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शासन व्यवस्था

केरल लोकायुक्त की शक्तियों में कमी

  • 06 Sep 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोकायुक्त, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013।

मेन्स के लिये:

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, लोकपाल के कामकाज से जुड़े मुद्दे और आगे की राह, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल विधानसभा ने केरल लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया।

संशोधन:

  • यह संशोधन विधेयक लोकायुक्त के आदेश के बाध्यकारी पहलू को कमज़ोर कर दिया है, जिससे सक्षम प्राधिकारी अब लोकपाल की रिपोर्ट को या तो अस्वीकार कर सकता है या स्वीकार कर सकता है।
    • संशोधन द्वारा राज्य सरकार को भ्रष्टाचार विरोधी निकाय के फैसले को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति मिल जाएगी।
    • संशोधन लोकायुक्त को सिर्फ सिफारिशें करने या सरकार को रिपोर्ट भेजने के लिये एक निकाय बना देगा।
  • इसने विधानसभा को मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोग रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिये सक्षम प्राधिकारी भी बनाया है।
    • अगर लोकायुक्त की रिपोर्ट में कैबिनेट मंत्री को दोषी ठहराया जाता है, तो विधेयक मुख्यमंत्री में समीक्षा करने का अधिकार देता है।
    • विधायकों के मामले में सक्षम प्राधिकारी सदन के अध्यक्ष होंगे।
  • विधेयक राजनीतिक नेताओं को अधिनियम के दायरे से छूट देता है।
  • विधेयक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को लोकायुक्त नियुक्त करने की अनुमति देता है
  • अधिनियम की धारा 14, जिसे अब संशोधित किया गया है, के अनुसार, यदि लोकायुक्त लोक सेवक के खिलाफ शिकायत पर संतुष्ट हो जाता है कि उसे अपने पद पर बने रहना आवश्यक नहीं है, तो वह सक्षम प्राधिकारी को अपनी रिपोर्ट में इस आशय की घोषणा करेगा जो इसे स्वीकार कर उस पर कार्रवाई करेगा।
    • दूसरे शब्दों में यदि लोक सेवक मुख्यमंत्री या मंत्री है, तो वह तुरंत अपने पद से इस्तीफा दे देगा। ऐसा प्रावधान राज्य के किसी भी कानून या केंद्र के लोकपाल अधिनियम में मौजूद नहीं है।

लोकपाल और लोकायुक्त की अवधारणा:

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की।
  • इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है, अतः ये संस्थाएँ वैधानिक निकाय हैं।
  • ओम्बड्समैन या लोकपाल का कार्य कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करना है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 लोकपाल की स्थापना का प्रावधान करता है। लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये।
    • आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा कम-से -कम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
    • लोकपाल को मार्च 2019 में नियुक्त किया गया था और इसने मार्च 2020 से कार्य करना शुरू कर दिया था, जब इसके नियम बनाए गए थे।
    • वर्तमान में झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रदीप कुमार मोहंती लोकपाल के प्रमुख है।
    • लोकपाल के पास किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार क्षेत्र है जो प्रधानमंत्री, या केंद्र सरकार में मंत्री, या संसद सदस्य, साथ ही समूह A, B, C और D के तहत केंद्र सरकार के अधिकारी हैं।
    • इसके अलावा किसी भी बोर्ड, निगम, समाज, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी और निदेशक शामिल हैं जो या तो संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित हैं या केंद्र द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित हैं।
    • यह किसी भी समाज या ट्रस्ट या निकाय को भी शामिल करता है जो 10 लाख रुपए से अधिक का विदेशी योगदान प्राप्त करता है।

लोकायुक्त अधिनियम से संबंधित चिंताएँ:

  • लोकायुक्त कानून को सार्वजनिक पदाधिकारियों जैसे मंत्रियों, विधायकों आदि के भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। इस अधिनियम के परिभाषा खंड में राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को शामिल नहीं किया गया है।
    • मूल रूप से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सरकार और संबद्ध एजेंसियों, वैधानिक निकायों, निर्वाचित निकायों आदि में भ्रष्टाचार से संबंधित है। राजनीतिक दलों के पदाधिकारी इस कानून के दायरे में नहीं आते हैं।
    • इसलिये इन्हें लोकायुक्त अधिनियम के दायरे लाना मुश्किल कार्य है।
  • इस कानून में एक और समस्यात्मक प्रावधान है, जो लोकायुक्त (धारा 12) की रिपोर्ट से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि लोकायुक्त भ्रष्टाचार के आरोप की पुष्टि होने पर, कार्रवाई की सिफारिश के साथ निष्कर्षों को सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा, जिसे लोकायुक्त की सिफारिश के अनुसार कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
    • इसमें आगे कहा गया है कि यदि लोकायुक्त सक्षम प्राधिकारी द्वारा की गई कार्रवाई से संतुष्ट हैं, तो वह मामले को समाप्त कर देंगे। सवाल यह है कि लोकायुक्त एक भ्रष्टाचार के मामले को कैसे बंद कर सकता है जो एक आपराधिक मामला है और जिसमें तीन से सात वर्ष की कैद का प्रावधान है।
      • लोकपाल ने जाँच के बाद न्यायालय में केस दायर करता है। केंद्रीय कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत लोकपाल मामले को न्यायालय में पहुँचने से पूर्व ही समाप्त कर दे।

आगे की राह:

  • भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई को प्रभावी बनाने के लिये राजनीतिक, कानूनी, प्रशासनिक और न्यायिक प्रणालियों के व्यापक सुधार अनिवार्य है।
  • केरल लोकायुक्त अधिनियम की विधानसभा की एक समिति द्वारा पुन: जाँच की जानी चाहिये और इसे लोकपाल अधिनियम के अनुरूप होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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