फ्लोरा फौना और ‘फंगा’ | 01 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता, वनस्पति और जीव, कवक, स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC), प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN)

मेन्स के लिये:

कवक और संरक्षण में उनका महत्त्व

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता ने कवक के महत्त्व को उजागर करने के लिये विश्व स्तर पर लोगों से आग्रह किया है कि जब भी वे 'फ्लोरा और फौना (वनस्पति और जीव)' कहें तो शब्द ‘फंगा (कवक)’ का उपयोग करें।

संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता द्वारा ‘फंगा’ शब्द के उपयोग का आग्रह:

  • संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता के अनुसार, “अब कानूनी संरक्षण ढाँचे में वनस्पतियों और जीवों के साथ समान स्तर पर कवक की पहचान एवं उसे संरक्षित करने का समय आ गया है।”
  • यह पहली बार नहीं है जब फ्लोरा और फौना (वनस्पति और जीव) के साथ कवक को भी शामिल करने का अनुरोध किया गया है।
    • इससे पहले IUCN के स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC) ने घोषणा की थी कि वह अपने आंतरिक और सार्वजानिक संचार में "माइकोलॉजिकली समावेशी" भाषा का उपयोग करेगा तथा संरक्षण रणनीतियों में दुर्लभ एवं लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों के साथ कवक को शामिल करेगा।
  • कवक, यीस्ट, फफूँद और मशरूम के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है क्योंकि ये अपघटन और वन पुनर्जनन, स्तनधारियों के पाचन, कार्बन पृथक्करण, वैश्विक पोषक चक्र और एंटीबायोटिक दवा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

कवक:

  • विशेषताएँ: 
    • यूकैरियोट्स: वनस्पतियों, जीवों और प्रोटिस्ट की तरह कवक में जटिल झिल्लीबद्ध कोशिकांग तथा एक वास्तविक केंद्रक होता है।
    • हेटरोट्रॉफिक: कवक मुख्य रूप से डीकंपोज़र या सैप्रोफाइट्स होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपने परिवेश से जैविक पदार्थों को अवशोषित करके पोषक तत्व प्राप्त करते हैं।
    • एंज़ाइमों का स्राव: कवक जटिल जैविक यौगिकों को सरल पदार्थों में तोड़ने के लिये एंज़ाइमों का स्राव करते हैं, जिन्हें वे अवशोषित कर सकते हैं।
  • लाभ:
    • पोषक तत्त्वों का आवर्तन:
      • कवक पोषक तत्त्वों को पौधों के लिये सुलभ बनाने हेतु परिवर्तित किया जा सकता है, यह कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर डीकंपोज़र के रूप में कार्य करता है, जिससे पोषक तत्त्वों की साइक्लिंग और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
    • कार्बन साइक्लिंग और जलवायु विनियमन:
      • कवक कार्बन चक्र में भाग लेकर मिट्टी के कार्बन भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हैं, मृत पौधों से कार्बन का चक्रण करते हैं और पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं।
      • माइकोरिजल कवक पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं, जिससे उन्हें पोषक तत्त्व ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
    • भोजन के रूप में कवक:
      • इसके अनेक लाभकारी अनुप्रयोग हैं। उदाहरण के लिये यीस्ट का उपयोग बेकिंग और शराब बनाने में किया जाता है। कवक पेनिसिलिन जैसे एंटीबायोटिक्स भी उत्पन्न करते हैं।
      • कुछ कवक, जैसे- मशरूम और ट्रफल्स, खाने योग्य हैं तथा व्यंजनों में बेशकीमती हैं। अन्य जैसे- फफूँद (Molds) का उपयोग पनीर बनाने में किया जाता है।
    • पर्यावरण संरक्षण:
      • कवक को पर्यावरण से विभिन्न प्रदूषकों, जैसे- प्लास्टिक और अन्य पेट्रोलियम-आधारित उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स तथा व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों एवं तेल को कम करने में सहायक पाया गया है।
  • कवक के हानिकारक प्रभाव:
    • मानव और पशु रोग:
      • कवक मनुष्यों और जानवरों में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बन सकता है। जिसमें में एथलीट फुट (डर्माटोफाइट्स के कारण), दाद, हिस्टोप्लास्मोसिस तथा एस्परगिलोसिस शामिल हैं।
      • कुछ कवक मायकोटॉक्सिन नामक विषैले यौगिकों का उत्पादन करते हैं, जो भोजन को दूषित कर सकते हैं और उपभोग करने पर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
    • फसल और पौधों के रोग:
      • कवक रोगजनक फसलों और पौधों को संक्रमित एवं नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे कृषि में अत्यधिक आर्थिक नुकसान हो सकता है।
      • उदाहरणों में रतुआ (Rust), पाउडर फफूंँद (Powdery Mildew) और विभिन्न प्रकार के फंगल ब्लाइट (Fungal Blights) शामिल हैं।
    • एलर्जी प्रतिक्रिया:
      • विशेष रूप से उच्च आर्द्रता वाले इनडोर वातावरण में फंगल बीजाणुओं के संपर्क में आने से कुछ व्यक्तियों में एलर्जी और श्वसन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
      • एलर्जिक राइनाइटिस और एलर्जिक ब्रोंकोपुलमोनरी एस्परगिलोसिस जैसी स्थितियाँ फंगल एलर्जी से जुड़ी हैं।
    • वस्तुओं का जैव निम्नीकरण:
      • कवक, कपड़ा, चमड़ा तथा कागज़ जैसी वस्तुओं को नष्ट कर सकता है, यदि इन वस्तुओं को ठीक से संरक्षित या संग्रहीत नहीं किया जाता है तो यह नुकसानदेह हो सकता है।

आगे की राह

  • कवक संरक्षण को बढ़ावा देना: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी संरक्षण ढाँचे में कवक को शामिल करने की पहल करनी चाहिये। इसमें कवक-समृद्ध पारिस्थितिक तंत्र एवं आवासों की पहचान तथा रक्षा करना शामिल होगा।
    • अनुसंधान, आवास संरक्षण तथा बहाली प्रयासों के लिये विशेष रूप से फंगल संरक्षण परियोजनाओं के लिये पर्याप्त धन एवं अनुदान आवंटित किया जाना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं शिक्षा:
    • कवक विविधता, वितरण तथा पारिस्थितिक भूमिकाओं का अध्ययन करने के लिये अनुसंधान हेतु निवेश किया जाना चाहिये। प्रभावी संरक्षण प्रयासों के लिये इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य, पोषक चक्र तथा जैवविविधता में कवक के महत्त्वपूर्ण योगदान के बारे में जनता, नीति निर्माताओं और संरक्षणवादियों को सूचित करने के लिये जागरूकता अभियान एवं  शैक्षिक कार्यक्रम प्रारंभ करना चाहिये।
  • माइकोलॉजिकल समावेशिता: सरकारी एजेंसियों, अनुसंधान संस्थानों तथा संरक्षण संस्थाओं को अपने संचार, नीतियों एवं रिपोर्टों में "माइकोलॉजिकली समावेशी" भाषा अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।