संसदीय उत्पादकता में वृद्धि | 16 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, संसद की उत्पादकता, संसदीय बहस, स्थगन, संसद में प्रस्ताव। मेन्स के लिये:संसद की कार्य प्रणाली से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति ने संसद में बढ़ते व्यवधानों पर प्रकाश डाला तथा टकरावपूर्ण राजनीति से रचनात्मक चर्चा की ओर जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- उन्होंने राजनीतिक दलों से संसदीय शिष्टाचार को बनाए रखने, आम सहमति को बढ़ावा देने, लोकतंत्र को सुदृढ़ करने और जनता का विश्वास पुनः स्थापित करने के लिये सार्थक संवाद को प्राथमिकता देने का आग्रह किया।
भारत में संसद की कार्य प्रणाली में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सदन में बार-बार व्यवधान:
- अक्सर विपक्षी विरोधों के कारण होने वाले व्यवधानों से बहुमूल्य समय और संसाधनों की बर्बादी होती है तथा संसद के विधायी और प्रतिनिधि कार्यों को नुकसान पहुँचता है।
- इसके परिणामस्वरूप प्रमुख विधेयक पर्याप्त चर्चा के बिना पारित कर दिये जाते हैं, जिससे विधायी बहस की गुणवत्ता और संसदीय कार्यवाही की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिये संसद के 2023 के शीतकालीन सत्र में महत्त्वपूर्ण व्यवधानों का सामना करना पड़ा, जिसमें संसदीय सुरक्षा में उल्लंघन जैसे मुद्दों से संबंधित विरोध प्रदर्शनों पर 141 विपक्षी सांसदों को निलंबित करना भी शामिल था।
- अक्सर विपक्षी विरोधों के कारण होने वाले व्यवधानों से बहुमूल्य समय और संसाधनों की बर्बादी होती है तथा संसद के विधायी और प्रतिनिधि कार्यों को नुकसान पहुँचता है।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण और प्रतिकूल राजनीति:
- सरकार और विपक्ष के बीच तीव्र ध्रुवीकरण ने विरोधी राजनीति को बढ़ावा दिया है, जिससे विधायी प्रगति अवरुद्ध हो गई है।
- यह विभाजनकारी दृष्टिकोण प्रभावी शासन के लिये आवश्यक सर्वसम्मति को कमज़ोर करता है।
- सरकार और विपक्ष के बीच तीव्र ध्रुवीकरण ने विरोधी राजनीति को बढ़ावा दिया है, जिससे विधायी प्रगति अवरुद्ध हो गई है।
- सत्रों में भागीदारी का अभाव:
- 17वीं लोकसभा (2019-2024) के दौरान सभी सत्रों में औसत उपस्थिति 79% थी, लेकिन चर्चा में भागीदारी सीमित थी, जिसमें प्रत्येक संसद सदस्य ने औसतन 45 चर्चाओं में भाग लिया।
- कुछ सत्रों में उपस्थिति कम देखी गई, जैसे कि वर्ष 2021 का बजट सत्र, जिसमें मुख्य रूप से महामारी के प्रभाव के कारण 69% तक की गिरावट दर्ज की गई।
- विधि की खराब गुणवत्ता:
- विधि की गुणवत्ता अक्सर अपर्याप्त बहस और जाँच के कारण प्रभावित होती है तथा कभी-कभी विधेयक जल्दबाज़ी में पारित कर दिये जाते हैं, जिससे स्पष्टता और प्रभावी कार्यान्वयन प्रभावित होता है।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को सूचना आयोग की स्वायत्तता को कमज़ोर करने तथा हितधारकों के साथ अपर्याप्त परामर्श को दर्शाने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा।
- विधि की गुणवत्ता अक्सर अपर्याप्त बहस और जाँच के कारण प्रभावित होती है तथा कभी-कभी विधेयक जल्दबाज़ी में पारित कर दिये जाते हैं, जिससे स्पष्टता और प्रभावी कार्यान्वयन प्रभावित होता है।
- लैंगिक समानता का अभाव:
- 18 वीं लोकसभा में 74 महिलाएँ निर्वाचित हुईं, जो कुल सदस्यों का 13.6% थीं।
- यह 17 वीं लोकसभा की तुलना में थोड़ी कम हैं, जहाँ महिलाएँ 14.4% सदस्य थीं।
- इसके अतिरिक्त राज्यसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 14.05% है।
- अप्रैल 2024 तक विश्व भर में संसद सदस्यों में महिलाओं की संख्या 26.9% है।
- 18 वीं लोकसभा में 74 महिलाएँ निर्वाचित हुईं, जो कुल सदस्यों का 13.6% थीं।
संसद का समुचित संचालन सुनिश्चित करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
- आचार संहिता: संसद सदस्यों (MPs) के आचरण का मार्गदर्शन करने, शिष्टाचार को बढ़ावा देने, व्यवधान को कम करने तथा सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये एक आचार संहिता स्थापित की गई है।
- प्रौद्योगिकी अपनाना: संसद ने अपनी कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाया है।
- भारत में संसदीय कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग से सांसदों के बीच अधिक जवाबदेही और शिष्टाचार को बढ़ावा मिला है , क्योंकि वास्तविक समय के प्रसारण से सार्वजनिक जाँच बढ़ जाती है।
- इससे उनका व्यवहार अधिक अनुशासित हुआ है तथा संसद सदस्यों को इस बात का अनुभव हो गया है कि उन पर नज़र रखी जा रही है।
- इसके अतिरिक्त सांसदों के बीच बेहतर संचार के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तथा ऐप विकसित किये गए हैं।
- भारत में संसदीय कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग से सांसदों के बीच अधिक जवाबदेही और शिष्टाचार को बढ़ावा मिला है , क्योंकि वास्तविक समय के प्रसारण से सार्वजनिक जाँच बढ़ जाती है।
