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शासन व्यवस्था

स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें

  • 25 Nov 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये 

15वाँ वित्त आयोग, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017

मेन्स के लिये 

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दे और सरकार द्वारा इस दिशा में उठाए गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

15वें वित्त आयोग ने कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये सार्वजनिक खर्च को लेकर पुनः प्राथमिकता निर्धारित करने की सिफारिश की है।

  • 15वें वित्त आयोग ने वित्तीय वर्ष 2022-26 के लिये राज्यों के साथ कर राजस्व साझा करने के संबंध में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
  • वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अलग-अलग क्षेत्रों में राज्यों द्वारा किये गए सुधार के संदर्भ में प्रदर्शन प्रोत्साहन दिये जाने की भी सिफारिश की है।

प्रमुख बिंदु

15वें वित्त आयोग की सिफारिशें

  • वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है और वर्ष 2024 तक स्वास्थ्य क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय को GDP के 2.5 प्रतिशत (वर्तमान में 0.95 प्रतिशत) तक बढ़ाने की वकालत की है।
    • सिफारिशों के अनुसार, जहाँ एक ओर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से पंचायत और नगरपालिका स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, वहीं विशेष स्वास्थ्य सेवाओं के लिये निजी क्षेत्र को अवसर दिया जाना चाहिये।
    • ध्यातव्य है कि वर्तमान में सरकार द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर कुल GDP का लगभग 0.95 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया जाता है, जो कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के तहत निर्धारित लक्ष्य के संबंध में पर्याप्त नहीं है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में जन स्वास्थ्य व्यय को समयबद्ध ढंग से GDP के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने के लिये समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने के लिये सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मज़बूत संबंध स्थापित करने चाहिये और केवल आपातकाल की स्थिति में ही निजी क्षेत्र का सहारा नहीं लेना चाहिये, बल्कि उसे अन्य अवसर भी दिये जाने चाहिये। 
    • निजी क्षेत्र और सरकार के बीच मौजूद विश्वास की कमी के मुद्दे को जल्द-से-जल्द संबोधित किया जाना चाहिये।
  • ज़िला अस्पताल, सहायक-चिकित्साकर्मियों अथवा पैरामेडिकल स्टाफ के प्रशिक्षण की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधन की कमी को पूरा करने के साथ-साथ रोज़गार में भी बढ़ोतरी की जा सकेगी।
  • 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रशासन में बड़े बदलाव करने हेतु चिकित्सा अधिकारियों के लिये एक अलग संवर्ग/कैडर बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जैसा कि अखिल भारतीय सेवाएँ अधिनियम, 1951 में उल्लेख किया गया है।
    • स्वास्थ्य क्षेत्र के भीतर मौजूद समस्याओं को संबोधित करने के लिये अखिल भारतीय स्वास्थ्य सेवा के गठन की मांग लंबे समय से की जा रही है।
  • सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के कार्य करने की स्थिति में पर्याप्त सुधार किये जाने की आवश्यकता है, ज्ञात हो कि इनमें से कई डॉक्टर राज्य सरकारों द्वारा किये गए अनुबंध के आधार पर कार्य कर रहे हैं।

स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

  • वर्ष 2017 में कुल GDP के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का सार्वजनिक व्यय मात्र 1 प्रतिशत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 186 देशों की सूची में 165वें स्थान पर है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की विषम उपलब्धता भी भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अल्प-विकसित एवं गरीब राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएँ तुलनात्मक रूप से काफी खराब हैं, जबकि अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों के साथ यह स्थिति नहीं है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और गुणवत्ता के संदर्भ में वर्ष 2018 में लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में भारत को 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर रखा गया था। इस मामले में भारत का स्थान चीन (48वाँ स्थान), श्रीलंका (71वाँ स्थान), भूटान (134वाँ स्थान) और बांग्लादेश (132वाँ स्थान) जैसे देशों से भी नीचे है।
  • कम वेतन और रोज़गार की असुरक्षा के कारण भारत में प्रशिक्षित महामारीविदों (Epidemiologists) की काफी कमी है, जो कि भारत की भारत की स्वास्थ्य प्रणाली से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
    • प्रति 0.2 मिलियन जनसंख्या पर एक महामारीविद का होना अनिवार्य है। 
      • “महामारीविद वह व्यक्ति होता है जो कांटैक्ट ट्रेसिंग, कंटेनमेंट ज़ोन को चिह्नित करने और संदिग्ध मामलों को आइसोलेट करने की प्रकिया का मार्गदर्शन करने तथा उसकी निगरानी करने से संबंधित कार्य करता है।”
  • कुल GDP के प्रतिशत के रूप में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर भारत का कुल व्यय विगत तीन दशकों से 0.7 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान और विकास (R&D) के लिये किये जाने वाले कुल व्यय में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 51.8 प्रतिशत है।
    • वहीं अमेरिका द्वारा R&D पर कुल GDP का 2.8 प्रतिशत, चीन द्वारा 2.1 प्रतिशत, कोरिया द्वारा 4.4 प्रतिशत और जर्मनी द्वारा लगभग 3 प्रतिशत खर्च किया जाता है। इन देशों में R&D पर किये जाने वाले व्यय में निजी क्षेत्र का वर्चस्व है।

Inadequate-spending

सरकार द्वारा किये गए प्रयास

  • हाल ही में सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा, जल और अपशिष्ट उपचार जैसे क्षेत्रों से संबंधित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करने के लिये ‘व्यवहार्यता अंतराल अनुदान’ (VGF) योजना के विस्तार को मंज़ूरी दी है।
  • कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं का पहले से कार्यान्वयन किया जा रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने वेंटिलेटर्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कई वेंटिलेटर विकसित किये हैं।
  • ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं जहाँ सार्वजनिक अनुसंधान प्रयोगशालाओं और IIT जैसे सार्वजनिक संस्थानों ने निजी कंपनियों के साथ मिलकर घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आए व्यवधानों से निपटने के लिये परीक्षण किट, मास्क, सैनिटाइज़र, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) किट आदि का उत्पादन किया है।
  • सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हेतु कई महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं, जिनमें राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत आदि शामिल हैं।
  • भारत में विभिन्न सरकारी और निजी संगठनों के साथ कुल 17 ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) परियोजनाओं की शुरुआत की गई है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (IHR) पर आधारित ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) की शुरुआत वर्ष 2014 में की गई थी तथा इसका प्राथमिक उद्देश्य संक्रामक रोगों को रोकना, उनका पता लगाना और उनसे निपटने के लिये सदस्य देशों में क्षमता निर्माण करना है।
    • किसी भी संक्रामक रोग की निगरानी और प्रकोप की जाँच के लिये स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं का क्षमता-निर्माण ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी एजेंडा (GHSA) के एक्शन पैकेज के तहत एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान (NIHFW) भी GHSA के तहत कार्यबल विकास के लिये उत्तरदायी संस्थानों में से एक है, जिसने इस संबंध में एक परियोजना भी लागू की है।

स्रोत: द हिंदू

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