भारतीय अर्थव्यवस्था
अपेक्षित क्रेडिट घाटा - हानि आधारित ऋण प्रावधान के मानदंड
- 10 Jun 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:अपेक्षित क्रेडिट घाटा (ECL) गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ, RBI, ऋण प्रावधान मेन्स के लिये:ऋण हानि की समस्या, बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत करने के उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा घोषणा की गई कि बैंकों को अपेक्षित क्रेडिट घाटा (ECL)- हानि आधारित ऋण प्रावधान के मानदंडों को लागू करने के लिये पर्याप्त समय दिया जाएगा।
अपेक्षित क्रेडिट घाटा - हानि आधारित ऋण प्रावधान के मानदंड:
- पृष्ठभूमि:
- RBI ने पहले क्रेडिट हानि पर ECL को अपनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसके लिये अंतिम दिशा-निर्देश जारी होने के पश्चात् बैंकों को कार्यान्वयन के लिये एक वर्ष का समय दिया गया था।
- इसके अंतिम दिशा-निर्देशों की घोषणा की जानी बाकी है, हालाँकि यह उम्मीद की जाती है कि बैंकों को 1 अप्रैल, 2025 के कार्यान्वयन के लिये वित्त वर्ष 2024 तक अधिसूचित किया जा सकता है।
- भारतीय बैंक संघ (IBA) ने RBI से अनुरोध किया है कि ECL मानदंडों के कार्यान्वयन के लिये ऋणदाताओं को एक अतिरिक्त वर्ष का समय और प्रदान किया जाए।
- परिचय:
- RBI ने ऋण चूक के मामले में बैंकों को प्रावधान के तहत अपेक्षित हानि (EL)-आधारित दृष्टिकोण अपनाने का प्रस्ताव दिया है।
- इसके तहत बैंकों की वित्तीय संपत्तियों को तीन श्रेणियों (स्टेज 1, स्टेज 2, या स्टेज 3) में से एक में वर्गीकृत करने की आवश्यकता होगी।
- परिसंपत्तियों का वर्गीकरण:
- चरण 1 परिसंपत्ति:
- ये वित्तीय परिसंपत्तियाँ हैं जिन्होंने अपनी प्रारंभिक मान्यता के बाद से क्रेडिट जोखिम में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव नहीं किया है या उनके पास रिपोर्टिंग तिथि पर कम क्रेडिट जोखिम है।
- इन परिसंपत्तियों के लिये 12 महीने की अपेक्षित क्रेडिट हानियों की पहचान की जाती है और ब्याज राजस्व की गणना परिसंपत्ति की सकल अग्रणीत राशि के आधार पर की जाती है।
- ये वित्तीय परिसंपत्तियाँ हैं जिन्होंने अपनी प्रारंभिक मान्यता के बाद से क्रेडिट जोखिम में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव नहीं किया है या उनके पास रिपोर्टिंग तिथि पर कम क्रेडिट जोखिम है।
- चरण 2 परिसंपत्ति:
- ये ऐसे वित्तीय साधन हैं जिन्होंने अपनी प्रारंभिक मान्यता के बाद से क्रेडिट जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त की है, हालाँकि इनके पास हानि का कोई वस्तुनिष्ठ प्रमाण नहीं है।
- इन परिसंपत्तियों के लिये जीवनपर्यंत प्रत्याशित ऋण हानियों की पहचान की जाती है लेकिन ब्याज राजस्व की गणना अभी भी परिसंपत्ति की सकल अग्रणीत राशि के आधार पर की जाती है।
- चरण 3 परिसंपत्ति:
- ये ऐसी वित्तीय परिसंपत्तियाँ हैं जिनके पास रिपोर्टिंग तिथि पर हानि का वस्तुनिष्ठ प्रमाण है।
- इन परिसंपत्तियों के लिये आजीवन अपेक्षित ऋण हानि की पहचान की जाती है और ब्याज राजस्व की गणना शुद्ध वहन राशि के आधार पर की जाती है।
- ये ऐसी वित्तीय परिसंपत्तियाँ हैं जिनके पास रिपोर्टिंग तिथि पर हानि का वस्तुनिष्ठ प्रमाण है।
- चरण 1 परिसंपत्ति:
- लाभ:
- अपेक्षित ऋण हानि दृष्टिकोण वैश्विक स्तर पर स्वीकृत मानकों के अनुरूप बैंकिंग प्रणाली के लचीलेपन को बढ़ाएगा।
- उपगत हानि दृष्टिकोण के तहत देखी गई कमी की तुलना में इसके परिणामस्वरूप उच्च प्रावधान होने की अपेक्षा है।
- ECL बनाम IL मॉडल:
- यह नया दृष्टिकोण मौजूदा "उपगत हानि (Incurred Loss- IL)" मॉडल को प्रतिस्थापित करता है जो ऋण हानि प्रावधानीकरण में विलंब करता है तथा संभावित रूप से बैंकों के लिये क्रेडिट जोखिम बढ़ाता है।
- IL मॉडल में गंभीर दोष यह था कि सामान्यतः बैंकों ने उधारकर्त्ता को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करने के बाद देरी से अनुकूल प्रावधान किये, जिससे उनका क्रेडिट जोखिम बढ़ गया। इससे प्रणालीगत समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
- इसके अलावा ऋण हानियों की देरी से पहचान के कारण बैंकों के राजस्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, जिससे लाभांश वितरण के साथ-साथ संस्थानों के पूंजी आधार में काफी कमी आई।
- संक्रमणकालीन व्यवस्था:
- पूंजीगत हानियों को रोकने हेतु RBI ने ECL मानदंडों की शुरुआत हेतु संक्रमणकालीन व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है।
- यह चरणबद्ध कार्यान्वयन बैंकों की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी भी अतिरिक्त प्रावधान को कम करने में मदद करेगा।
ऋण-हानि प्रावधान की अवधारणा:
- परिचय:
- ऋण-हानि प्रावधान, जैसा कि RBI द्वारा परिभाषित किया गया है, बैंकों द्वारा डिफॉल्ट किये गए ऋणों से होने वाले नुकसान को कवर करने हेतु अलग रखे गए धन के आवंटन को संदर्भित करता है।
- सरल शब्दों में यह नकदी का एक भंडार है जिसे बैंक अपने ऋण चुकाने में उधारकर्त्ताओं की विफलता के परिणामस्वरूप होने वाले नुकसान के प्रभाव को कम करने हेतु रखते हैं।
- प्रावधान:
- यह प्रावधान बैंक के आय विवरण पर व्यय के रूप में कार्य करता है और इसका उपयोग तब किया जा सकता है जब उधारकर्त्ताओं के अपने ऋण चुकाने की संभावना नहीं होती है।
- ऋण-हानि भंडार का उपयोग करके बैंक अपने नकदी प्रवाह में प्रत्यक्ष कमी का सामना करने के बजाय होने वाले नुकसान को शामिल कर सकते हैं।
- उदाहरण:
- एक ऐसे परिदृश्य पर विचार कीजिये जहाँ एक बैंक ने कुल 100,000 अमेरिकी डॉलर का ऋण जारी किया है और उसके पास 10,000 अमेरिकी डॉलर का ऋण हानि प्रावधान है।
- यदि कोई उधारकर्त्ता 1,000 अमेरिकी डॉलर के ऋण पर चूक करता है लेकिन केवल 500 अमेरिकी डॉलर चुकाता है, तो बैंक हानि को कवर करने के लिये ऋण हानि प्रावधान से 500 अमेरिकी डॉलर की कटौती कर लेगा।
- निर्धारक तत्त्व:
- बैंक की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक अपेक्षित स्तर के आधार पर ऋण हानि प्रावधान का स्तर निर्धारित किया जाता है।
ऋण हानि प्रावधानों के लिये वर्तमान दृष्टिकोण
- भारत में बैंक ऋण हानि प्रावधान करने के लिये ऋण-हानि मॉडल का अनुसरण करते हैं।
- यह मॉडल मानता है कि सभी ऋणों का भुगतान तब तक किया जाएगा जब तक कि साक्ष्य अन्यथा सुझाव न दें, जैसे कि एक महत्त्वपूर्ण घटना जो हानि का संकेत देती है।
- केवल जब ऐसी घटना घटित होती है तो बिगड़ा हुआ ऋण या ऋण का पोर्टफोलियो कम मूल्य पर लिखा जाता है।
चुनौतियाँ:
- व्यय में हुई हानि के दृष्टिकोण से बैंकों को ऋण की आवश्यकता होती है जो पहले ही हो चुके हैं।
- हालाँकि वर्ष 2007-09 के वित्तीय संकट के दौरान अपेक्षित हानि की इस देरी से पहचान ने मंदी को और निकृष्ट कर दिया।
- जैसे-जैसे प्रणाली में चूक बढ़ती गई, ऋण हानियों की देरी से पहचान के कारण बैंकों ने अपने पूंजीगत भंडार को कम करते हुए उच्च प्रावधान करने पर मजबूर किया है।
- बदले में इसने बैंकों के लचीलेपन को कमज़ोर कर दिया और प्रणालीगत जोखिम पैदा कर दिया।
- इसके अतिरिक्त ऋण हानियों को पहचानने में देरी के कारण बैंकों की उत्पन्न आय को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया।
- लाभांश भुगतान के साथ संयुक्त रूप से इसने आंतरिक संसाधनों को कम करके उनके लचीलेपन से समझौता कर उनके पूंजी आधार को प्रभावित किया
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है |