भूगोल
अल-नीनो और सूखा
- 14 Dec 2020
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चर्चा में क्यों?
भारतीय विज्ञान संस्थान (Institute of Science’s- IISc) वायुमंडलीय और महासागरीय विज्ञान केंद्र (Centre for Atmospheric and Oceanic Sciences- CAOS) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सूखे का कारण केवल अल-नीनो ही नहीं था।
- अल नीनो बारंबार होने वाली जलवायविक घटना है, जिसके दौरान प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) में पेरू के समीप समुद्री तट गर्म होने लगता है।
- यह जून और सितंबर के मध्य भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के विफल होने का सामान्य कारण है।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन का निष्कर्ष:
- पिछली सदी में भारतीय ग्रीष्म ऋतु मानसून के दौरान सूखे की कुल घटनाओं में से 43% के लिये उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र के वायुमंडलीय विक्षोभों को उत्तरदायी माना जा सकता है।
- भारत में सूखे की ये घटनाएँ उन वर्षों के दौरान घटित हुईं जब अल-नीनो अनुपस्थित था।
सूखे की स्थिति का कारण:
- अगस्त माह के अंत में बारिश में अचानक और तेज़ी से गिरावट (जो उत्तरी अटलांटिक महासागर के मध्य अक्षांश क्षेत्र में वायुमंडलीय विक्षोभों से जुड़ी हुई थी) वायुमंडलीय धाराओं के एक ऐसे पैटर्न का निर्माण कर रही थी जो भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ रही थी तथा भारतीय मानसून को ‘बाधित' कर रही थी।
सूखे के पैटर्न में परिवर्तन:
- अल नीनो वाले वर्षों के दौरान:
- जून के मध्य से ही बारिश में कमी शुरू हो जाती है और यह कमी पूरे देश में देखी जाती है।
- सामान्य वर्ष के दौरान:
- मानसून के दौरान सामान्य बारिश होती है लेकिन अगस्त में अचानक और तेज़ी से गिरावट देखी गई है।
- अगस्त माह के दौरान बारिश में कमी का कारण:
- मध्य अक्षांशों में एक असामान्य वायुमंडलीय विक्षोभ।
- मध्य अक्षांश पृथ्वी पर 23° और 66° उत्तर के बीच स्थित स्थानिक क्षेत्र हैं।
- यह विक्षोभ ऊपरी वायुमंडल की उन पवनों के कारण उत्पन्न होता है जो असामान्य रूप से ठंडे उत्तरी अटलांटिक जल निकायों के ऊपर चक्रवाती परिसंचरण के साथ अंतःक्रिया करते हैं।
- वायुराशियों की परिणामी तरंग जिसे ‘रॉस्बी तरंग’ (Rossby Wave) के नाम से जाना जाता है, उत्तरी अटलांटिक से तिब्बत के पठार की ओर बढ़ती है और अगस्त के मध्य में भारतीय उपमहाद्वीप से टकराती है। ये तरंगें/ बारिश को अवरोधित करती है तथा सूखे जैसी स्थिति को जन्म देती हैं।
- मध्य अक्षांशों में एक असामान्य वायुमंडलीय विक्षोभ।
भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले अन्य वायुमंडलीय परिसंचरण:
हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD):
- IOD समुद्री सतह के तापमान का एक अनियमित दोलन है, जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर की सतह का तापमान पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में क्रमिक रूप से कम एवं अधिक होता रहता है।
- हिंद महासागर द्विधुव (IOD) को भारतीय नीनो भी कहा जाता है।
- सरल शब्दों में कहें तो, पश्चिमी हिंदी महासागर का पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बारी-बारी से गर्म व ठंडा होना ही हिंद महासागर द्विध्रुव कहलाता है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून को सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करता है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव भारतीय मानसून के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करता है।
हिंद महासागर द्विध्रुव के प्रकारः
- भारतीय मानसून पर प्रभाव के आधार पर IOD के तीन प्रकार हैं।
(i) तटस्थ/ सामान्य हिंद महासागर द्विध्रुव
(ii) नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव तथा
(iii) सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव
तटस्थ/ सामान्य IOD:
- तटस्थ IOD में पूर्वी हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी तट के पास प्रशांत महासागर से गर्म जल के प्रवाह के कारण पूर्वी हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान सामान्य से थोड़ा बढ़ जाता है।
