भारतीय अर्थव्यवस्था
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी
- 07 Jul 2022
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:पूंजी बाज़ार, मुद्रास्फीति, एफपीआई, यूएस फेडरल रिज़र्व, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति मेन्स के लिये:एफपीआई का महत्त्व, एफपीआई के बाहर निकलने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, आरबीआई की मौद्रिक नीति, भारतीय अर्थव्यवस्था पर यूएस फेडरल रिज़र्व का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
विदेशी निवेशक भारतीय बाज़ारों से लगातार धन की निकासी कर रहे हैं। जून 2022 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने लगभग 50,203 हज़ार करोड़ रुपए के शेयर बेचे जो मार्च 2020 (जब देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी) से अब तक निकासी का सबसे उच्च स्तर है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक:
- परिचय:
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वे होते हैं जो अपनी घरेलू सीमा के बाहर के बाज़ारों में निवेश करते हैं।
- FPI के उदाहरणों में स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, अमेरिकन डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (ADR), और ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (GDR) शामिल हैं।
- FPI किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा होता है और इसे भुगतान संतुलन (BOP) पर दर्शाया जाता है
- भुगतान संतुलन (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों के विश्व के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।
- वे आमतौर पर सक्रिय शेयरधारक नहीं होते हैं और उन कंपनियों पर कोई नियंत्रण नहीं रखते हैं जिनके शेयर उनके पास हैं।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने वर्ष 2014 के पूर्ववर्ती FPI विनियमों की जगह नया FPI विनियम, 2019 लागू किया।
- FPI को अक्सर "हॉट मनी" के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार के संकट की स्थिति में सबसे पहले भागने वाले संकेतों की प्रवृत्ति को दर्शाता है। एफपीआई अधिक तरल और अस्थिर होता है, इसलिये यह FDI की तुलना में अधिक जोखिम भरा है।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वे होते हैं जो अपनी घरेलू सीमा के बाहर के बाज़ारों में निवेश करते हैं।
- FPI का महत्त्व:
- अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुँच:
- निवेशक विदेशों में ऋण की बढ़ी हुई राशि तक पहुँचने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे निवेशक अधिक लाभ और अपने इक्विटी निवेश पर उच्च रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं।
- यह घरेलू पूंजी बाज़ारों की तरलता को बढ़ाता है:
- जैसे-जैसे बाज़ार में तरलता बढ़ती जाती हैं, बाज़ार अधिक गहन और व्यापक होते जाते हैं, फलस्वरूप अधिक व्यापक श्रेणी के निवेशों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
- नतीजतन निवेशक यह जानकर विश्वास के साथ निवेश कर सकते हैं कि यदि आवश्यकता हो तो वे अपने पोर्टफोलियो का शीघ्र प्रबंधन कर सकते हैं या अपनी वित्तीय प्रतिभूतियों को बेच सकते हैं।
- यह इक्विटी बाज़ारों के विकास को बढ़ावा देता है:
- वित्तपोषण के लिये बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा बेहतर प्रदर्शन, संभावनाओं और कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार करती है।
- जैसे-जैसे बाज़ार की तरलता और कार्यक्षमता विकसित होती है, इक्विटी की कीमतें निवेशकों के लिये उचित व प्रासंगिक बन जाती हैं, अंततः ये बाज़ार की दक्षता को बढ़ावा देती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुँच:
भारत में FPI:
- एफपीआई भारतीय बाजार में सबसे बड़े गैर-प्रवर्तक शेयरधारक हैं और उनके निवेश निर्णयों का शेयर की कीमतों व बाज़ार की समग्र दिशा पर भारी असर पड़ता है।
- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों में FPI (मूल्य के संदर्भ में) की होल्डिंग 31 मार्च, 2022 को99 लाख करोड़ रुपए थी, जो अक्तूबर 2021 से निरंतर बिकवाली के कारण 31 दिसंबर, 2021 के 53.80 लाख करोड़ रुपए से 3.36% की कम थी।
