भारतीय राजव्यवस्था
मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करना
- 22 Feb 2022
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प्रिलिम्स के लिये:मौलिक कर्त्तव्य। मेन्स के लिये:मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व, स्वर्ण सिंह समिति, मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करना। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक, अच्छी तरह से परिभाषित कानूनों के माध्यम से देशभक्ति और राष्ट्र की एकता सहित नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों को लागू करने के लिये एक याचिका का जवाब देने हेतु केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया।
- मौलिक कर्त्तव्यों को संविधान के अनुच्छेद 51A (भाग IVA) के तहत निर्दिष्ट किया गया है, ये देश के आदर्शों को बनाए रखने और इसके विकास में योगदान करने का प्रयास करते हैं।
मौलिक कर्त्तव्य:
- मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान (तत्कालीन सोवियत संघ) से प्रेरित है।
- इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
- मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था।
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों की तरह, मौलिक कर्तव्य भी प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं।
- मौलिक कर्त्तव्यों की सूची:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व
- अधिकार और कर्तव्य परस्पर संबंधित हैं।
- मौलिक कर्तव्य देश के नागरिकों के लिये एक प्रकार से सचेतक का कार्य करते हैं, यद्यपि संविधान ने उन्हें विशेष रूप से कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, इसके लिये नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण एवं लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
- जो राष्ट्र का अपमान करते हैं, उन लोगों की असामाजिक गतिविधियों जैसे- झंडा जलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि के खिलाफ ये कर्तव्य चेतावनी के रूप में काम करते हैं।
- ये अनुशासन और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में मदद करते हैं।
- ये कानून की संवैधानिकता का निर्धारण करने में न्यायालय की सहायता करते हैं। उदाहरण के लिये विधायिकाओं द्वारा पारित कोई भी कानून, जब कानून की संवैधानिक वैधता के लिये न्यायालय में ले जाया जाता है और यदि वह किसी मौलिक कर्तव्य को बढ़ावा दे रहा है, तो ऐसे कानून को उचित माना जाएगा।
मौलिक कर्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने की आवश्यकता:
- प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति के 'कार्तव्य' पर बल दिया जाता रहा है।
- ये शास्त्र समाज, देश और विशेष रूप से अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों पर बल देते हैं।
- गीता और रामायण लोगों को अपने अधिकारों की परवाह किये बिना कर्तव्यों का पालन करने का आदेश देते हैं।
- तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान में अधिकारों और कर्तव्यों को समान स्तर पर रखा गया था।
- कम-से-कम कुछ मौलिक कर्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने तथा भारत की रक्षा, राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार करने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिये देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने संबंधी मौलिक कर्तव्य।
- चीन के एक महाशक्ति के रूप में उभरने के बाद ये मौलिक कर्तव्य और भी महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
- नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर वर्मा समिति (1999) ने कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन हेतु कानूनी प्रावधानों का समर्थन किया। समिति द्वारा प्रस्तावित कुछ प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज, भारत के संविधान और राष्ट्रगान का अनादर नहीं कर सकता है।
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम (1955) जाति और धर्म से संबंधित किसी भी अपराध के मामले में दंड का प्रावधान करता है।
- याचिका में तर्क दिया गया था कि मौलिक कर्तव्यों का पालन न करने पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) 19 (भाषण की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ अधिकारों का संरक्षण) और 21 (जीवन का अधिकार) के तहत प्रदान किये गए गारंटीकृत मौलिक अधिकारों पर सीधा असर पड़ता है।
- उदाहरण के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में प्रदर्शनकारियों द्वारा विरोध की नई अवैध प्रवृत्ति के कारण मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की आवश्यकता को महसूस किया जाता है।
मौलिक कर्तव्यों पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
- रंगनाथ मिश्रा निर्णय (2003) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को न केवल कानूनी प्रतिबंधों से बल्कि सामाजिक प्रतिबंधों द्वारा भी लागू किया जाना चाहिये।
- एम्स छात्र संघ बनाम एम्स मामले (2001) में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह माना गया था कि मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों की तरह समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
- हालांँकि मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों की तरह लागू नहीं किया जा सकता है लेकिन उन्हें भाग IV A में कर्तव्यों के रूप में नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता है।
आगे की राह
- मौलिक कर्तव्यों के "उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता" हेतु एक समान नीति की आवश्यकता है जो "नागरिकों को ज़िम्मेदार बनाने में काफी मददगार साबित होगी"।