भारतीय राजनीति
न्यायिक नियुक्तियों में “प्रभावी परामर्श”
- 12 Sep 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:कॉलेजियम प्रणाली, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:कॉलेजियम व्यवस्था का विकास और इसकी आलोचना, सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अपने फैसले में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता और प्रभावी परामर्श के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय कॉलेजियम से जुड़े एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि न्यायिक नियुक्तियों में 'प्रभावी परामर्श का अभाव' न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है।
- न्यायालय ने प्रक्रियागत अनुपालन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए पदोन्नति हेतु अनुशंसित दो न्यायिक अधिकारियों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- दिसंबर, 2022 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दो ज़िला न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने इस पर पुनर्विचार का अनुरोध किया, जिससे आगामी समीक्षा की आवश्यकता हुई।
- बाद में उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दो अन्य न्यायिक अधिकारियों की सिफारिश की। शुरू में सिफारिश किये गए न्यायाधीशों ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसमें यह तर्क दिया गया कि उनकी वरिष्ठता को अनदेखा किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- स्थिरता: सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय और तृतीय न्यायाधीश मामलों को आधार बनाते हुए यह मूल्यांकन किया कि क्या उसके पास नियुक्ति संबंधी सिफारिशों की समीक्षा करने का क्षेत्राधिकार है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि इसकी समीक्षा केवल इस बात पर केंद्रित थी कि क्या सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम के प्रस्ताव के बाद "प्रभावी परामर्श" उम्मीदवारों की "योग्यता" या "उपयुक्तता" का मूल्यांकन किये बिना हुआ था।
- उचित प्रक्रिया : सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशों को अस्वीकार करते हुए इसके नामों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के साथ "प्रभावी परामर्श" किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह प्रस्ताव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित होने के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से सिफारिशें नहीं कर सकते। निर्णय लेने में मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के बीच "सामूहिक परामर्श" शामिल होना चाहिये।
- स्थिरता: सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय और तृतीय न्यायाधीश मामलों को आधार बनाते हुए यह मूल्यांकन किया कि क्या उसके पास नियुक्ति संबंधी सिफारिशों की समीक्षा करने का क्षेत्राधिकार है।
- यह निर्णय न्यायिक नियुक्तियों में स्थापित प्रक्रियाओं के अनुपालन की आवश्यकता पर बल देता है तथा वरिष्ठता के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिससे न्यायाधीशों की पदोन्नति में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?
- प्रक्रिया: उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम व्यवस्था पर आधारित प्रक्रिया का पालन करती है, जिसे विभिन्न ऐतिहासिक मामलों के माध्यम से स्थापित किया गया था, जैसे कि द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993) तथा तृतीय न्यायाधीश मामला (1998) में इसे और स्पष्ट किया गया था।
- कॉलेजियम व्यवस्था न्यायपालिका को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की सिफारिश करने का अधिकार देती है, जिसमें सरकार की भूमिका सीमित होती है।
- तीसरे न्यायाधीश मामले (1998) के बाद, केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ने प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) के माध्यम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों को औपचारिक रूप दिया।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- यह कॉलेजियम उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये अनुशंसित व्यक्ति के बारे में राय बनाएगा, जिसमें संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों तथा उस उच्च न्यायालय के मामलों से परिचित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विचारों को ध्यान में रखा जाएगा।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये प्रक्रिया ज्ञापन (MOP):
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश: उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, उस न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से नियुक्ति के लिये नामों की सिफारिश करता है।
- राज्य स्तरीय समीक्षा: सिफारिशें मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पास उनके विचार जानने के लिये भेजी जाती हैं, हालाँकि उनके पास सिफारिश को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है।
- केन्द्र सरकार की प्रक्रिया: राज्यपाल सिफारिशों को केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री के पास भेजते हैं, जो पृष्ठभूमि की जाँच करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम समीक्षा: इसके बाद सिफारिशें मुख्य न्यायाधीश को भेजी जाती हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम से परामर्श करते हैं। यदि इसके लिये स्वीकृति मिल जाती है, तो नाम अंतिम स्वीकृति के लिये राष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं।
- सरकार की भूमिका नियुक्तियों में देरी करने या चिंता जताने तक सीमित है, लेकिन वह कॉलेजियम की सिफारिशों को अस्विकार नहीं कर सकती।
न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
- परिचय: यह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की व्यवस्था है, जो संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- कॉलेजियम व्यवस्था का विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): इसे एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) के नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें कहा गया कि न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर CJI की सिफारिशों को “तर्कपूर्ण (मज़बूत) कारणों” के आधार पर खारिज किया जा सकता है।
- इस निर्णय से अगले 12 वर्षों तक न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को न्यायपालिका पर प्राथमिकता मिल गयी।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993): सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993) में सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम व्यवस्था की शुरुआत की, जिसमें कहा गया कि "परामर्श" का सही अर्थ "सहमति" है।
- इस निर्णय ने सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र सरकार के लिये बाध्यकारी बना दिया और न्यायपालिका को उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण का अधिकार प्रदान किया।
- इसमें यह भी कहा गया कि यह मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय नहीं है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से बनाई गई संस्थागत राय है।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम को 5 सदस्यीय निकाय में विस्तारित किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उनके 4 वरिष्ठतम सहयोगी शामिल थे।
- इसमें सिफारिश को चुनौती देने के लिये दो सीमित आधार भी बताए गए हैं।
- प्रासंगिक व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ "प्रभावी परामर्श" का अभाव।
- संविधान के अनुच्छेद 217 (उच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय) में निर्दिष्ट योग्यताओं के आधार पर उम्मीदवार की अयोग्यता।
- कॉलेजियम व्यवस्था के प्रमुख:
- सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्व CJI (भारत के मुख्य न्यायाधीश) करते हैं और इसमें न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस उच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिये अनुशंसित नाम मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुमोदन के बाद ही सरकार के समक्ष पहुँचते हैं।
- उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल कॉलेजियम व्यवस्था के माध्यम से की जाती है और कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद ही उसमें सरकार की भूमिका होती है।
नियुक्ति |
परामर्श |
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति |
सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश |
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति |
2 सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश |
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का स्थानांतरण |
दोनों उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश। |
कॉलेजियम व्यवस्था के दोष क्या हैं?
- पारदर्शिता का अभाव: इस व्यवस्था की आलोचना इसकी अपारदर्शिता के कारण की जाती है तथा नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में जनता की जानकारी सीमित होती है।
- भाई-भतीजावाद: ऐसी चिंता है कि न्यायपालिका के भीतर व्यक्तिगत सम्पर्क और संबंध (अंकल जज सिंड्रोम) नियुक्तियों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से पक्षपात हो सकता है।
- अकुशलता: न्यायिक नियुक्तियों के लिये स्थायी आयोग की अनुपस्थिति रिक्तियों को भरने में देरी और अकुशलता का कारण बन सकती है।
निष्कर्ष
भारत में न्यायिक नियुक्तियों को लेकर चल रही चर्चा पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता बढ़ाने के लिये कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को संशोधित करने या तुलनीय सुधारों को अपनाने जैसे उपायों को लागू करने से इन चिंताओं को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है तथा न्यायपालिका के संचालन के समग्र सुधार में योगदान दिया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।(2017) |