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शासन व्यवस्था

केरल लोकायुक्त की शक्तियों में कमी

  • 02 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोकायुक्त, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013।

मेन्स के लिये:

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, लोकपाल की कार्यप्रणाली से संबंधित मुद्दे तथा समाधान, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केरल सरकार ने एक अध्यादेश द्वारा केरल लोकायुक्त अधिनियम, 1999 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया, जिसकी विपक्ष द्वारा आलोचना की गई है।

  • प्रस्तावित अध्यादेश में भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी की शक्तियों को सीमित करने की परिकल्पना प्रस्तुत की गई है।

प्रमुख बिंदु 

प्रस्तावित परिवर्तन:

  • केरल कैबिनेट ने राज्यपाल से सिफारिश की है कि वह अध्यादेश जारी करे।
  • इस प्रस्ताव में लोकायुक्त को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद सरकार को उसके निर्णय को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति देने की मांग की गई ।
  • इस अध्यादेश से अर्द्ध-न्यायिक संस्था एक दंतविहीन सलाहकार निकाय (Toothless Advisory Body) में परिवर्तित हो जाएगी जिसके आदेश सरकार पर बाध्यकारी नहीं होंगे।

लोकपाल और लोकायुक्त की अवधारणा:

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की।
  • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं।
  • ओम्बड्समैन या लोकपाल का कार्य कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करना है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 लोकपाल की स्थापना का प्रावधान करता है। लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये।
    • आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा कम-से -कम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
    • लोकपाल की नियुक्ति वर्ष 2019 में की गई थी और इसने मार्च 2020 से कार्य करना शुरू कर दिया था। वर्तमान लोकायुक्त सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष हैं।
    • लोकपाल के पास किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार है जिसमें प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी. और डी. अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
    • इसके क्षेत्राधिकार में वह व्यक्ति भी शामिल है जो ऐसे किसी निकाय/समिति का प्रभारी (निदेशक/प्रबंधक/सचिव) है या रहा है जो केंद्रीय कानून द्वारा स्थापित हो या किसी अन्य संस्था का प्रभारी जो केंद्रीय सरकार द्वारा वित्तपोषित/नियंत्रित हो।
    • इसमें किसी ऐसे समाज या ट्रस्ट या निकाय को भी शामिल किया गया है जो 10 लाख रुपए से अधिक का विदेशी योगदान प्राप्त करता है। 

भारत में लोकपाल (Ombudsman) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

  • लोकपाल यानी Ombudsman संस्था की आधिकारिक शुरुआत वर्ष 1809 में स्वीडन में हुई।
  • 20वीं शताब्दी में एक संस्था के रूप में ओम्बड्समैन का विकास हुआ और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसके विकास में तेज़ी आई।
  • गुयाना प्रथम विकासशील देश था, जिसने वर्ष 1966 में ओम्बड्समैन का विचार अपनाया। इसके बाद मॉरीशस, सिंगापुर, मलेशिया के साथ-साथ भारत ने भी इसे अपनाया।
  • भारत में संवैधानिक ओम्बड्समैन का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत में कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद में प्रस्तुत किया था।
  • लोकपाल और लोकायुक्त शब्द डॉ. एल. एम. सिंघवी द्वारा गढ़े गए थे।
  • वर्ष 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने सांसदों सहित सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायतों के निवारण हेतु केंद्रीय और राज्य स्तर पर दो स्वतंत्र प्राधिकरणों की स्थापना की सिफारिश की।
  • वर्ष 1968 में लोकपाल विधेयक लोकसभा में पारित हुआ, लेकिन लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह व्यपगत हो गया और तब से यह कई बार लोकसभा में व्यपगत हो चुका है।
  • वर्ष 2002 में ‘एम.एन. वेंकटचलैया’ की अध्यक्षता में संविधान के कामकाज की समीक्षा हेतु गठित आयोग ने लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश की; यह भी सिफारिश की कि प्रधानमंत्री को प्राधिकरण के दायरे से बाहर रखा जाए।
  • वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की कि लोकपाल का कार्यालय जल्द-से-जल्द स्थापित किया जाना चाहिये।
  • इसके लिये वर्ष 2011 में सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में सामाजिक आंदोलन ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट’ ने तत्कालीन केंद्र सरकार पर दबाव डाला और परिणामस्वरूप लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 2013 पारित हुआ।

राज्यों में लोकायुक्त किस प्रकार कार्य करता है?

  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 63 में कहा गया है कि ‘प्रत्येक राज्य में लोकायुक्त नामक एक निकाय स्थापित किया जाएगा, यद्यपि अब तक ऐसा कोई निकाय राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून द्वारा स्थापित, गठित या नियुक्त नहीं किया गया है।’
  • इस निकाय को अधिनियम के लागू होने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर गठित किया जाएगा और यह मुख्य तौर पर सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों का निपटान करेगा।
    • हालाँकि यह कानून मात्र एक फ्रेमवर्क है, इसकी विशिष्टताओं को तय करने के लिये राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
    • यह देखते हुए कि राज्यों को अपने स्वयं के कानून बनाने की स्वायत्तता है, लोकायुक्त की शक्तियाँ विभिन्न पहलुओं पर अलग-अलग होती हैं, जैसे- कार्यकाल और अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिये मंज़ूरी की आवश्यकता।
  • जब वर्ष 2013 में यह अधिनियम पारित किया गया था, तब पहले से ही मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित कुछ राज्यों में लोकायुक्त काम कर रहे थे एवं अत्यधिक सक्रिय थे।
    • अधिनियम और सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद अधिकांश राज्यों ने अब एक लोकायुक्त की स्थापना की है।

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई केवल हमारी राजनीतिक, कानूनी, प्रशासनिक और न्यायिक प्रणालियों में व्यापक सुधार के माध्यम से की जा सकती है।
  • एक प्रभावी लोकपाल संस्था की स्थापना ऐसा ही एक उपाय है।
  • इसी तरह लोकपाल की तर्ज पर राज्यों में सभी राज्य सरकार के कर्मचारियों, स्थानीय निकायों और राज्य निगमों के दायरे में लोकायुक्तों की स्थापना की जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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