- वस्तुतः पूर्वी हिंद महासागर में सामान्य से थोड़ी अधिक वर्षा होती है।
- तटस्थ (Neature) IOD लगभग सामान्य मानसून की तरह होता है।
नकारात्मक IOD:
- जब पूर्वी हिंद महासागर का तापमान पश्चिमी हिंद महासागर की तुलना में सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है।
- वस्तुतः लगातार लंबे समय तक प्रशांत महासागर से पूर्वी हिंद महासागर में गर्म जल के प्रवाह के कारण पूर्वी हिंद महासागर के तापमान में अधिक वृद्धि हो जाती है।
सकारात्मक IOD:
- जब पश्चिमी हिंद महासागर पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में बहुत अधिक गर्म हो जाता है, तो इसे सकारात्मक IOD कहते हैं।
हिंद महासागर द्विध्रुव के प्रभाव:
- तटस्थ IOD का प्रभाव लगभग नगण्य रहता है।
- इससे पूर्वी हिंद महासागर व ऑस्ट्रेलिया का उत्तर पश्चिमी भाग थोड़ी अधिक (सामान्य से) वर्षा प्राप्त करता है।
- नकारात्मक IOD का प्रभाव भारतीय मानसून पर नकारात्मक पड़ता है।
- इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है जिससे वर्षा की तीव्रता में कमी आती है।
- ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ व पश्चिमी हिंद महासागर में काफी कम वर्षा होती है।
- जबकि इसके विपरीत पूर्वी हिंद महासागर व आस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी भाग में अधिक वर्षा होती है।
- इसके कारण भारत में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
- सकारात्मक IOD का भारतीय मानसून पर (वर्षा पर) सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इससे भारतीय उपमहाद्वीप व पश्चिमी हिंद महासागर अपेक्षाकृत अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं।
- सकारात्मक IOD में जहाँ भारतीय उपमहाद्वीप व पश्चिमी हिंद महासागर औसत से अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं वहीं उत्तर पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया व पूर्वी हिंद महासागर औसत से कम वर्षा प्राप्त करते हैं।
- इसके कारण आस्ट्रेलिया में सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Madden-Julian Oscillation- MJO)
- मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है।
- इसे साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव लाने के लिये ज़िम्मेदार माना जाता है।
- मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है।
- यह निरंतर प्रवाहित होने वाली घटना है एवं हिंद व प्रशांत महासागरों में सबसे प्रभावशाली है।
- इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक प्रचलित प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्य रेखा के चारों ओर घूमती है वर्षा की शुरुआत हो जाती है।
- इस घटना का नामकरण दो वैज्ञानिकों रोलैंड मैडेन और पॉल जूलियन के नाम पर रखा गया था जिन्होंने 1971 में इसकी खोज की थी।
वैश्विक मौसमीं घटनाओं पर MJO का प्रभाव:
- इंडियन ओशन डाईपोल (The Indian Ocean Dipole-IOD), अल-नीनो (El-Nino) और मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन(Madden-julian Oscillation-MJO) सभी महासागरीय और वायुमंडलीय घटनाएँ हैं, जो बड़े पैमाने पर मौसम को प्रभावित करती हैं। इंडियन ओशन डाईपोल केवल हिंद महासागर से संबंधित है, लेकिन अन्य दो वैश्विक स्तर पर मौसम को मध्य अक्षांश तक प्रभावित करती हैं।
- IOD और अल-नीनो अपने पूर्ववर्ती स्थिति में बने हुए हैं, जबकि MJO एक निरंतर प्रवाहित होने वाली भौगोलिक घटना है।
- MJO की यात्रा आठ चरणों से होकर गुज़रती है।
- मानसून के दौरान जब यह हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी बारिश होती है।
- दूसरी ओर, जब यह एक लंबे चक्र की समयावधि के रूप में होता है और प्रशांत महासागर के ऊपर रहता है तब भारतीय मानसूनी मौसम में कम वर्षा होती है।
- यह उष्णकटिबंध में अत्यधिक परंतु दमित स्वरूप के साथ वर्षा की गतिविधियों को संपादित करता है जो कि भारतीय मानसूनी वर्षा के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।