भारतीय राजव्यवस्था
पीजी मेडिकल कोर्स में अधिवास-आधारित आरक्षण असंवैधानिक
- 03 Feb 2025
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प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, डोमिसाइल कोटा, समानता का अधिकार, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा, अनुच्छेद 5, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16, अनुच्छेद 19 मेन्स के लिये:शैक्षिक नीतियाँ, समता और आरक्षण, राष्ट्रीय एकता पर आरक्षण नीतियों का प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने “तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल और अन्य, 2025” मामले में स्नातकोत्तर (PG) मेडिकल कोर्स में प्रवेश हेतु अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया।
- यह निर्णय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस निर्णय के विरुद्ध अपील के बाद आया है, जिसमें पहले ही ऐसे आरक्षणों को समाप्त कर दिया गया था।
नोट: अधिवास कोटा एक ऐसी आरक्षण प्रणाली को संदर्भित करता है, जिसके अंतर्गत राज्य पीजी मेडिकल सीटों का एक हिस्सा उन उम्मीदवारों को आवंटित करते हैं जो उसी राज्य के निवासी हैं।
- पीजी मेडिकल सीटों के लिये, केंद्र कुल प्रवेश के 50% के लिये काउंसलिंग आयोजित करता है, जबकि शेष 50% सीटों में प्रवेश राज्य की काउंसलिंग निकायों द्वारा किया जाते हैं। इसी 50% के अंतर्गत, राज्य मूलनिवासी उम्मीदवारों के लिये एक कोटा निर्धारित करते हैं।
पीजी मेडिकल कोर्स में अधिवास-आधारित आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया?
- समानता का उल्लंघन: न्यायालय ने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिये निवास-आधारित अथवा अधिवास-आधारित आरक्षण प्रदान किया जाना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे छात्रों के बीच उनके निवास राज्य के आधार पर असमानता होगी।
- यह समानता के अधिकार (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है।
- निर्णय के अनुसार, भारतीय नागरिकों को देश में कहीं भी निवास करने और अपना व्यवसाय करने का अधिकार है।
- राज्य के निवास के आधार पर पीजी प्रवेश को प्रतिबंधित करने से व्यावसायिक गतिशीलता में अनावश्यक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- योग्यता आधारित प्रवेश: न्यायालय ने निर्णय दिया कि पीजी मेडिकल प्रवेश योग्यता आधारित होना चाहिये, जिसका निर्धारण राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) द्वारा किया जाए, तथा संस्थान आधारित आरक्षण के अतिरिक्त राज्य कोटे की सीटों के लिये भी योग्यता आधारित चयन का पालन किया जाना चाहिये।
- पूर्व के प्रवेशों पर कोई प्रभाव नहीं: इस निर्णय से उन प्रवेशों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो पहले से ही अधिवास-आधारित आरक्षण के आधार पर दिये जा चुके हैं।
- अधिवास बनाम निवास: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "अधिवास" का तात्पर्य किसी व्यक्ति के विधिक गृह/घर से है, न कि निवास स्थान से, जैसा कि प्रायः समझा जाता है।
- विधिक रूप से, भारत में एकल अधिवास है- "भारत का अधिवास", जैसा कि अनुच्छेद 5 के अंतर्गत परिभाषित किया गया है और सभी भारतीय इस एकल अधिवास को साझा करते हैं तथा राज्य-विशिष्ट अथवा राज्यवार अधिवास की अवधारणा भारतीय विधिक प्रणाली के तहत विधिमान्य नहीं है।
- पूर्ववर्ती निर्णय: पीठ ने वर्ष 1984 के डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ मामले का भी उल्लेख किया, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने MBBS पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण की अनुमति दी थी।
- इसे इस आधार पर उचित ठहराया गया था कि राज्य मेडिकल कॉलेजों के लिये बुनियादी ढाँचे और संचालन लागत में निवेश करता है, जिससे स्थानीय निवासियों के लिये कुछ सीटें आरक्षित करना उचित हो जाता है।
- हालाँकि, यह तर्क पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों पर लागू नहीं होता, जहाँ ऐसे आरक्षण को असंवैधानिक माना जाता है।
नोट: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 के अंतर्गत पिछड़े वर्गों या वंचित समूहों के लिये शैक्षणिक संस्थानों तथा लोक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- हालाँकि इन अनुच्छेदों में स्पष्ट रूप से अधिवास का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इनमें सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जिसे कुछ राज्य स्थानीय निवासियों को शामिल करने के रूप में व्याख्या करते हैं।
शिक्षा में अधिवास-आधारित आरक्षण के गुण और दोष क्या हैं?
- गुण:
- स्थानीय अवसर: यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अवसर प्राप्त हों।
- यह वंचित समुदायों के लिये सकारात्मक कार्रवाई के रूप में कार्य करता है।
- आर्थिक सशक्तीकरण: इससे स्थानीय समुदायों को उच्च शिक्षा की बेहतर पहुँच प्रदान करते हुए उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलती है।
- स्थानीय विकास को बढ़ावा: आरक्षण संबंधी विधियाँ एक ऐसे शिक्षित कार्यबल के सृजन में योगदान दे सकती हैं जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा और क्षेत्र के विकास में भी सहायता मिलेगी।
- स्थानीय अवसर: यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अवसर प्राप्त हों।
- दोष:
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: इससे संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त देश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आवागमन करने और शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव: अधिवास-आधारित कोटा राष्ट्र को विभाजित कर सकता है और एक ऐसे एकीकृत शैक्षिक और व्यावसायिक परिवेश के सर्जन में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जहाँ सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त हों।
- आर्थिक अकुशलता: चूँकि आरक्षण संबंधी इन कानूनों से शीर्ष प्रतिभाओं तक पहुँच सीमित होती है, नवाचार में बाधा उत्पन्न होती है और निवेश प्रभावित होता है इसलिये ये कानून निजी क्षेत्र के लिये अहितकारी हो सकते हैं।
- मूल कारणों का समाधान: इन कानूनों में महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे- अपर्याप्त शिक्षा बुनियादी ढाँचा, NEET और संयुक्त प्रवेश परीक्षा परीक्षाओं के लिये अपर्याप्त मार्गदर्शन तथा शैक्षणिक पाठ्यक्रम एवं उद्योग कौशल आवश्यकताओं के बीच बेमेल पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
आगे की राह
- योग्यता आधारित प्रवेश: योग्यता आधारित प्रवेश पर ज़ोर दिया जाना, विशेष रूप से स्नातकोत्तर स्तर पर, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के स्थान पर कौशल और योग्यता को बढ़ावा देने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
- पिछड़े समुदायों के लिये एक अस्थायी सहायता प्रणाली आवश्यक है, लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्य यह होना चाहिये कि क्षेत्रीय कोटा पर निर्भर हुए बिना उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: स्थानीय छात्रों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, शिक्षक प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश करने की आवश्यकता है।
- सहायता प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण: गरीबी और प्रवासन के निवारण हेतु पहलों सहित सामाजिक सहायता को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित किया जाना चाहिये, ताकि समग्र देश में सुभेद्य समूह की उच्च शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. शिक्षा में अधिवास-आधारित आरक्षण से संबंधित सांविधानिक और विधिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये? |
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