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कृषि

ICDS, PDS योजनाओं में मोटे अनाज का वितरण

  • 01 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रागी, ज्वार, बाजरा का उत्पादन 

मेन्स के लिये:

मोटे अनाज का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार ने स्थानीय रूप से उत्पादित रागी को ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (Integrated Child Development Services- ICDS) योजना तथा ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (Public Distribution System-PDS) में शामिल करने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख:

  • यह पहल उड़ीसा राज्य द्वारा वर्ष 2017 में प्रारंभ मिलेट मिशन (Millet Mission) का हिस्सा है।
  • मिलेट मिशन के तहत उड़ीसा सरकार द्वारा मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 
  • ICSD तथा PDS योजना के तहत रागी का वितरण राज्य के कुछ ज़िलों में क्रमश: जुलाई तथा सितंबर माह से शुरू किया जाएगा। 

मोटे अनाज का महत्त्व:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करना:

  • ICDS, PDS, मिड-डे मील और सरकार द्वारा संचालित छात्रावासों में सार्वजनिक खाद्य प्रणालियों के हिस्से के रूप में मोटे अनाज को शामिल किया जाएगा।

मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन:

  • फसल प्रतिरूप में बदलाव के कारण मोटे अनाजों के स्थान पर अन्य फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। अत: किसानों के बीच मोटे अनाज के उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिये सरकार द्वारा अनेक प्रोत्साहन उपायों का सहारा लिया जा रहा है। 

पोषण सुरक्षा:

  • ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (National Family Health Survey- NFHS), 2015-16 के अनुसार, ओडिशा में लगभग 45% बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं तथा लगभग 41% महिलाओं का ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (Body Mass Index- BMI) सामान्य से कम है।
  • मोटे अनाज प्रोटीन, वसा, खनिज तत्त्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा कैलोरी, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड आदि के बेहतर स्रोत माने जाते हैं। 
  • अत: बेहतर आहार विविधता तथा पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करने की दृष्टि से मोटे अनाज का बहुत महत्त्व है।

पारिस्थितिकी अनुकूल कृषि प्रणाली:

  • मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक लाभ हैं, जैसे:
    • सूखा सहन करने की क्षमता;
    •  फसल पकने की कम अवधि;
    • जलवायु सुनम्य कृषि प्रणाली;
    • कृषि-पारिस्थितिकी (Agroecological) के अनुकूल;
    • कम रासायनिक तत्त्वों की मांग;
    • स्थानीय रूप से सतत् खाद्य प्रणाली।

रागी के लिये उड़ीसा सरकार द्वारा प्रोत्साहन:

  • उड़ीसा में रागी की जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिये किसानों को जैव-आदानों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। किसानों को तीन वर्ष के लिये निम्नानुसार प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। 
    • प्रथम वर्ष में 5,000 रुपए प्रति हेक्टेयर, 
    • दूसरे वर्ष में 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर 
    • तीसरे वर्ष में 1,500 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।

उड़ीसा में रागी का उत्पादन:

  • वर्तमान में चार ज़िलों- कालाहांडी, कोरापुट, मलकानगिरी और रायगडा-  में अतिरिक्त रागी का उत्पादन होता है। इस अतिरिक्त रागी को राज्य के अन्य ज़िलों में आवश्यकता के अनुसार पुनर्वितरित किया जाएगा।  

निष्कर्ष:

  • सामान्यत: कृषि में हस्तक्षेप कार्यक्रम बाज़ार को ध्यान में रखकर लागू किये जाते हैं और घरेलू पोषण और खाद्य सुरक्षा की उपेक्षा की जाती है। परंतु उड़ीसा सरकार का यह कदम पोषण तथा खाद्य सुरक्षा को भी उतना ही महत्त्व देता है।

मोटा अनाज:

  • ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है। 
  • रागी:
    • रागी शुष्क प्रदेशों में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल है। यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी में अच्छी तरह उगाई जाती है। 
    • रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं। 
    • रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्शियम, तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्व होते हैं।
    • यह कैल्शियम का सबसे बड़ा स्रोत है।
  • ज्वार:
    • क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। 
    • अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिये सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। 
    • प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश हैं।
    • ज्वार में प्रोलमिन (कैफिरिन) नामक प्रोटीन प्राप्त होता है जिसका भोजन के पाचन क्षमता की दृष्टि से महत्त्व है।
  • बाजरा:
    • यह बलुआ और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
    • इसमें प्रोटीन का उच्च अनुपात (12-16%) के साथ ही लिपिड (4-6%) तथा फाइबर 11.5% पाया जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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