पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण | 24 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये

 सफर, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

मेन्स के लिये 

उत्तर भारत में फसल अवशेषों को जलाने के कारण बढ़ता प्रदूषण  

चर्चा में क्यों? 

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) द्वारा नियुक्त ‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ [Environment Pollution (Prevention and Control) Authority- EPCA] ने पंजाब एवं हरियाणा में फसल अवशेषों को जल्द जलाने को लेकर चिंता जताई।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत सरकार के तहत ‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’ (System of Air Quality and Weather Forecasting and Research- SAFAR) के अनुमान के अनुसार, पिछले कुछ ही दिनों में फसल अवशेष जलाने की संख्या शून्य से बढ़कर 42 हो गई है। 
    • सफर (SAFAR) ज़मीनी डेटा संगृहीत करने के लिये INSAT-3D एवं नासा (NASA) के उपग्रह का उपयोग करता है।
  • वर्ष 2019 में, पंजाब में 20 मिलियन टन के कुल अनुमानित फसल अवशेष का लगभग 9.8 मिलियन टन फसल अवशेष जला दिया गया था।
    • इसी तरह हरियाणा में कुल 7 मिलियन टन फसल अवशेष में से 1.24 मिलियन टन फसल अवशेष को जला दिया गया था।

फसल अवशेष जलाना (Stubble Burning):

  • पंजाब एवं हरियाणा में रबी फसल की बुवाई हेतु खेतों को तैयार करने के लिये फसल के अवशेष को साफ करना एक पारंपरिक प्रथा है।
  • फसल अवशेष जलाने की प्रक्रिया अक्तूबर महीने के आसपास शुरू होती है और दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ नवंबर के महीने में चरम पर पहुँच जाती है।
  • परिणामतः दिल्ली में प्रदूषण के अन्य स्रोतों के साथ-साथ पंजाब एवं हरियाणा में धान की भूसी जलाने से होने वाले प्रदूषकों से दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रों की वायु की गुणवत्ता अत्यंत खराब हो जाती है।

कारण:

  • धान के रकबे में वृद्धि: चावल पर दी जाने वाली सब्सिडी एवं सुनिश्चित खरीद के कारण चावल की पैदावार में वृद्धि हुई है।   
  • पंजाब संरक्षण अधोभूमि अधिनियम, 2009 (Punjab Preservation of Subsoil Water Act, 2009) के कारण भूजल निष्कर्षण को हतोत्साहित करने के लिये जून के अंत तक धान की बुवाई में देरी होती है।
    • परिणामतः धान की कटाई में भी देरी होती है जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के साथ फसल अवशेष जलाने की प्रक्रिया से पूरी तरह से मेल खाता है।
  • तकनीक: कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास से बड़े रकबे वाले किसान धान कटाई के रूप में सिर्फ चावल के दाने वाले हिस्से को काटते हैं शेष डंठलों को खेत में ही छोड़ देते हैं। जिनको बाद में जला दिया जाता है।
    • इससे पहले इन फसल अवशेषों का उपयोग किसानों द्वारा खाना पकाने के लिये, पशुओं के स्थान को गर्म रखने आदि के रूप में किया जाता था।   
  • उच्च सिलिका सामग्री (High Silica Content): गैर-बासमती चावल के संदर्भ में धान की भूसी को चारे के रूप में इस्तेमाल करना खराब माना जाता है क्योंकि इसमें उच्च सिलिका सामग्री (High Silica Content) विद्यमान होती है।

प्रभाव:

  • फसल अवशेषों को जलाने से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है जिनमें मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और ‘कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन’ (Carcinogenic Polycyclic Aromatic Hydrocarbons) जैसी हानिकारक गैसें होती हैं। 
  • गेहूँ के भूसे को जलाने से पर्यावरण प्रदूषण होने के अलावा मिट्टी की उर्वरता में भी कमी आती है।
  • इसके अतिरिक्त फसल अवशेषों को जलाने से उत्पन्न गर्मी मृदा में प्रवेश करती है, जिससे मृदा की नमी में कमी एवं लाभकारी रोगाणुओं की मृत्यु हो जाती है।

आगे की राह:

  • अधिक मशीनीकरण, पशुधन में कमी, कंपोस्ट खाद बनाने हेतु दीर्घ-अवधि आवश्यकता तथा अवशेषों का कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं होने के कारण खेतों में फसलों के अवशेष जलाए जा रहे हैं। यह न केवल ग्लोबल वार्मिंग के लिये बल्कि वायु की गुणवत्ता, मिट्टी की सेहत और मानव स्वास्थ्य के लिये भी बेहद दुष्प्रभावी है। 
  • फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिये कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजना’ के तहत किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत की 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • हैप्पी सीडर’ (Turbo Happy Seeder-THS) के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।  हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है।
  • फसल अवशेषों को न जलाने से ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (NCAP) को बढ़ावा मिलेगा, जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक वार्षिक पीएम सांद्रता (PM Concentration) में 20-30% तक प्रदूषण को कम करना है।

स्रोत: द हिंदू