ज़िला-स्तरीय सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान | 12 Mar 2025

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद, ज़िला घरेलू उत्पाद, भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र, सकल वर्द्धित मूल्य

मेन्स के लिये:

भारत में GDP अनुमान और सीमाएँ, भारत की आर्थिक नीतियाँ

स्रोत: बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों? 

भारत की आर्थिक वृद्धि का आकलन लंबे समय से राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानों के माध्यम से किया जाता रहा है, जिससे आर्थिक आकलन में ज़िलों {ज़िला घरेलू उत्पाद (DDP) अनुमान} की अनदेखी होती रही है।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तथ्य पर बल दिया कि 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु भारत को ज़िलावार योगदान निर्धारित करना होगा और स्थानीय विकास रणनीतियों का क्रियान्वन करना होगा।

वर्तमान की GDP अनुमान पद्धति क्या है?

  • वर्तमान की GDP अनुमान पद्धति: भारत के GDP का अनुमान क्षेत्र के आधार पर ऊर्ध्वाधर और अधरोर्ध्व दृष्टिकोण के मिश्रण का उपयोग कर लगाया जाता है।
    • प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, वानिकी, मत्स्यन और खनन) के अंतर्गत अधरोर्ध्व दृष्टिकोण का पालन किया जाता है, जिसमें ज़िला स्तर से ऊपर की ओर डेटा एकत्र किया जाता है।
    • द्वितीयक (विनिर्माण, निर्माण) और तृतीयक (सेवाएँ, व्यापार, बैंकिंग) क्षेत्र में ऊर्ध्वाधर  दृष्टिकोण का पालन किया जाता है, जहाँ राष्ट्रीय GDP को ज़िला स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक गतिविधि को मापने के बजाय रोज़गार के स्तर और बुनियादी ढाँचे की उपस्थिति जैसे संकेतकों के आधार पर राज्यों और ज़िलों में विभाजित किया जाता है।
  • सीमाएँ: वर्तमान GDP अनुमान पद्धतियों से स्थानीय क्षेत्रीय शक्तियों, विशेष रूप से द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की अनदेखी होती है।
    • एक ही राज्य के भीतर भी ज़िलों में आर्थिक वृद्धि स्तर अलग-अलग होती है, लेकिन विस्तृत डेटा के अभाव से सामान्य नीतियाँ बनाई जाती हैं।
      • इस दृष्टिकोण के अंतर्गत वास्तविक समय की गतिविधि की उपेक्षा होती है, जिससे अशुद्धियाँ होती हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र {अवैतनिक श्रम (विशेष रूप से महिलाएँ} के डेटा अभाव के कारण GDP अनुमान सटीक नहीं रहता है।
    • स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया (SWI 2023) रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर GDP वृद्धि और रोज़गार के बीच संबंध अदृढ़ है, और ज़िला स्तर पर यह मुद्दा और भी अधिक गंभीर है।
      • रोज़गार संबद्ध GDP डेटा के अभाव में, विकास नीतियों में रोज़गार सृजन और सामाजिक समानता के बजाय केवल आर्थिक उत्पादन को ही महत्ता दिये जाने की संभावना रहती है।

केस स्टडी

  • कोविड-19 के दौरान, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने एक समान GDP वितरण लागू किया, जिससे विसंगतियाँ हुईं।
    • उत्तर प्रदेश (UP) ने अपने अनुमानित सकल राज्य वर्द्धित मूल्य (GSVA) ​​में गंभीर त्रुटियों का हवाला देते हुए आपत्ति व्यक्त की। कृषि से 25% GSVA और संबद्ध क्षेत्र में 65% कार्यबल के साथ, राज्य ने तर्क दिया कि औद्योगिक राज्यों की तुलना में इसकी अर्थव्यवस्था कम प्रभावित हुई है।
  • वन-साइज़-फिट्स-आॅल दृष्टिकोण के कारण UP की GDP गिरावट की अतिरंजना हुई, जिससे सटीकता के लिये अधरोर्ध्व, ज़िला-स्तरीय जीडीपी अनुमान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

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ज़िला स्तरीय GDP अनुमान के कार्यान्वन के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • अनौपचारिक क्षेत्र: अनौपचारिक श्रम और असंगठित क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता के कारण ज़िलों जैसी क्षेत्रीय इकाइयों को DDP अनुमान लगाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कम आकलन होता है।
    • इसके अतिरिक्त, ज़िले की सीमाओं के पार वस्तुओं, सेवाओं और कारक भुगतानों के मुक्त आवागमन से सटीक आकलन करना और जटिल हो जाता है।
  • वित्तीय और तार्किक बाधाएँ: ज़िला-स्तरीय GDP अनुमान के लिये एक सुदृढ़ सांख्यिकीय ढाँचा स्थापित करने हेतु बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षण और डिजिटल साधनों में महत्त्वपूर्ण निवेश किये जाने की आवश्यकता होती है।
  • असंगत डेटा संग्रहण: समवर्ती सूची के अंतर्गत सांख्यिकी केंद्र और राज्यों के बीच विखंडन उत्पन्न करती है, जबकि मंत्रालयों में विकेंद्रीकृत सांख्यिकीय प्रणाली में एकरूपता का अभाव है, जिससे DDP अनुमान असंगत हो जाता है। 
    • मानकीकृत ज़िला-स्तरीय डेटा संग्रहण के अभाव के कारण राज्यों में अशुद्धियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • मानकीकृत पद्धति का अभाव: DDP का अनुमान लगाने के लिये राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) 2008 जैसी कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत रूपरेखा नहीं है।
    • विभिन्न ज़िलों में आर्थिक गतिविधियों में भिन्नता के कारण आधार वर्ष जैसे प्रमुख मानदंडों को परिभाषित करना चुनौतीपूर्ण है।
  • राजनीतिक और प्रशासनिक बाधाएँ: राज्य उप-राज्य/DDP के संकलन के लिये ज़िम्मेदार हैं, लेकिन प्रायः इसे प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने में विफल रहते हैं। 
    • राज्य की नीतियों और राजनीतिक प्राथमिकताओं में भिन्नता के कारण डेटा संग्रहण में विलंबता और असंगतता होती है, जिससे DDP अनुमान की एकरूपता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

