पत्रकारिता सूत्रों का प्रकटीकरण | 24 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय विधि आयोग, अनुच्छेद 19, भारतीय प्रेस परिषद मेन्स के लिये:पत्रकारिता स्रोतों के प्रकटीकरण के लिये विधिक संरक्षण, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जाँच ब्यूरो द्वारा दायर एक क्लोज़र रिपोर्ट को खारिज करते हुए दिल्ली के एक न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारत में पत्रकारों को अपने स्रोतों की जानकारी जाँच एजेंसियों को देने के संबंध में कोई वैधानिक छूट नहीं है।
पत्रकारिता स्रोतों के प्रकटीकरण से संबंधित विधिक संरक्षण:
- भारत:
- भारत में ऐसा कोई विशिष्ट कानून नहीं है जो पत्रकारों को उनके स्रोतों का खुलासा करने के संबंध में संरक्षण प्रदान करता हो।
- हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
- जाँच एजेंसियाँ सूचना देने के लिये पत्रकारों समेत किसी को भी नोटिस जारी कर सकती हैं।
- किसी भी नागरिक की तरह पत्रकार को भी न्यायालय में साक्ष्य देने के लिये बाध्य किया जा सकता है। यदि वह अनुपालन नहीं करता है, तो पत्रकार को न्यायालय की अवमानना के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत में ऐसा कोई विशिष्ट कानून नहीं है जो पत्रकारों को उनके स्रोतों का खुलासा करने के संबंध में संरक्षण प्रदान करता हो।
- वैश्विक स्तर पर:
- यूनाइटेड किंगडम: न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1981 उन पत्रकारों के पक्ष में धारणा का निर्माण करता है जो अपने स्रोतों की पहचान की रक्षा करना चाहते हैं। हालाँकि यह अधिकार ‘न्याय के हित’ में शर्तों के अधीन है।
- एक पत्रकार को समाचार हेतु अपने स्रोत को प्रकट करने के लिये मजबूर करने के प्रयास ने मानव अधिकारों पर यूरोपीय सम्मेलन द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्र विचार और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: हालाँकि पहला संशोधन संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतंत्र भाषण की गारंटी प्रदान करता है, यह विशेष रूप से प्रेस का उल्लेख करता है, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि पत्रकारों को संघीय ग्रैंड जूरी कार्यवाही में गवाही देने और स्रोतों का खुलासा करने से इनकार करने का अधिकार नहीं है।
- हालाँकि अमेरिका के कई राज्यों में रक्षा कानून हैं जो अलग-अलग डिग्री तक पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
- स्वीडन: स्वीडन में प्रेस की स्वतंत्रता अधिनियम पत्रकारों के अधिकारों का एक व्यापक संरक्षक है और यहाँ तक कि राज्य और नगरपालिका कर्मचारियों तक विस्तृत है जो स्वतंत्र रूप से पत्रकारों के साथ जानकारी साझा कर सकते हैं। एक पत्रकार जो सहमति के बिना अपने स्रोत का खुलासा करता है, उस पर स्रोत के अनुरोध पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
- यूनाइटेड किंगडम: न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1981 उन पत्रकारों के पक्ष में धारणा का निर्माण करता है जो अपने स्रोतों की पहचान की रक्षा करना चाहते हैं। हालाँकि यह अधिकार ‘न्याय के हित’ में शर्तों के अधीन है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 19 के अंतर्गत मौलिक अधिकार: संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।
- अंतर्निहित अधिकार: प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत अंतर्निहित रूप में संरक्षित है।
- हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी पूर्ण नहीं है।
- एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है जो अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ प्रतिबंधों का प्रावधान करता है, जो निम्नानुसार है:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि
- किसी अपराध के लिये उकसाना
इस विषय पर कानूनी राय:
- जबकि सर्वोच्च न्यायालय व्यापक रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को मान्यता देता है, जिसमें पत्रकारों के अपने स्रोतों की रक्षा करने का अधिकार भी शामिल है, साथ ही विभिन्न अदालतों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग फैसला सुनाया है।
- पेगासस स्पाइवेयर की जाँच के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2021 में कहा था कि अनुच्छेद 19 के तहत मीडिया के लिये भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने की मूलभूत शर्तों में से एक 'पत्रकारिता स्रोतों' का संरक्षण है।
- पत्रकारिता स्रोतों की सुरक्षा प्रेस की स्वतंत्रता के लिये बुनियादी शर्तों में से एक है। इस तरह के संरक्षण के बिना, जनहित के मामलों पर जनता को सूचित करने में प्रेस को सहायता करने से स्रोतों को रोका जा सकता है।
- जब कोई समाचार पत्र पत्रकारिता के नैतिकता मानकों का उल्लंघन करता है या जब एक संपादक या कामकाज़ी पत्रकार पेशेवर कदाचार करता है तब 1978 का प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) अधिनियम प्रेस काउंसिल को शिकायतों को सुनने के लिये सिविल कोर्ट की शक्तियाँ देता है।
- हालाँकि परिषद किसी समाचार पत्र, समाचार एजेंसी, पत्रकार या संपादक को कार्यवाही के दौरान अपने स्रोत प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं कर सकती है।
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में वर्ष 1950 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव है।
भारतीय प्रेस परिषद:
- परिचय:
- यह पहली बार वर्ष 1966 में भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम, 1965 के तहत पहले प्रेस आयोग की सिफारिशों पर स्थापित किया गया था, जिसका दोहरा उद्देश्य भारत में समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखने एवं इसमें सुधार कर प्रेस की स्वतंत्रता को संरक्षित करना था।
- अर्द्ध-न्यायिक स्वायत्त प्राधिकरण के रूप में इसे वर्ष 1979 में संसद के एक अधिनियम, प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत फिर से स्थापित किया गया था।
- भारतीय प्रेस परिषद एकमात्र निकाय है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के अपने कर्त्तव्य में राज्य के उपकरणों पर भी अधिकार का प्रयोग करता है।
- संगठन:
- यह परिषद एक कॉर्पोरेट निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और 28 सदस्य होते हैं।
- इसमें सभापति का चयन लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और परिषद के 28 सदस्यों द्वारा चुने गए सदस्य करते हैं।
अनुशंसाएँ:
- भारतीय विधि आयोग ने अपनी 93वीं रिपोर्ट में पत्रकारिता के विशेषाधिकार को मान्यता देने के लिये भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में संशोधन की सिफारिश की। रिपोर्ट ने नए प्रावधान को शामिल करने का सुझाव दिया:
- कोई भी न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी प्रकाशन में निहित जानकारी के स्रोतों को प्रकट करने का आदेश नहीं देगा जिसके लिये वह ज़िम्मेदार है यदि ऐसी जानकारी व्यक्त या निहित समझौते या समझ के साथ प्राप्त की गई हो कि स्रोत को गोपनीय रखा जाएगा।