भारत में वन और वृक्ष आवरण | 28 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:वृक्ष आवरण, वन आवरण, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन (GIM), जलवायु परिवर्तन राष्ट्रीय कार्ययोजना, भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2021, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम। मेन्स के लिये:भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2021, भारत में वनों से संबद्ध मुद्दे, वन संरक्षण हेतु सरकार की पहल। |
चर्चा में क्यों?
भारत, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन (National Mission for a Green India- GIM) के तहत वृक्षों और वन आवरण वृक्षारोपण की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाने के लक्ष्यों से पीछे है।
- वृक्षावरण में गिरावट वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और केरल शामिल हैं।
वृक्षावरण एवं वनावरण में अंतर:
- वृक्ष आच्छादन भूमि के उस कुल क्षेत्र को संदर्भित करता है जो वृक्षों द्वारा आच्छादित है, भले ही ये वृक्ष वन पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हों या नहीं।
- दूसरी ओर, वन आवरण, विशेष रूप से भूमि के उस क्षेत्र को संदर्भित करता है जो वन पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में शामिल किया जाता है, वन पारिस्थितिकी तंत्र को 10-30% के न्यूनतम वितान घनत्व (Canopy Density) और 0.5 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है।
- इसलिये सभी वनावरण वृक्षावरण हैं, लेकिन सभी वृक्षावरण वनावरण नहीं हैं।
हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन (GIM):
- GIM जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत आठ मिशनों में से एक है।
- इसका उद्देश्य भारत के वन आवरण की रक्षा, बहाली और उसमें वृद्धि करना एवं जलवायु परिवर्तन का सामना करना है।
- इस मिशन के तहत वन/वृक्षों के आवरण को बढ़ाने और मौजूदा वन की गुणवत्ता में सुधार के लिये वन एवं गैर-वन भूमि पर 10 मिलियन हेक्टेयर (Mha) में वन आच्छादन का लक्ष्य है।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इस केंद्र प्रायोजित योजना के माध्यम से वनीकरण गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का समर्थन करता है।
- यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में वृक्षों के आवरण में सुधार, कार्बन पृथक्करण और भारत के कार्बन स्टॉक को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसका उद्देश्य भारत के वन आवरण की रक्षा, बहाली और उसमें वृद्धि करना एवं जलवायु परिवर्तन का सामना करना है।
भारत में वनों की स्थिति:
- परिचय:
- इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2021 के अनुसार,वर्ष 2019 के पिछले आकलन के बाद से देश में वन और वृक्षों के आवरण क्षेत्र में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर था, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33% से अधिक क्षेत्र वनों से आच्छादित है।
- सबसे बड़ा वन आवरण क्षेत्र मध्य प्रदेश में था, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान था।
- अपने कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) थे।
- भारत में वनों से जुड़े मुद्दे:
- संकुचित वन आवरण: भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने हेतु वन के तहत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम-से-कम 33% होना चाहिये।
- हालाँकि यह वर्तमान में देश की केवल 24.62% भूमि को कवर करता है और तेज़ी से संकुचित हो रहा है।
- संसाधन प्राप्ति हेतु संघर्ष: अक्सर स्थानीय समुदायों के हितों और व्यावसायिक हितों के मध्य संघर्ष होता है, जैसे कि फार्मास्युटिकल उद्योग या लकड़ी उद्योग।
- इससे सामाजिक तनाव और यहाँ तक कि हिंसा भी हो सकती है, क्योंकि विभिन्न समूह वन संसाधनों को प्राप्त करने और उनका उपयोग करने हेतु संघर्ष करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याएँ, जिसमें कीट प्रकोप, जलवायु के कारण होने वाले प्रवासन, जंगल की आग और तूफान शामिल हैं, जो वन उत्पादकता को कम करते हैं तथा प्रजातियों के वितरण में बदलाव लाते हैं।
- यह अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का सामना करेंगे।
- संकुचित वन आवरण: भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने हेतु वन के तहत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम-से-कम 33% होना चाहिये।
- वन संरक्षण के लिये सरकारी पहल:
भारत अपने वन आवरण को कैसे बढ़ा सकता है?
- संरक्षण हेतु तकनीक का उपयोग: रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग वन आवरण, वन की आग से निगरानी आदि को ट्रैक करने तथा सुरक्षा की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त गैर-अन्वेषित (Unexplored) वन क्षेत्रों का उपयोग संभावित संसाधन मानचित्रण के लिये किया जा सकता है और वनों के घनत्त्व एवं वन पारितंत्र को बनाए रखने के लिये इन्हें वैज्ञानिक प्रबंधन और स्थायी संसाधन निष्कर्षण के तहत लाया जा सकता है।
- डेडीकेटेड फाॅरेस्ट कॉरिडोरः जंगली जानवरों के सुरक्षित अंतर-राज्यीय और अंतरा राज्यीय आवागमन एवं उनके आवास को किसी भी बाहरी प्रभाव से बचाने के लिये डेडीकेटेड फाॅरेस्ट कॉरिडोर को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व की भावना को बढ़ावा देने के लिये बनाए रखा जा सकता है।
- कृषि वानिकी को बढ़ावा देना: इसके अंतर्गत पेड़-पौधों और वन-आधारित उत्पादों को कृषि प्रणालियों में एकीकृत करना शामिल है। यह वन क्षेत्र के विकास में मदद कर सकता है तथा किसानों के लिये अतिरिक्त आय तथा संसाधन का स्रोत हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (वर्ष 2021) (A) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (D) प्रश्न. भारत के एक विशेष राज्य में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: (वर्ष 2012)
निम्नलिखित में से किस राज्य में उपरोक्त सभी विशेषताएँ हैं? (A) अरुणाचल प्रदेश उत्तर: (A) मेन्स:प्रश्न. भारत में आधुनिक कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानीकरण है। सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022) |