- एफपीआई की निजी बैंकों, टेक कंपनियों और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जैसी बड़ी कंपनियों में हिस्सेदारी है।
- नेशनल सिक्योरिटीज़ डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) से उपलब्ध आंँकड़ों के अनुसार, अमेरिका में मई 2022 तक57 लाख करोड़ रुपए के FPI निवेश का एक बड़ा हिस्सा है, इसके बाद मॉरीशस में 5.24 लाख करोड़ रुपए, सिंगापुर में 4.25 लाख करोड़ रुपए और लक्ज़मबर्ग में 3.58 लाख करोड़ रुपए है।
FPI को प्रोत्साहित करने वाले कारक:
- आर्थिक वृद्धि
- आर्थिक वृद्धि से लाभ की अपेक्षा FPI सहित निवेशकों को देश के बाज़ारों के प्रति आकर्षित करता है।
- नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड (NDSL) के आंँकड़ों के अनुसार, FPI से वर्ष 2002 में लगभग 3,682 करोड़ रुपए आए।
- वर्ष 2010 में यह बढ़कर79 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बावजूद उस अवधि में आर्थिक उत्पादन के समवर्ती विस्तार से संबंधित है, जिसमें देश में उस समय-सीमा में FPI की बिक्री देखी गई थी।
- जब भारत ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो आर्थिक विकास को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुई थीं, उस समय अकेले FPI ने (मार्च 2020 में) 1.18 लाख करोड़ रुपए निकाले।
- यूएस फेडरल रिज़र्व:
- फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में परिवर्तन या अन्य फैसलों से न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण को भी आकार देती है और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों पर प्रभाव भी डालती है।
- फेडरल रिज़र्व और भारतीय बाज़ारों का सह:संबंध:
- भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विकसित देशों जैसे- अमेरिका और कई (मुख्य रूप से पश्चिमी) यूरोपीय देशों की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति तथा उच्च ब्याज दरें होती हैं।
- अत: वित्तीय संस्थान, विशेष रूप से विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors- FIIs), कम ब्याज दरों पर अमेरिका से पैसा उधार लेकर उस पैसे को अधिक ब्याज दर वाले देशों के सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं।
- जब यूएस फेडरल अपनी घरेलू ब्याज दरों को बढ़ाता है, तो दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच का अंतर कम हो जाता है।
- यह भारत को करेंसी कैरी ट्रेड (Currency Carry Trade) हेतु कम आकर्षक बनाता है जिसके परिणामस्वरूप कुछ धन के भारतीय बाज़ारों से बाहर निकलने और अमेरिका में वापस आने की उम्मीद की जा सकती है।
FPI भारतीय होल्डिंग्स क्यों बेच रहे हैं?
- महामारी के बाद के प्रभाव:
- महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी असमान रही है।
- वर्ष 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने जीवन और आजीविका को तबाह कर दिया।
- अर्थव्यवस्था तब फिर से लड़खड़ा गई जब वर्ष 2021 की शुरुआत में ही तीसरी लहर के रूप में ओमिक्रॉन संस्करण के प्रसार को देखा गया था।
- इसके साथ ही महामारी के थमने के बाद इसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की मांग में कमी की समस्या पैदा कर दी।
- पेंट-अप डिमांड आमतौर पर कम खर्च की अवधि के बाद सेवा या उत्पाद की मांग में तेज़ी से वृद्धि का वर्णन करती है।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष:
- इसके कारण इन दोनों देशों से सूरजमुखी और गेहूँ की आपूर्ति प्रभावित हुई, जिससे इन फसलों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि देखी गई।
- जैसा कि सामान्य रूप से दुनिया भर में आपूर्ति में मज़बूती देखी गई, कमोडिटी की कीमतों में भी वृद्धि हुई और समग्र मुद्रास्फीति में तेज़ी आई।
- भारत में मूल्य वृद्धि में तेज़ गति देखी गई जो पाँच महीनों के लिये रिज़र्व बैंक के 6% के स्तर से ऊपर रही, यह अप्रैल में8% थी, बाद के महीने में थोड़ा कम आक्रामक यानी 7.04% हो गई।
