राजकोषीय घाटा और इसका प्रबंधन | 07 Feb 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राजकोषीय घाटा और उसका प्रबंधन, अंतरिम बजट 2024-25, राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP)।

मेन्स के लिये:

राजकोषीय घाटा और उसका प्रबंधन, भारतीय अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत राष्ट्रीय ऋणों से निपटने में वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, इसलिये वित्त मंत्रालय ने अपने अंतरिम बजट 2024-25 में भारत के राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष 2024-25 में  सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) के 5.1% तक कम करने का निर्णय लिया है।

राजकोषीय घाटा क्या है?

  • परिचय:
    • राजकोषीय घाटा किसी सरकार के खर्च की तुलना में उसके राजस्व में कमी को संदर्भित करता है।
    • जब किसी सरकार का व्यय उसके राजस्व से अधिक हो जाता है, तो सरकार को घाटे को पूरा करने के लिये धन उधार लेना होगा या संपत्ति बेचनी होगी।
    • कर किसी भी सरकार के लिये राजस्व का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। वर्ष 2024-25 में सरकार की कर प्राप्तियाँ 26.02 लाख करोड़ रुपए जबकि कुल राजस्व 30.8 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
    • दूसरी ओर, जब किसी सरकार के पास राजकोषीय अधिशेष होता है, तो उसकी आय उसके खर्चों से अधिक हो जाती है।
      • हालाँकि सरकारें अक्सर अधिशेष में नहीं चलती हैं। इन दिनों, अधिकांश सरकारें राजकोषीय अधिशेष बनाने या बजट को संतुलित करने के बजाय राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने को प्राथमिकता देती हैं।
  • अनुमान:
    • सरकार का अनुमान है कि बजट 2021-22 में घोषित वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% से कम हो जाएगा।
    • सरकार के संशोधित अनुमानों ने वर्ष 2023-24 के लिये राजकोषीय घाटे के अनुमान को भी घटाकर राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) का 5.8% कर दिया।
  • राजकोषीय घाटा और राष्ट्रीय ऋण:
    • राष्ट्रीय ऋण वह कुल राशि है जो किसी देश की सरकार अपने ऋणदाताओं को एक निश्चित समय पर देना चाहती है।
      • सरकारी ऋण में छोटी बचत, भविष्य निधि और विशेष प्रतिभूतियों जैसी योजनाओं के दायित्वों के साथ-साथ घरेलू तथा बाहरी ऋण सहित विभिन्न देनदारियाँ शामिल हैं।
      • इन देनदारियों में ब्याज भुगतान और मूल राशि का पुनर्भुगतान दोनों शामिल होते हैं, जिससे सरकार के वित्त पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है।
    • यह आम तौर पर ऋण की वह राशि है जो सरकार ने कई वर्षों के राजकोषीय घाटे और घाटे को पाटने के लिये उधार लेने के दौरान जमा की है। 
    • सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में सरकार का राजकोषीय घाटा जितना अधिक होगा, उसके ऋणदाताओं को बिना किसी परेशानी के भुगतान किये जाने की संभावना उतनी ही कम होगी।
      • बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों का राजकोषीय घाटा अधिक हो सकता है। वर्ष 2022 तक, प्रमुख घाटे वाले धारकों में इटली -7.8%, हंगरी -6.3%, दक्षिण अफ्रीका -4.8%, स्पेन -4.7%, फ्राँस -4.7% शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय ऋण में प्रवृत्तियाँ:
    • वर्ष 2003-04 में ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अनुपात 84.4% था, जिसमें बाद में विभिन्न प्रशासनों के तहत गिरावट और वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2014 के बाद, सरकार ने ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में वृद्धि देखी, जो वर्ष 2020-21 में 88.5% के शिखर पर पहुँच गया, जो मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक व्यवधानों से प्रेरित था।
    • बाद के वित्तीय वर्षों में मामूली सुधार के बावजूद, अनुपात ऊँचा बना हुआ है, वर्ष 2024-25 के लिये 82.4% का अनुमान है, जो राजकोषीय प्रबंधन के लिये महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है।

मुख्य सूत्र:

  • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय- कुल प्राप्तियाँ (उधार को छोड़कर)।
  • राजस्व घाटा: किसी सरकार या व्यवसाय का यह घाटा कुल राजस्व प्राप्तियों को कुल आय व्यय से घटाकर निर्धारित किया जा सकता है।
    • राजस्व घाटा = कुल राजस्व प्राप्तियाँ - कुल राजस्व व्यय।
  • ऋणात्मक  सकल घरेलू उत्पाद अनुपात: यह मापता है कि किसी देश पर उसकी जीडीपी के संबंध में कितना बकाया है।
    • सकल घरेलू उत्पाद पर ऋण = देश का कुल ऋण/देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद

सरकार अपने राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण कैसे करती है?

