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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सौर ऊर्जा में घरेलू विनिर्माण

  • 21 Jul 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मॉडल तथा निर्माताओं की स्वीकृत सूची 

मेन्स के लिये:

सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत की स्थिति, मॉडल तथा निर्माताओं की स्वीकृत सूची संबंधी चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने भारत में फोटोवोल्टिक मॉड्यूल निर्माताओं की पहली सूची जारी की है।

  • MNRE ने सौर सेल और मॉड्यूल निर्माताओं के लिये मॉडल तथा निर्माताओं की स्वीकृत सूची (Approved List of Models and Manufacturers- ALMM) के तहत पंजीकरण करना अनिवार्य कर दिया है, जो सौर आयात और आत्मनिर्भरता को लेकर भारत की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक प्रारंभिक कदम है।
  • हालाँकि घरेलू निर्माताओं की क्षमता की कमी को देखते हुए ALMM आयातित फोटोवोल्टिक मॉड्यूल की खरीद की योजना बनाने में भारतीय डेवलपर्स को निकट अवधि में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

सौर प्रौद्योगिकी

  • सोलर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic- SPV): SPV सेल्स,  सौर विकिरण (सूर्य के प्रकाश) को विद्युत में परिवर्तित करते हैं। एक सोलर सेल, सिलिकॉन (Silicon) या अन्य सामग्रियों से बना एक अर्द्धचालक उपकरण (Semiconducting Device) होता है, जो सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर विद्युत ऊर्जा  उत्पन्न करता है।
  • सोलर थर्मल (Solar Thermal): सोलर थर्मल पावर सिस्टम (Solar Thermal Power Systems), जिसे कंसंट्रेटिंग सोलर पावर सिस्टम (Concentrating Solar Power Systems) के रूप में भी जाना जाता है, विद्युत उत्पादन हेतु थर्मल रूट का उपयोग कर उच्च तापमान ऊर्जा स्रोत के रूप में संकेंद्रित सौर विकिरण (Concentrated Solar Radiation) का उपयोग करता है।

प्रमुख बिंदु:

ALMM के संदर्भ में: 

  • ALMM, भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) प्रमाणन का अनुपालन करने वाले सौर सेल और मॉड्यूल के पात्र मॉडल तथा निर्माताओं को सूचीबद्ध करता है।
    • इसकी घोषणा वर्ष 2019 में  की गई थी।
  • इसका उद्देश्य मॉड्यूल के लिये एक गुणवत्तापूर्ण बेंचमार्क प्रदान करना और निम्न गुणवत्ता वाले चीनी निर्माताओं को भारत में अपने उत्पादों को डंप करने से रोकना है।
  • सरकारी स्वामित्व वाली सौर परियोजनाओं की आपूर्ति करने वाले निर्माताओं के लिये ALMM में सूचीबद्ध होना अनिवार्य है।
    • इस सूची में शामिल मॉडल और निर्माता ही देश में स्थापित सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत परियोजनाओं में उपयोग के लिये पात्र होंगे।
  • इसके अलावा "सरकार" शब्द में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और केंद्रीय एवं राज्य संगठन/स्वायत्त निकाय शामिल हैं।

ALMM से संबंधित मुद्दे:

  • सौर परियोजनाओं की मौद्रिक क्षमता पर प्रभाव: ALMM के विषय में स्पष्टता का सीधा सा अर्थ है आपूर्ति अनिश्चितता, सीमित मॉड्यूल विकल्प, नई प्रौद्योगिकियों तक पहुँच में कमी और बड़े पैमाने पर परियोजना डेवलपर्स हेतु लागत में वृद्धि तथा ये सभी मिलकर सौर परियोजनाओं की मौद्रिक क्षमता को प्रभावित करेंगे।
    • इसके परिणामस्वरूप सौर ऊर्जा शुल्क की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जो कि अंततः सौर ऊर्जा के प्रयोग की संभावनाओं को कमज़ोर करेगा।
  • BIS और ALMM के बीच ओवरलैप: ALMM को सौर उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये स्थापित  किया गया था, किंतु यह कई पहलुओं में मौजूदा भारतीय मानक ब्यूरो (BSI) प्रमाणन के साथ ओवरलैप करता है।
    • ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ उत्पाद प्रमाणन से जुड़ा हुआ है, जबकि ALMM मूल रूप से एक प्रक्रिया और निर्माण सुविधा/मूल उपकरण निर्माता के प्रमाणीकरण से संबंधित है।
    • इससे घरेलू विनिर्माताओं पर अनुपालन बोझ पड़ता है।
  • आपूर्ति-पक्ष संबंधी बाधाएँ: कई निर्माताओं का मानना है कि ALMM के कार्यान्वयन से विदेशी कंपनियों को भारतीय बाज़ार में आपूर्ति करने से रोक दिया जाएगा।
    • चूँकि भारतीय घरेलू बाज़ार अभी भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हुआ है, ऐसे में परियोजना निर्माताओं को निकट भविष्य में आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने का डर है।