- समिति प्रथा: संसद विधेयकों, नीतियों और सरकारी पहलों को मुख्य सदन में पहुँचने से पहले जाँचने के लिये एक मज़बूत समिति प्रथा का उपयोग करती है, जिससे विधायी प्रक्रियाओं की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि विशेषज्ञों की राय एकीकृत हो, जिससे विधायी कार्यों की प्रभावशीलता और गुणवत्ता में सुधार हो।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई:
- सांसदों के व्यवधानकारी व्यवहार को अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से संबोधित किया जाता है। जो सांसद अनियंत्रित आचरण में संलिप्त होते हैं, उन्हें सदन से निलंबन या निष्कासन का सामना करना पड़ सकता है।
- यह उपाय जवाबदेही सुनिश्चित करता है और संसदीय प्रक्रिया को कमज़ोर करने वाले व्यवहार को हतोत्साहित करता है।
- सांसदों के व्यवधानकारी व्यवहार को अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से संबोधित किया जाता है। जो सांसद अनियंत्रित आचरण में संलिप्त होते हैं, उन्हें सदन से निलंबन या निष्कासन का सामना करना पड़ सकता है।
भारत में संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता कैसे बढ़ाई जा सकती है?
- रचनात्मक परिचर्चा के प्रति प्रतिबद्धता:
- राजनीतिक दलों को रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और बाधा उत्पन्न करने वाली रणनीतियों से दूर रहना चाहिये।
- आम सहमति निर्माण को बढ़ावा देना चाहिये, जिसमें सरकार विपक्ष की चिंताओं का समाधान करे और विपक्ष संबंधी व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करे।
- यह दृष्टिकोण अधिक उत्पादक परिचर्चा सुनिश्चित करता है, तथा संसदीय कार्यवाही की समग्र प्रभावशीलता में योगदान देता है।
- राजनीतिक दलों को रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और बाधा उत्पन्न करने वाली रणनीतियों से दूर रहना चाहिये।
- पीठासीन अधिकारी की भूमिका को सुदृढ़ करना:
- संसदीय कार्यकुशलता में सुधार लाने के लिये सदन के अध्यक्ष/सभापति को व्यवधानों का त्वरित समाधान करने तथा संसदीय नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिये अधिक शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये।
- इससे शिष्टाचार बनाए रखने में सहायता मिलेगी, जिससे विधायी प्रक्रिया अनावश्यक रुकावटों के बगैर सुचारू रूप से आगे बढ़ सकेगी।
- जवाबदेही संस्कृति को बढ़ावा देना:
- संसद में जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये राजनीतिक दलों को सांसदों की उपस्थिति, परिचर्चा में भागीदारी और मतदान रिकॉर्ड की निगरानी करके यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे विधायी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लें।
- साथियों का दबाव, पार्टी अनुशासन और अनुकरणीय सांसदों के उदाहरणों का अनुसरण करने से सत्यनिष्ठा और रचनात्मक संवाद को बढ़ावा मिलेगा तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को दृढ़ता मिलेगी।
- इसके अतिरिक्त सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का लाभ उठाकर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सांसदों के कार्य और रिकॉर्ड जनता के लिये सुलभ हों, जिससे अधिक जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा।
- जन सहभागिता और पारदर्शिता: संसद की कार्य-पद्धति के बारे में लोगों को अधिक जागरूक करने से संस्था में लोक न्यास का निर्माण हो सकता है।
- बेहतर मीडिया कवरेज और निर्णय लेने में पारदर्शिता से अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- राजनीति में युवाओं की सहभागिता: नैतिक आचरण और प्रभावी शासन को बढ़ावा देते हुए युवा नेताओं को सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रोत्साहित करने से संसदीय कार्यवाही में नए दृष्टिकोण शामिल किये जा सकते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संसद को निरंतर व्यवधान, अल्प सहभागिता और अप्रभावी विधान जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालाँकि आचार संहिता को लागू करना, प्रौद्योगिकी को उपयोग में लाना, समिति प्रणालियों को सुदृढ़ करना और अनुशासनात्मक उपायों के कार्यान्वन जैसे सुधार इन मुद्दों का समाधान करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। अपने लोकतांत्रिक कार्य में सुधार लाने हेतु, संसद को पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इससे संसद द्वारा लोगों का प्रभावी प्रतिनिधित्व और प्रभावशाली, सार्थक विधि निर्माण सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. संसद में अक्सर व्यवधान उत्पन्न होने के क्या कारण हैं? निर्बाध बहस सुनिश्चित करने के लिये प्रक्रियाओं में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी लोकसभा की अनन्य शक्तियाँ हैं? (2022)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आपकी दृष्टि में भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021) |