  • बांड बाज़ार से उधार लेना:
    • अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये सरकार मुख्य रूप से बंधपत्र बाज़ार से पैसा उधार लेती है, जहाँ ऋणदाता सरकार द्वारा जारी बांड खरीदकर सरकार को ऋण देने हेतु प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
      • वर्ष 2024-25 में केंद्र को बाज़ार से 14.13 लाख करोड़ रुपए की सकल राशि उधार लेने की उम्मीद है, जो वर्ष 2023-24 के लिये उसके उधार लक्ष्य से कम है, क्योंकि उसे वर्ष 2024-25 में अपने खर्च को उच्च GST संग्रह के माध्यम से वित्तपोषित करने की उम्मीद है।
    • जैसे-जैसे सरकार की वित्तीय स्थिति खराब होती है, सरकार के बंधपत्र की मांग कम होने लगती है, जिससे सरकार को उधारदाताओं को उच्च ब्याज दर का भुगतान करने की पेशकश करनी पड़ती है और सरकार के लिये उधार लेने की लागत बढ़ जाती है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका:
    • RBI क्रेडिट बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी ऋण की सुविधा प्रदान करता है। जबकि केंद्रीय बैंक सीधे प्राथमिक बाज़ार से सरकारी बंधपत्र नहीं खरीद सकते हैं, वे द्वितीयक बाज़ार में निजी ऋणदाताओं से बांड हासिल करने के लिये ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) में संलग्न होते हैं।
    • केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता का यह प्रवाह सरकारी उधार प्रयासों को प्रभावी ढंग से समर्थन देता है।
      • OMO के माध्यम से केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप में नए धन का सृजन शामिल है, जिससे संभावित रूप से समय के साथ अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति और मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि होगी।
  • मौद्रिक नीति:
    • मौद्रिक नीति सरकारों के लिये बाज़ार से पैसा उधार लेने की लागत को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • केंद्रीय बैंक की ऋण दरें, जो महामारी से पहले कई देशों में शून्य के करीब थीं, महामारी के बाद तेज़ी से बढ़ी हैं।
      • इससे सरकारों के लिये पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है और यही एक कारण हो सकता है कि केंद्र अपने राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु उत्सुक है।

भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित कानून क्या है?

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) ढाँचा:
    • वर्ष 2003 में स्थापित FRBM अधिनियम ने ऋण कटौती के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक सामान्य सरकारी ऋण को सकल घरेलू उत्पाद के 60% तक सीमित करना था।
    • हालाँकि बाद के राजकोषीय प्रक्षेप पथ इन लक्ष्यों से भटक गए, केंद्र का बकाया ऋण मूल रूप से कल्पना की गई सीमा से अधिक हो गया।
      • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिये ऋण-GDP अनुपात 60% की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार हेतु 40% और राज्य सरकारों के लिये 20% शामिल है।

राजकोषीय घाटे के बारे में चिंता करना क्यों आवश्यक है?

  • मुद्रास्फीति पर प्रभाव:
    • सरकार के राजकोषीय घाटे और देश में मुद्रास्फीति के बीच एक मज़बूत सीधा संबंध है।
    • जब किसी देश की सरकार लगातार उच्च राजकोषीय घाटे को चलाती है, तो इससे अंततः उच्च मुद्रास्फीति हो सकती है क्योंकि सरकार को अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किये गए नए धन का उपयोग करने हेतु मजबूर होना पड़ेगा।
      • महामारी के दौरान वर्ष 2020 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.17% के उच्च स्तर पर पहुँच गया। तब से इसमें काफी कमी आई है और वर्ष 2023-24 में 5.8% तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • राजकोषीय अनुशासन से रेटिंग में सुधार:
    • कम राजकोषीय घाटा बेहतर सरकारी राजकोषीय अनुशासन का संकेत देता है। इससे भारत सरकार के बांडों की रेटिंग ऊँची हो सकती है।
    • जब सरकार कर राजस्व पर अधिक निर्भर करती है और कम उधार लेती है, तो इससे ऋणदाता का विश्वास बढ़ता है तथा उधार लेने की लागत कम हो जाती है।
  • सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन:
    • उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की समग्र सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • दिसंबर 2023 में, IMF ने चेतावनी दी कि जोखिमों के कारण मध्यम अवधि में भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 100% से अधिक तक बढ़ सकता है।
    • कम राजकोषीय घाटा सरकार को विदेशों में अपने बांड अधिक आसानी से बेचने और अंतर्राष्ट्रीय बांड बाज़ार से सस्ता ऋण प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

