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मानसून पर धूल का प्रभाव

  • 06 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक शोध से पता चला है कि मध्य-पूर्व के रेगिस्तानी इलाकों (एशियाई रेगिस्तान) से चलने वाली हवाओं और उनके साथ आने वाले वायुमंडलीय धूल कणों से भारतीय मानसून कैसे प्रभावित होता है।

Iranian-Plateau

प्रमुख बिंदु:

धूल-कण:

  • पृथ्वी या रेत के बहुत छोटे शुष्क कणों को धूल कहते हैं।
    • PM10 और PM2.5 आकार वाले कणों को धूल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • धूल  के प्रमुख स्रोतों में मृदा, रेत और चट्टानों का प्राकृतिक रूप से अपरदित होना शामिल है।
  • शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उद्योगों के संचालन आदि कार्य धूल उत्सर्जन के प्रमुख कारक हैं।
  • धूल कणों को मानसून और तूफान को प्रभावित करने के साथ-साथ वर्षावनों को निषेचित करने के लिये भी जाना जाता है।
  • धूल उत्सर्जन योजना जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील है तथा इन तंत्रों और धूल के प्रभावों को समझने से हमारे मानसून प्रणालियों को वैश्विक जलवायु परिवर्तन का सामना करने में मदद मिलेगी।

मानसून पर धूल का प्रभाव:

  • परिचय:
    • तेज़ हवाएँ रेगिस्तान से उठने वाले धूल के तूफान सौर विकिरण को अवशोषित कर सकती हैं और इससे धूलकण बहुत अधिक गर्म हो सकते हैं। 
    • ये गर्म धूल कण वायुमंडल को इतना अधिक गर्म कर देते हैं कि उससे हवा का दबाव बदल जाता है, हवा का संचार पैटर्न बदल सकता है और समुद्र से आने वाली नमी की मात्रा भी बढ़ जाएगी, जिसके कारण वहाँ भारी बारिश हो सकती है। इस घटना को 'एलिवेटेड हीट पंप' कहा जाता है।
  • भारतीय मानसून पर प्रभाव:
    • मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) से और ईरान के पठार से निकलने वाली धूल भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (दक्षिण पश्चिम मानसून ) को भी प्रभावित करती है।
      • गर्म हवा ईरानी पठार के वातावरण को गर्म कर सकती है और अरब प्रायद्वीप के रेगिस्तानों में परिसंचरण वृद्धि मध्य-पूर्व से धूल उत्सर्जन को बढ़ा सकती है।
  • विपरीत प्रभाव :
    • भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून का विपरीत प्रभाव पश्चिम एशिया में हवाओं को अधिक प्रभावी बनाकर धूल उत्सर्जन में वृद्धि कर सकता है।
    • एक मज़बूत मानसून पश्चिम एशिया में भी परिसंचरण कर सकता है और धूल की मात्रा को बढ़ा सकता है।

मानव-जनित धूल का प्रभाव:

  • विभिन्न मतों के अनुसार, कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप द्वारा उत्सर्जित मानव-जनित एरोसोल गर्मियों में मानसूनी वर्षा को कम कर सकता है, जबकि अन्य ने पाया है कि धूल जैसे शोषक एरोसोल मानसून परिसंचरण को मज़बूत कर सकते हैं।
    • सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूँदों के हवा या किसी अन्य गैस में मौजूदगी को एरोसोल (Aerosol) कहा जाता है। एरोसोल प्राकृतिक या मानव जनित हो सकते हैं। हवा में उपस्थित एरोसोल को वायुमंडलीय एरोसोल कहा जाता है। धुंध, धूल, वायुमंडलीय प्रदूषक कण तथा धुआँ एरोसोल के उदाहरण हैं। 
    • एंथ्रोपोज़ेनिक एरोसोल मानव-जनित एयरोसोल के उदाहरण हैं। इनका निर्माण धुंध कण, प्रदूषक और धुएँ से होता है।
    • एंथ्रोपोज़ेनिक एरोसोल में सल्फेट, नाइट्रेट और कार्बोनेसस एरोसोल शामिल हैं तथा यह मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन दहन स्रोतों से उत्पन्न होते हैं। 
  • हालाँकि हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि इसकी वजह से भारत में गर्मियों में मानसूनी वर्षा की मजबूत स्थिति देखी जा सकती हैं।
    • एरोसोल कण, जैसे- धूल, वर्षा प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मानसून में रेगिस्तान की भूमिका:

