चुनावी बॉण्ड | 20 May 2021
चर्चा में क्यों?
विधानसभाओं के चुनाव के दौरान तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में 695.34 करोड़ रुपए के चुनावी बॉण्ड बेचे गए।
- वर्ष 2018 में योजना शुरू होने के बाद से किसी भी विधानसभा चुनाव में चुनावी बॉण्ड से प्राप्त यह राशि सबसे अधिक थी।
प्रमुख बिंदु
- चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
- चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
- यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
- केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29(A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है।
- बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
- एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।
- इसमें दो प्रमुख समस्याएँ हैं-
- एक, पारदर्शिता की कमी, क्योंकि जनता को यह नहीं पता कि कौन किसको क्या दे रहा है और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है।
- दूसरा, मंत्रालयों के माध्यम से केवल सरकार के पास ही इसकी जानकारी रहती है।
- हालाँकि भारत के चुनाव आयोग ने कहा है कि यह योजना नकद वित्तपोषण की पुरानी प्रणाली की तुलना में एक कदम आगे है, जो कि जवाबदेह नहीं थी।
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को लागू करने के लिये प्रमुख संस्था केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) ने फैसला किया है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड योजना के माध्यम से चंदा देने वालों के विवरण का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है और इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा।