होने या फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
- प्रारंभिक पहचान और त्वरित प्रतिक्रिया: प्रभावी शमन के लिये वनाग्नि का शीघ्र पता लगाना आवश्यक है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण तथा निवारण हेतु सैटेलाइट इमेजिंग तकनीक (जैसे MODIS) का उपयोग कर रहा है।
- ईंधन प्रबंधन: विरलन और चयनात्मक लॉगिंग जैसी गतिविधियों के माध्यम से मृत वृक्षों, शुष्क वनस्पतियों और अन्य ज्वलनशील सामग्रियों के संचय को कम करना।
- आग लगने की घटना के अनुरूप अभ्यास: वनों के आस-पास के क्षेत्रों जैसे- कारखानों, कोयले की खानों, तेल भंडारों, रासायनिक संयंत्रों और यहाँ तक कि घरेलू रसोई में भी सुरक्षित तौर-तरीकों को अपनाया जाना चाहिये।
- नियंत्रित दहन: नियंत्रित दहन के अंतर्गत नियंत्रित वातावरण में छोटे-छोटे हिस्सों में आग लगाना शामिल है।