भारतीय अर्थव्यवस्था
दीर्घकालिक विकास संभावनाओं में गिरावट
- 31 Mar 2023
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प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, EMDE, दक्षिण एशिया क्षेत्र, GDP। मुख्य परीक्षा के लिये:दीर्घकालिक विकास संभावनाओं में गिरावट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक (WB) ने "फॉलिंग लॉन्ग-टर्म ग्रोथ प्रॉस्पेक्ट्स: ट्रेंड्स, एक्सपेक्टेशंस एंड पॉलिसीज़" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा दशक (2020-2030) संपूर्ण विश्व के लिये आर्थिक विकास हेतु गिरावट का दशक हो सकता है।
- रिपोर्ट संभावित विकास के कई उपायों के व्यापक डेटाबेस का उपयोग करती है।
- यह संभावित विकास तथा उसके उत्प्रेरकों, 2020 के दशक में संभावित विकास एवं निवेश के लिये वैश्विक तथा क्षेत्रीय संभावनाओं और संभावित विकास को बढ़ाने के लिये नीतिगत विकल्पों की एक शृंखला की जाँच करता है।
प्रमुख बिंदु
- अवलोकन:
- वर्तमान में आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने वाली लगभग सभी आर्थिक ताकतें पीछे हट रही हैं।
- संभावित विकास और इसके अंतर्निहित चालकों में एक व्यापक गिरावट आई है।
- संभावित वृद्धि में मंदी इस दशक के बाकी हिस्सों में बनी रहने की संभावना है।
- दीर्घकालिक विकास संभावनाओं में गिरावट गरीबी का मुकाबला करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा अन्य प्रमुख विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDE) की क्षमता को खतरे में डालती है।
- मंदी का कारण:
- मंदी का सबसे बड़ा कारण यह है कि EMDEs निर्बलता के दीर्घकालिक दौर से गुज़र रही है।
- विश्व बैंक ने आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले मौलिक चालकों के एक पूरे सेट को देखा और पाया कि उन सभी की क्षमता कम हो रही है।
- इन मौलिक कारकों में पूंजी संचय (निवेश वृद्धि के माध्यम से), श्रम बल वृद्धि और कुल कारक उत्पादकता की वृद्धि (जो आर्थिक विकास का हिस्सा है, यह इनपुट के अधिक कुशल उपयोग से उत्पन्न होता है एवं प्रायः तकनीकी परिवर्तनों का परिणाम होता है) आदि शामिल हैं।
- भारत के संदर्भ में अवलोकन:
- हालाँकि भारत की विकास गति में पिछले दो दशकों में कमी आई है, इसके बावजूद विकास दर के संदर्भ में यह वैश्विक स्तर पर अग्रणी बना रहेगा।
- भारत दक्षिण एशिया क्षेत्र (South Asia Region- SAR) के अंतर्गत आता है, जिसके इस दशक के शेष भाग में उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है।
- SAR में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश आदि देश शामिल हैं।
- वर्ष 2022 से 2030 के बीच इस क्षेत्र में उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 6.0% बढ़ने की राह पर है, जो वर्ष 2010 के वार्षिक औसत से 5.5% अधिक है।
संभावित वैश्विक विकास को बढ़ावा देने के लिये सिफारिशें:
- मौद्रिक राजकोषीय और वित्तीय ढाँचे:
- मज़बूत मैक्रोइकोनॉमिक और वित्तीय नीति ढाँचे व्यापार चक्रों के उथल-पुथल को रोक सकते हैं।
- नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने, ऋण को कम करने और राजकोषीय विवेक को बहाल करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- निवेश में वृद्धि करना:
- परिवहन और ऊर्जा, जलवायु-स्मार्ट कृषि एवं विनिर्माण तथा भूमि और जल प्रणाली।
- उपर्युक्त क्षेत्रों में प्रमुख जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित पर्याप्त निवेश प्रतिवर्ष 0.3% तक संभावित वृद्धि में योगदान दे सकता है।
- व्यापार लागत कम करना:
- व्यापार लागत प्रभावी रूप से वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार की जाने वाली वस्तुओं की लागत को दोगुना कर देती है।
- उच्चतम शिपिंग और रसद लागत वाले देश व्यापार-सुविधा और सबसे कम शिपिंग तथा रसद लागत वाले देशों की अन्य प्रथाओं को अपनाकर अपनी व्यापार लागत को आधा कर सकते हैं।
- सेवाओं को पूंजी में बदलना:
- सेवा क्षेत्र आर्थिक विकास का नया चालक बन सकता है।
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से संबंधित डिजिटल रूप से वितरित पेशेवर सेवाओं का निर्यात वर्ष 2019 में 40% से बढ़कर 2021 में कुल सेवाओं के निर्यात का 50% से अधिक हो गया।
- श्रम शक्ति में वृद्धि:
- वर्ष 2030 तक संभावित सकल घरेलू उत्पाद के विकास में अपेक्षित मंदी का लगभग आधा हिस्सा जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण होगा।
- जैसे-जैसे समाज विकसित होता है, कामकाज़ी उम्र की आबादी के साथ श्रम-बल की भागीदारी कम हो जाती है।
- समग्र श्रम बल भागीदारी दर में दस वर्ष की रिकॉर्ड वृद्धि से वर्ष 2030 तक वैश्विक संभावित विकास दर में 0.2 प्रतिशत प्रतिवर्ष की सर्वश्रेष्ठ वृद्धि हो सकती है।