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सामाजिक न्याय

श्रवण क्षमता पर WHO की पहली रिपोर्ट

  • 05 Mar 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विश्‍व श्रवण दिवस से एक दिन पहले 3 मार्च को श्रवण विकार से जुड़ी पहली वैश्विक रिपोर्ट जारी की गई है।

  • यह रिपोर्ट कान से जुड़ी देखभाल सेवाओं तक पहुँच और इसमें निवेश बढ़ाकर श्रवण ह्रास की समस्या को रोकने के लिये तेज़ी से प्रयास करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

प्रमुख बिंदु

रिपोर्ट में शामिल महत्त्वपूर्ण तथ्य:  

  • वर्ष 2050 तक विश्व भर में लगभग 2.5 बिलियन लोग (या प्रत्येक 4 में से 1 व्यक्ति)  कुछ हद तक श्रवण क्षमता के ह्रास का सामना कर रहे होंगे। 
  • ऐसे में यदि समय रहते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है तो इनमें से कम-से-कम 700 मिलियन लोगों को कान और श्रवण क्षमता से जुड़ी देखभाल तथा अन्य पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता होगी।

संबंधित मुद्दे: 

  • प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव:
    • अनुपचारित श्रवण क्षमता ह्रास की स्थिति लोगों की संवाद करने, अध्ययन और जीविकोपार्जन की क्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकती है।
  • निम्न-आय वाले देशों में विशेषज्ञों की कमी:
    • लगभग 78% निम्न-आय वाले देशों में एक 'कान, नाक और गला (ENT) रोग विशेषज्ञ पर एक मिलियन से अधिक आबादी का दबाव है। 
    • 93% में प्रति ऑडियोलॉजिस्ट पर आबादी का अनुपात एक मिलियन से अधिक है। 
    • केवल 17% में प्रति मिलियन आबादी पर एक या एक से अधिक स्पीच थेरेपिस्ट (Speech Therapist) हैं।
    •  50% में प्रति मिलियन आबादी पर श्रवण बाधित लोगों के लिये एक या एक से अधिक शिक्षक हैं।
  • भारत में श्रवण विकलांगता:
    • भारत में प्रतिवर्ष 27,000 से अधिक बच्चे बहरे पैदा होते हैं। श्रवण विकलांगता या ह्रास को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है क्योंकि इसके बारे में जागरूकता का भारी अभाव है और ज़्यादातर मामलों में निदान में देरी कर दी जाती है।
  • कारण:  
    • ऐसे कई बच्चे हैं जो उन्नत श्रवण तकनीक का लाभ उठा सकते हैं, परंतु शिशुओं की श्रवण समस्याओं के बारे में कम जागरूकता होने के कारण वे छूट जाते हैं।
    • एक प्रमुख कारण जन्म के समय नवजात बच्चों में इसके लक्षणों की जाँच से जुड़े कार्यक्रमों की अनुपलब्धता और माता-पिता में जागरूकता का अभाव है।
  • सरकारी पहल:
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ राष्ट्रीय बधिरता रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (NPPCD) की शुरुआत की गई है: 
      • बीमारी या चोट के कारण परिहार्य (टालने योग्य) श्रवण ह्रास को रोकना।
      • श्रवण क्षमता ह्रास और बहरेपन के लिये उत्तरदायी कान की समस्याओं की प्रारंभिक पहचान, निदान और उपचार।
      • बहरेपन से पीड़ित सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों का चिकित्सीय पुनर्वास करना।
      • बहरेपन से पीड़ित व्यक्तियों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम की निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा अंतर-क्षेत्रीय लिंक को मज़बूत करना
      • उपकरण, सामग्री और प्रशिक्षण हेतु कर्मियों को सहायता प्रदान करते हुए कान की देखभाल सेवाओं में संस्थागत क्षमता विकसित करना।
  • आवश्यक हस्तक्षेप:
    • जाँच कार्यक्रमों का आयोजन शुरुआती निदान में सहायक हो सकता है, जो शीघ्र उपचार को बढ़ावा देगा।
    • यूनिवर्सल न्यूबोर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (UNHS) से जन्मजात श्रवण ह्रास के संबंध में जल्द पता लगाने में मदद मिलती है और यह परीक्षण नवजात शिशुओं में श्रवण ह्रास का पता लगाकर शुरुआती हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिये अतिमहत्त्वपूर्ण है।
      • हालाँकि विकसित देशों में UNHS स्क्रीनिंग अनिवार्य है, परंतु यह जाँच केरल को छोड़कर भारत में नवजात शिशुओं के लिये अनिवार्य स्वास्थ्य जाँच प्रक्रियाओं की सूची में शामिल नहीं है।

अनुशंसित रणनीतियाँ:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में श्रवण देखभाल का एकीकरण: यह वर्तमान के रोगी-चिकित्सक अंतर को समाप्त कर देगा।
  • जीवन में रणनीतिक बिंदुओं पर नैदानिक स्क्रीनिंग: श्रवण क्षमता के ह्रास और कान के रोगों के किसी भी नुकसान की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करना।
  • श्रवण सहायक प्रौद्योगिकी व सेवाओं को बढ़ावा देना: इसमें अनुशीर्षक/कैप्शनिंग और सांकेतिक भाषा में व्याख्या करने जैसे उपाय शामिल हैं जो श्रवण बाधित लोगों के लिये संचार और शिक्षा तक पहुँच में सुधार कर सकते हैं।
  • निवेश में वृद्धि: WHO द्वारा किये गए एक आकलन के अनुसार, श्रवण सहायता प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्रों पर सरकारों द्वारा निवेश किये गए प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर के बदले 16 अमेरिकी डॉलर के रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है।
  • प्रतिरक्षीकरण में वृद्धि: बच्चों में होने वाली लगभग 60% श्रवण क्षमता ह्रास को विभिन्न उपायों जैसे- रूबेला और मेनिनजाइटिस की रोकथाम के लिये टीकाकरण, मातृ एवं शिशु देखभाल में सुधार तथा ओटिटिस मीडिया (मध्यकर्णशोथ) की शीघ्र पहचान कर प्रबंधन के माध्यम से रोका जा सकता है। 
  • स्वच्छता बनाए रखना: ध्वनि नियंत्रण, सुरक्षित श्रवण और ओटोटॉक्सिक (कान पर एक विषैले प्रभाव वाले) दवाओं की निगरानी के साथ-साथ कान की स्वच्छता वयस्कों में श्रवण क्षमता को बेहतर बनाए रखने और श्रवण बाधिता की संभावना को कम करने में मदद कर सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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