फरज़ाद-बी गैस फील्ड: ईरान | 19 May 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ईरान ने फरज़ाद-बी गैस फील्ड के विकास हेतु उसे एक घरेलू गैस उत्पादक कंपनी पेट्रोपार्स ( Petropars) को सौप दिया।
- यह निर्णय ईरान के साथ भारत के ऊर्जा संबंधों के लिये एक बाधक है क्योंकि वर्ष 2008 में ओएनजीसी ( ONGC) विदेश लिमिटेड (OVL) ने इस गैस क्षेत्र की खोज की थी और यह उस मुद्दे पर चल रहे सहयोग का हिस्सा रहा है।
प्रमुख बिंदु
फरज़ाद-बी गैस फील्ड:
- यह फारस की खाड़ी (ईरान) में स्थित है।
- वर्ष 2002 में इस क्षेत्र की खोज के लिये ओएनजीसी विदेश, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और ऑयल इंडिया के भारतीय संघ द्वारा एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- गैस क्षेत्र की खोज के आधार पर इस क्षेत्र की व्यावसायिकता की घोषणा के पश्चात् वर्ष 2009 में इसका अनुबंध समाप्त हो गया।
- इस क्षेत्र में 19 ट्रिलियन क्यूबिक फीट से अधिक का गैस भंडार है।
- ओएनजीसी ने इस क्षेत्र में लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
- तब से संघ द्वारा इस क्षेत्र के विकास हेतु अनुबंध को सुरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा है।
- भारत और ईरान के बीच विवाद के मुख्य कारणों में दो पाइपलाइनों की स्थापना और विकास योजना पर दी जाने वाली राशि शामिल थी।
- मई 2018 तक समझौते के लगभग 75% हिस्से को अंतिम रूप प्रदान किया गया था, जब अमेरिका एकतरफा परमाणु समझौते से हट गया तो उसने ईरान पर प्रतिबंधों की घोषणा कर दी।
- जनवरी 2020 में भारत को यह जानकारी दी गई कि निकट भविष्य में ईरान स्वयं इस क्षेत्र का विकास करेगा और बाद के कुछ चरणों में भारत को उचित रूप से शामिल करना चाहेगा।
अन्य नवीन विकास:
- भारतीय व्यापारियों ने भारतीय बैंकों के साथ ईरान के घटते रुपए के भंडार पर सावधानी बरतते हुए ईरानी खरीदारों के साथ नए निर्यात अनुबंधों पर हस्ताक्षर करना लगभग बंद कर दिया है।
- वर्ष 2020 में ईरान ने भारत के 2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के प्रस्ताव को छोड़ दिया और चाबहार रेलवे लिंक (चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन) को स्वयं बनाने का फैसला किया।
भारत के लिये चिंता:
- चीन का बढ़ता प्रभुत्व:
- अप्रैल 2021 में चीन ने ईरान के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसे 25 वर्षीय 'रणनीतिक सहयोग समझौते' के रूप में वर्णित किया गया है। इस समझौते में "राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक" घटक शामिल हैं।
- चीन ईरान के साथ सुरक्षा और सैन्य साझेदारी में भी सहयोग कर रहा है।
- चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान में भारतीय प्रवेश मार्गों के लिये चीन-ईरान रणनीतिक साझेदारी एक बाधा हो सकती है और ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) से आगे की कनेक्टिविटी हो सकती है, हालाँकि ईरान ने इन परियोजनाओं में व्यवधान का कोई संकेत नहीं दिया है।
- इसके अतिरिक्त ईरान को अमेरिका के साथ भारत के राजनयिक संबंधों पर संदेह है।
- अप्रैल 2021 में चीन ने ईरान के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसे 25 वर्षीय 'रणनीतिक सहयोग समझौते' के रूप में वर्णित किया गया है। इस समझौते में "राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक" घटक शामिल हैं।
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा:
- भारत इस्लामिक राष्ट्रों से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
- भारत वर्ष 2018 के मध्य तक चीन के बाद ईरान से तेल आयात करने वाला प्रमुख देश था।
- भारत को गैस की आवश्यकता है और ईरान भौगोलिक दृष्टि से सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है, ईरान फारस की खाड़ी क्षेत्र के सभी देशों में भारत के सबसे कम दूरी पर स्थित है।
- इसके अतिरिक्त फरज़ाद-बी गैस फील्ड भारत-ईरान संबंधों में सुधार कर सकता था क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से कच्चे तेल का आयात प्रभावित रहता है।
- भारत इस्लामिक राष्ट्रों से आयात होने वाले कुल तेल का 90% हिस्सा ईरान से आयात करता था, जिसको अब रोक दिया गया है।
- इस क्षेत्र में भारत की भूमिका:
- भारत के लिये ईरान के साथ संबंध बनाए रखना पश्चिम एशिया में भारत की संतुलन नीति के लिये महत्त्वपूर्ण है फिर चाहे सऊदी अरब और इज़राइल के साथ एक नया संबंध स्थापित ही करना हो।
- मध्य एशिया से जुड़ाव:
- चाबहार न केवल दोनों देशों के बीच समुद्री संबंधों की कुंजी है, बल्कि भारत को रूस और मध्य एशिया तक पहुँचने का अवसर भी प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त, यह भारत को पाकिस्तान सीमा से दूर स्थित मार्गो से व्यापार करने की अनुमति देता है जिसने अफगानिस्तान को भारतीय सहायता और भूमिगत सभी व्यापार को रोक दिया था।
- शांतिपूर्ण अफगानिस्तान:
- भारत, अफगानिस्तान में महत्त्वपूर्ण निवेश करने के बाद हमेशा एक अफगान निर्वाचित, अफगान नेतृत्व, अफगान स्वामित्व वाली शांति और सुलह प्रक्रिया तथा अफगानिस्तान में एक लोकप्रिय लोकतांत्रिक सरकार की उम्मीद करेगा।
- हालाँकि भारत को अफगानिस्तान के पड़ोस में विकसित हो रहे ईरान-पाकिस्तान-चीन की धुरी से सावधान रहना होगा, जिसके अंदर आतंकी समूहों के जाल फैले हुए हैं।
आगे की राह
- भारत मध्य पूर्व के तेल और गैस पर सर्वाधिक निर्भर है इसलिये भारत को ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सऊदी अरब तथा इराक सहित अधिकांश प्रमुख आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिये।
- भारत को अमेरिका और ईरान के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
- विश्व में जहाँ कनेक्टिविटी या संबंधों को नई मुद्रा के रूप में वर्णित किया जाता है, भारत के इन परियोजनाओं के नुकसान से किसी अन्य देश (विशेष रूप से चीन ) को लाभ मिल सकता है।