- S&P ग्लोबल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) जून में घटकर9 पर आ गया, जो पिछले महीने में 54.6 के साथ नौ महीने में सबसे निचला स्तर था। विशेषज्ञ इसका श्रेय मुद्रास्फीति के दबाव को देते हैं, जिसने सर्वेक्षण आधारित निष्कर्षों के अनुसार, जून में व्यावसायिक विश्वास की भावना को 27 महीने के निचले स्तर पर पहुँचा दिया।
- इसके कारण इन दोनों देशों से सूरजमुखी और गेहूँ की आपूर्ति प्रभावित हुई, जिससे इन फसलों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि देखी गई।
- यूएस फेडरल रिज़र्व:
- हाल ही में यूएस फेडरल रिज़र्व ने लगभग 30 वर्षों में सबसे आक्रामक ब्याज दर वृद्धि की घोषणा की, बढ़ती मुद्रास्फीति के खिलाफ अपने संघर्ष में उधार दर को75% बढ़ा दिया।
- जब यू.एस. और अन्य बाज़ारों में ब्याज दरों के बीच का अंतर कम हो जाता है और अगर ऐसी घटना डॉलर के मज़बूत होने के साथ होती है, तो निवेशकों की उचित रिटर्न प्राप्त करने की क्षमता प्रभावित होती है।
- यदि डॉलर रुपए के मुकाबले मज़बूत होता है, तो निवेशक संपत्ति के परिसमापन के लिये एक निश्चित मात्रा में रुपए की तुलना में कम डॉलर चुकाने में सक्षम होता है।
- निवेशक भारत, ब्राज़ील या दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते बाज़ारों जैसे 'जोखिम भरा' के रूप में देखी जाने वाली संपत्तियों से बाहर निकलते हैं।
- दरअसल डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हो रहा है।
- जुलाई 2022 में रुपए ने ग्रीनबैक के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर33 को छू लिया।
- हाल ही में यूएस फेडरल रिज़र्व ने लगभग 30 वर्षों में सबसे आक्रामक ब्याज दर वृद्धि की घोषणा की, बढ़ती मुद्रास्फीति के खिलाफ अपने संघर्ष में उधार दर को75% बढ़ा दिया।
FPI सेलऑफ का प्रभाव:
- स्थानीय मुद्रा:
- जब FPI अपने शेयरों कों बेचते हैं और अपने घरेलू बाज़ारों में धन वापस भेजते हैं तो स्थानीय मुद्रा में कमी आती है।
- निवेशक अपने घरेलू बाज़ार की मुद्रा के बदले रुपए बेचते हैं।
- जैसे-जैसे बाज़ार में रुपए की आपूर्ति बढ़ती है इसकी कीमत घटती जाती है।
- परिणामस्वरूप हमें सामान की एक ही इकाई को आयात करने के लिये और अधिक धन खर्च करना पड़ता है।
- जब FPI अपने शेयरों कों बेचते हैं और अपने घरेलू बाज़ारों में धन वापस भेजते हैं तो स्थानीय मुद्रा में कमी आती है।
- निर्यात और आयात पर:
- भारत दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल आयातकों में से एक है।
- डॉलर की तुलना में कमज़ोर रुपए के परिणामस्वरूप कच्चे तेल का आयात अधिक महंगा होता है जो पूरी अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में लागत-संचालित मुद्रास्फीतिकारी दबाव डाल सकता है जो कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
- दूसरी ओर भारत का निर्यात विशेष रूप से आईटी और आईटी-सक्षम सेवाएँ रुपए के संबंध में मज़बूत डॉलर के चलते कुछ हद तक लाभान्वित होंगे।
- हालांँकि निर्यात बाज़ार में मज़बूत प्रति स्पर्द्धा के कारण निर्यातकों को समान लाभ नहीं मिल सकता है।
- भंडार:
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले नौ महीनों में 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर गिरकर 10 जून 2022 तक45 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जिसका मुख्य कारण डॉलर का अधिमूल्यन और FPI निकासी है।
- अन्य प्रभाव:
- विदेशी निवेशकों के बाहर निकलने से स्टॉक और इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश में गिरावट आ सकती है।
- डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य कम होने से आयात बिल अधिक रहता है, जिससे मुद्रास्फीति और अधिक बढ़ जाती है।
- उच्च मुद्रास्फीति समग्र बाज़ार के लिये हानिकारक है। अगर रुपया मज़बूत नहीं होता है, तो FPI का बहिर्वाह जारी रहेगा, जो एक और नकारात्मक प्रभाव है।
- यात्रियों तथा विदेश में पढ़ने वाले छात्रों को बैंकों से डॉलर खरीदने के लिये अधिक रुपए खर्च करने होंगे।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को जारी किया जाता है जो खुद को सीधे पंजीकृत किये बिना भारतीय शेयर बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं? (a) जमा प्रमाणपत्र उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |