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भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन में आर्थिक मंदी: प्रभाव और निहितार्थ

  • 20 Oct 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

सकल घरेलू उत्पाद, कोविड-19

मेन्स के लिये:

चीन की आर्थिक मंदी  का भारत और विश्व पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो’ ने बताया है कि मौजूदा वर्ष की तीसरी तिमाही में चीन की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि धीमी होकर 4.9% पर पहुँच गई है।

  • विशेषज्ञों द्वारा चिंता ज़ाहिर की गई है कि चीन की धीमी अर्थव्यवस्था प्रारंभिक वैश्विक सुधार और भारत जैसी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित कर सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • विकास दर में कमी के कारण:
    • बेस इफेक्ट: चीन ने कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी में बेहतर प्रदर्शन किया था। इसलिये कई जानकारों का मानना है कि इस तिमाही बेस इफेक्ट के कारण चीन की विकास दर में गिरावट दर्ज की गई है।
      • चीन आर्थिक विकास के 'परिपक्व' चरण से गुज़र रहा है यानी एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसने दो दशकों में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की है, ऐसे में उसे जल्द ही मंदी का भी सामना करना पड़ेगा।
      • ‘बेस इफेक्ट’ का आशय किसी दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर तुलना के आधार या संदर्भ के प्रभाव से है।
    • ईंधन/बिजली संकट: कोयले की कीमतों में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप बिजली की कमी ने प्रांतीय सरकार को बिजली आपूर्ति में कटौती करने के लिये प्रेरित किया।
      • चीन में यह ईंधन/बिजली संकट कारखानों को प्रभावित कर रहा है और देश के दक्षिण- पूर्व औद्योगिक क्षेत्र में इकाइयों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है।
    • रियल एस्टेट सेक्टर में उथल-पुथल: रियल एस्टेट सेक्टर, जो चीन के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, में अब प्रत्यक्ष मंदी के संकेत दिखने लगे हैं।
      • ‘एवरग्रांडे संकट’ को इस मंदी का प्रमुख कारण माना जा सकता है।
      • ‘एवरग्रांडे समूह’ चीन में एक रियल एस्टेट कंपनी है, जो अरबों डॉलर की बकाया राशि चुकाने हेतु संघर्ष कर रही है।

एवरग्रांडे संकट

  • ‘एवरग्रांडे समूह’ के नेतृत्व में रियल एस्टेट क्षेत्र महामारी के बाद चीन की आर्थिक रिकवरी का मुख्य चालक था।
    • हालाँकि चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में प्रगतिशील मंदी और नए घरों की मांग में कमी ने इसके नकदी प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
  • इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहाँ देश की घरेलू संपत्ति का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा घरों में ही रह गया और इसे बाज़ार में निवेश नहीं किया गया।
  • इस प्रकार सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी का पतन समग्र अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है और यह वैश्विक वस्तुओं एवं वित्तीय बाज़ारों को भी व्यापक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • हालाँकि कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के लिये यह खतरा काफी छोटा है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
    • वैश्विक रिकवरी: महामारी पर चीन के नियंत्रण और अपने उद्योगों को फिर से शुरू करने के चीन के प्रयासों ने महामारी के बाद वैश्विक रिकवरी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • प्रणालीगत जोखिमों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था में हो रही गिरावट वैश्विक महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक रिकवरी में सुधार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
    • ‘व्यापार युद्ध’ का प्रभाव: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के परिणामस्वरूप चीन के निर्यात में कमी आई है, जिसके कारण उन देशों (विशेषकर दक्षिण एशियाई देशों) को नुकसान हुआ है जो घटकों और अन्य निर्मित माल के उत्पादन के लिये 'आपूर्ति मूल्य शृंखला' हेतु चीन पर निर्भर हैं।
  • भारत पर प्रभाव
    • आयात: चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 के पहले नौ महीनों में लगभग 50% बढ़ा है।
      • इसके अलावा भारत स्मार्टफोन और ऑटोमोबाइल घटकों, दूरसंचार उपकरण, सक्रिय दवा सामग्री तथा अन्य रसायनों आदि के लिये भी चीन से आयात पर निर्भर है।
      • इस प्रकार चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट आने से भारत के उपभोक्ता बाज़ार और बुनियादी अवसंरचना के विकास पर असर पड़ेगा।
    • निर्यात: इसके अलावा यदि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आती है, तो इससे भारत के लौह अयस्क निर्यात, जिसमें से अधिकांश चीन को निर्यात होता है, पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
    • निवेश: चीन की धीमी अर्थव्यवस्था, भारत से निवेश के बहिर्वाह को गति प्रदान कर सकती है। यदि भारत आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाता है, तो यह अगला वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकता है।

आगे की राह

  • आर्थिक सुधार के अलावा भारत को चीन से आयात विविधीकरण का भी प्रयास करना चाहिये, निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता विकसित करनी चाहिये और वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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