भारत में सौर ऊर्जा की घरेलू क्षमता:

  • वर्ष 2014 के बाद से सौर क्षमता वृद्धि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है और भारत उत्तरोत्तर दुनिया के तीसरे सबसे बड़े सौर बाज़ार के रूप में उभर रहा है।
    • हालाँकि भारत का सौर ऊर्जा बाज़ार काफी हद तक आयातित उत्पादों पर निर्भर है।
    • भारत का घरेलू सौर उपकरण निर्माण उद्योग इस अवसर को भुनाने में काफी हद तक विफल रहा है।
    • लगभग 80% सौर उपकरण और घटक चीन से आयात किये जाते हैं।
  • इसका कारण यह है कि सोलर सेल का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जो प्रौद्योगिकी एवं पूंजी गहन है, साथ ही प्रत्येक 8-10 महीने में यह अपग्रेड भी होते हैं।
    • इसके अलावा सोलर वेफर और इनगॉट निर्माण के वैश्विक बाज़ार में चीन का दबदबा है, जो भारत में सस्ते सौर उपकरणों को पहुँचाने के लिये प्रतिस्पर्द्धा-रोधी उपायों का उपयोग करता है।

सौर ऊर्जा और भारत

  • वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन (Paris Climate Summit) से ठीक पहले भारत सरकार ने कहा कि वह वर्ष 2022 तक 175 GW अक्षय ऊर्जा स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करेगा, जिसमें 100 GW सौर ऊर्जा भी शामिल है।
    • इस संदर्भ में राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission) भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है।
    • इसके अलावा पेरिस जलवायु समझौते में INDC के हिस्से के रूप में भारत की प्रतिबद्धता वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35% तक कम करने की है।
  • ‘भारत में सौर रूपांतरण के लिये सतत् रूफटॉप कार्यान्वयन (सृष्टि) पर रूफटॉप सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है।
  • कुसुम योजना (KUSUM Scheme) किसानों को अपनी बंजर भूमि पर स्थापित सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से ग्रिड को बिजली बेचने का विकल्प प्रदान करते हुए अतिरिक्त आय अर्जित करने का अवसर प्रदान करेगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ( International Solar Alliance- ISA) की स्थापना के माध्यम से भारत 122 से अधिक देशों की सौर ऊर्जा क्षमता का लाभ उठाने हेतु एक ऐसे विश्व की परिकल्पना करता है जो सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये  कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्य पूर्ण या आंशिक रूप से स्थित है। 

आगे की राह

  • ALMM और BIS प्रमाणन, इन दो उद्देश्यों को मिलाकर और इसे एकल-विंडो प्रक्रिया बनाकर बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता था।
  • सौर परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये मज़बूत वित्तीय उपायों की आवश्यकता है, ग्रीन बॉण्ड, संस्थागत ऋण और स्वच्छ ऊर्जा कोष जैसे नवीन कदम,महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से भंडारण प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना भी इस दिशा में एक उचित कदम हो सकता है।
  • चीन द्वारा की जाने वाली सौर उपकरणों की डंपिंग से निपटने के लिये उचित तंत्र प्रदान किया जाना चाहिये।
  • नीति निर्णयन और कार्यान्वयन में अनावश्यक देरी से बचने के लिये एक आवश्यक ढाँचा अपनाया जाना चाहिये। भारत को सौर अपशिष्ट प्रबंधन और विनिर्माण मानक नीति की भी आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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