भारत में राजकोषीय घाटे तथा राष्ट्रीय ऋण के प्रबंधन हेतु क्या किया जा सकता है?

  • राजकोषीय अनुशासन तथा सुदृढ़ीकरण:
    • FRBM अधिनियम अनुसार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्यों का अनुपालन करना महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार को सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करने के लिये राजकोषीय घाटे और GDP अनुपात को क्रमिक रूप से कम करने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।
    • व्यय को युक्तिसंगत बनाने, राजस्व वृद्धि उपायों तथा सहायिकी में सुधारों के साथ-साथ विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों के कार्यान्वन से ऋण-ग्रहण पर निर्भरता कम होगी तथा राजकोषीय असंतुलन को व्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।
  • राजस्व संग्रहण में वृद्धि:
    • कर आधार को विस्तारित करने तथा राजस्व संग्रह में सुधार के लिये कर प्रशासन एवं अनुपालन को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • राजस्व स्रोतों में विविधता लाने हेतु पर्यावरण कर अथवा विलासिता की वस्तुओं, संपत्ति पर नए कर अथवा शुल्क अधिरोपित करना।
  • व्ययों को युक्तिसंगत बनाना:
    • अक्षमताओं की पहचान करने तथा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में व्यय को प्राथमिकता देने के लिये सरकारी व्यय की व्यापक समीक्षा करना।
    • देश की कमज़ोर आबादी के लिये लक्षित समर्थन सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा गैर-आवश्यक व्यव एवं सहायिकी को कम करने के लिये नीतियाँ बनाना।
  • ऋण प्रबंधन रणनीतियाँ:
    • ऋण-ग्रहण की लागत को अनुकूलित करने तथा पुनर्वित्त जोखिमों को कम करने के लिये एक विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन रणनीति विकसित करना।
    • बाज़ार की अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिये घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों सहित निवेशक आधार एवं वित्तपोषण के स्रोतों में विविधता लाना।
  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार:
    • अर्थव्यवस्था की दक्षता तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाने के उद्देश्य से संरचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है जिसमें श्रम बाज़ार सुधार, व्यापार सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) संबंधी पहल एवं शासन व्यवस्था में सुधार करना शामिल हैं।
    • विकास क्षमता में वृद्धि करने तथा राजकोषीय स्थिरता को बनाए रखने के लिये कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक बाधाओं तथा चुनौतियों का समाधान करना।

निष्कर्ष

  • राजकोषीय सुदृढ़ीकरण उपायों के संयोजन को कार्यान्वित कर भारत राजकोषीय स्थिरता, आर्थिक विकास एवं दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित करते हुए अपने राष्ट्रीय ऋण तथा राजकोषीय घाटे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकता है।
  • स्थायी राजकोषीय का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये अल्पकालिक स्थिरीकरण प्रयासों तथा दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहित करना
  2. उच्च शिक्षण संस्थान का निजीकरण 
  3. नौकरशाही का डाउन-साइजिंग 
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को बेचना/बंद करना

उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है? 

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती
(b) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार लेना
(c) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये बैंकों से उधार लेना
(d) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये नई मुद्रा का सृजन करना

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किनको/किसको भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल किया जाता है? (2016)

  1. सड़कों, भवनों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय 
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण 
  3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अनुदत्त ऋण तथा अग्रिम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. वर्ष 2017-18 के संघीय बजट के अभीष्ट उद्देश्यों में से एक 'भारत को रूपांतरित करना, ऊर्जावान बनाना और भारत को स्वच्छ करना' है। इस उद्देश्य प्राप्त करने के लिये बजट 2017-18 सरकार द्वारा प्रस्तावित उपायों का विश्लेषण कीजिये। (2017)

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021)

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)