ज़िला स्तरीय GDP आकलन के क्या लाभ हैं?

  • राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देना: विकेंद्रीकृत आर्थिक डेटा ज़िला प्रशासन को अनुकूलित रणनीति विकसित करने में सक्षम बनाता है, जिससे बेहतर संसाधन उपयोग और लक्षित निवेश सुनिश्चित होता है।
  • सटीक आर्थिक विश्लेषण: यह आकलन करने में सहायता करता है कि राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय नीतियाँ विभिन्न ज़िलों पर किस प्रकार प्रभाव डालती हैं।
  • समतामूलक विकास: यह सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण और अविकसित ज़िलों को विकास में शामिल किया जाए, जिससे आर्थिक असमानताओं को कम किया जा सके।
  • नीतिगत सुधार: 15 वें वित्त आयोग ने स्थानीय शासन के लिये प्रदर्शन-आधारित अनुदान की सिफारिश की है, ज़िला GDP डेटा इन संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करने में मदद कर सकता है।
    • राज्य और राष्ट्रीय नीतियों को ज़िला स्तरीय आर्थिक अंतर्दृष्टि के आधार पर समायोजित किया जाना चाहिये।

मज़बूत DDP आकलन के लिये आगे की राह क्या होना चाहिये?

  • पायलट प्रोजेक्ट: सरकार DDP आकलन मॉडल का परीक्षण करने के लिये उच्च आर्थिक गतिविधि वाले ज़िलों में पायलट प्रोजेक्ट के साथ शुरुआत कर सकती है। सफल मॉडलों को अन्य ज़िलों में भी लागू किया जा सकता है।
    • ज़िला विज़न दस्तावेज़ विकसित करने के लिए राज्यों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को मज़बूत करना, जैसा कि असम-पहल इंडिया फाउंडेशन MoU में देखा गया है।
  • स्थानीय डेटा संग्रहण तंत्र: सरकार को ज़िला सांख्यिकी कार्यालयों को मज़बूत करना चाहिये, स्थानीय डेटा संग्रहकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करना चाहिये, और सटीकता के लिये मज़बूत केंद्र-राज्य सहयोग सुनिश्चित करना चाहिये। 
    • डेटा में प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर के निवेश से 32 अमेरिकी डॉलर का विकास लाभ प्राप्त होता है, जो इसके दीर्घकालिक मूल्य को रेखांकित करता है।
  • वास्तविक समय आर्थिक संकेतक: GSDP और DDP अनुमान में सुधार के लिये उप-राष्ट्रीय लेखा समिति की सिफारिशों के साथ संरेखित करते हुए, रोज़गार प्रवृत्तियों, कर संग्रह, ऋण वृद्धि और व्यावसायिक गतिविधि पर नज़र रखने के लिये ज़िला-स्तरीय आर्थिक डैशबोर्ड विकसित किये जा सकते हैं।
    • ज़िला स्तरीय आर्थिक मापन में सुधार के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सैटेलाइट इमेजरी और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसे डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की भूमिका का विस्तार: सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की भूमिका को तकनीकी मार्गदर्शन और क्षमता निर्माण से आगे बढ़ाया जाना चाहिये, ताकि DDP आकलन में एकरूपता और अंतर-राज्यीय तुलनीयता सुनिश्चित की जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत की वर्तमान GDP आकलन पद्धति की सीमाओं पर चर्चा कीजिये। बॉटम-अप दृष्टिकोण आर्थिक नीति निर्माण में कैसे सुधार कर सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. स्फीति दर में होने वाली तीव्र वृद्धि का आरोप्य कभी-कभी "आधार प्रभाव" (base effect) पर लगाया जाता है। यह "आधार प्रभाव" क्या है? (2011)

(a) यह फसलों के खराब होने से आपूर्ति में उत्पन्न उग्र अभाव का प्रभाव है
(b) यह तीव्र आर्थिक विकास के कारण तेज़ी से बढ़ रही मांग का प्रभाव है
(c) यह विगत वर्ष की कीमतों का स्फीति दर की गणना पर आया प्रभाव है
(d) इस संदर्भ में उपर्युक्त (a), (b) तथा (c) कथनों में से कोई भी सही नहीं है

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के पश्चात् परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021)