नीतिशास्त्र
फॉस्टियन बार्गेन बनाम सैद्धांतिक स्थिति
- 10 Sep 2022
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मेन्स के लिये:फॉस्टियन बार्गेन बनाम राजनीति में सैद्धांतिक स्थिति। |
फॉस्टियन बार्गेन:
- परिचय:
- इसकी शास्त्रीय परिभाषा एक ऐसे समझौते को संदर्भित करती है जहाँ कोई व्यक्ति सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य का व्यापार करता है, यह एक मूल सिद्धांत जो शक्ति, ज्ञान या धन के बदले में उनके आवश्यक अस्तित्व को परिभाषित करता है।
- यह विचार जोहान जॉर्ज फॉस्ट की जर्मन किंवदंती से आया है जिन्होंने असीमित ज्ञान और सांसारिक सुखों के लिये अपनी आत्मा शैतानों के हाथों को बेच दी थी।
- यह एक ऐसी कहानी है जिसने क्रिस्टोफर मार्लो के नाटक ‘डॉक्टर फॉस्टस’ से लेकर गोएथे के नाटक ‘फॉस्ट’ तक के महान साहित्य को प्रेरित किया है।
- इस सौदे में अनुबंध समाप्त होने पर फॉस्ट की आत्मा को शैतान द्वारा अनंत काल के लिये पुनः प्राप्त कर लिया जाता है। यह एक कठिन सौदा है।
- आधुनिक शब्दों में इसका अर्थ है किसी के विवेक के निलंबन या दमन के बदले प्राप्त अस्थायी लाभ। हालाँकि इससे समझौते का दोष दूर नहीं होता है।
- उदाहरण:
- दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी ऐसा सौदा किया होगा जब उन्होंने गुजरात चुनाव में प्रचार करते हुए बिलकिस बानो मामले में गंभीर अपराधों के लिये दोषी 11 लोगों की रिहाई की निंदा नहीं करने का फैसला किया।
- शायद अपदस्थ म्याँमार की नेता आंग सान सू ची ने भी रोहिंग्या के खिलाफ सेना के अत्याचारों के बावजूद सत्ता में आने के लिये म्याँमार के जनरलों के साथ सौदा किया था।
- भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के मामले को भी सरकार के साथ एक फॉस्टियन बार्गेन माना जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राज्यसभा के लिये नामांकन मिला।
- फॉस्टियन बार्गेन भले ही अरुचिकर और अनैतिक क्यों न हो उपयोगितावादी शब्दों में मापे गए बेहतर परिणामों द्वारा उचित ठहराया जा सकता है।
- श्री केजरीवाल गुजरात में बेहतर सरकार बना सकते हैं और आंग सान सू की ने म्याँमार में लोकतांत्रिक सरकार का निर्माण किया।
सैद्धांतिक स्थिति
- परिचय:
- फॉस्टियन बार्गेन के विपरीत कुछ राजनेता यह मानते हुए समझौता नहीं करना पसंद करते हैं कि भविष्य की भलाई के लिये बुराई के साथ समझौता करने के उपयोगितावादी कलन को अपनाने के बजाय सार्वजनिक पदों को स्वीकारना बेहतर है जो किसी के मूल्यों के अनुरूप हों।
- उदाहरण:
- बाबासाहेब अम्बेडकर ने वर्ष 1951 में इस्तीफा दे दिया जब उन्हें लगा कि नेहरू ने हिंदू कोड बिल पर कानून मंत्री के रूप में उनकी स्थिति को कम कर दिया है, जिस पर वे चर्चा करना चाहते थे।
- उनका इस्तीफा भाषण सैद्धांतिक स्थिति का एक कलात्मक बयान है।
- गांधीजी ने कोई फॉर्स्टियन सौदेबाजी नहीं की, न ही नेल्सन मंडेला या जवाहरलाल नेहरू या रवींद्रनाथ टैगोर ने।