  • दुनिया भर में रेगिस्तान मानसून की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • पश्चिमी चीन में तक्लामाकन मरुस्थल से तथा पूर्वी एशिया में गोबी मरुस्थल से धूल एरोसोल का परिवहन पूर्वी चीन में होने पर यह पूर्वी एशिया में ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावित कर सकता है।
    • दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य में कुछ छोटे रेगिस्तान हैं जो उत्तरी अफ्रीकी मानसून को प्रभावित करते हैं।

विश्व के प्रमुख रेगिस्तान:

Non-Polar-Arid-Land

मानसून:

परिचय:

  • एक मानसून अक्सर तूफान या आंधी के समान मूसलाधार बारिश करता है। लेकिन इसमें एक अंतर यह है कि मानसून एक तूफान नहीं है बल्कि यह एक क्षेत्र विशेष में हुए मौसमी पवन में बदलाव है।
  • यह मौसमी परिवर्तन गर्मियों में भारी बारिश का कारण बन सकता है, लेकिन अन्य समय यह एक शुष्क  अवस्था में रहता है।

मानसून की उत्पत्ति:

  • मानसून (अरबी भाषा के मौसिम जिसका अर्थ "मौसम" होता है) की उत्पत्ति भूमि द्रव्यमान और आसन्न महासागर के बीच तापमान में अंतर के कारण होती है।
  • जल की अपेक्षा स्थल तीव्रता से गर्म और ठंडा होता है, अतः सूर्यास्त के पश्चात् ताप विकिरण द्वारा धरातल शीतल होने लगता है तथा स्थल पर अधिक वायुदाब तथा जल पर न्यून वायुदाब का क्षेत्र निर्मित हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा बदल जाती है।
  • मानसून के मौसम के अंतिम चरण में हवाएँ फिर से विपरीत दिशा का अनुसरण करती हैं।

प्रकार:

  • नम या आर्द्र मानसून:
    • एक आर्द्र मानसून आमतौर पर गर्मियों के महीनों (अप्रैल से सितंबर तक) के दौरान भारी बारिश करता है।
    • औसतन भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 75% और उत्तरी अमेरिकी मानसून क्षेत्र की लगभग 50% वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान होती है। 
    • आर्द्र मानसून की शुरुआत तब होती है जब हवाएँ समुद्र के ऊपर से स्थल तक ठंडी, आर्द्र हवाओं का परिसंचरण करती हैं।
  • शुष्क  मानसून:
    • शुष्क मानसून की स्थिति आमतौर पर अक्तूबर से अप्रैल के मध्य होती है ।
    • महासागरों से आने वाली शुष्क हवाएँ, गर्म जलवायु क्षेत्रों जैसे कि मंगोलिया और उत्तर-पश्चिमी चीन से भारत के दक्षिण में प्रवेश करती हैं।
    • ग्रीष्म मानसून या समकक्ष की तुलना में शुष्क मानसून कम शक्तिशाली होता है।
    • शीतकालीन मानसून की स्थिति तब देखी जाती है जब जल  की तुलना में स्थल तेज़ी से ठंडा हो जाता है और स्थल पर एक उच्च दाब विकसित होता है, जो किसी भी समुद्री हवा ( शुष्क अवधि के दौरान) को स्थल की ओर आने से रोकता है। 

अवस्थिति:

  • उष्णकटिबंधीय मानसून 0 और 23.5 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के मध्य तथा उपोष्णकटिबंधीय मानसून 23.5 डिग्री और 35 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के मध्य बनता है।
  • सबसे शक्तिशाली मानसून की अवस्थिति उत्तर में भारत एवं दक्षिण एशिया तथा दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में होती है।
  • मानसून की उपस्थिति मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों, मध्य अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी क्षेत्रों तथा  पश्चिमी अफ्रीका में भी पाई जाती है।

स्रोत: द हिंदू

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