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कोविड-19 टीकों के लिये विभेदक मूल्य निर्धारण

  • 01 May 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह कोविड-19 टीकों और अन्य आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के पीछे आधार और औचित्य की व्याख्या करें।

  • न्यायालय ने यह इंगित किया कि “विभिन्न निर्माता अलग-अलग मूल्य उद्धृत कर रहे हैं”, जबकि ड्रग्स नियंत्रण अधिनियम और पेटेंट अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को इस संबंध में अधिकार प्राप्त हैं और यह समय उन्हीं शक्तियों को प्रयोग करने का है।

प्रमुख बिंदु:

भारत में दवाओं के लिये मूल्य निर्धारण संबंधी नियम:

  • आवश्यक दवाओं के मूल्य निर्धारण को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के माध्यम से केंद्रीय स्तर पर नियंत्रित किया जाता है।
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा ड्रग्स मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order-DPCO) लागू किया गया है। 
    • ड्रग्स मूल्य नियंत्रण आदेश ने 800 से अधिक आवश्यक दवाओं को सूचीबद्ध करते हुए उनके मूल्य पर नियंत्रण स्थापित किया। 
    • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) एक स्वायत्त निकाय है, जो देश में स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं (NLEM) एवं उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1997 में की गई थी।
  • हालाँकि, DPCO के माध्यम से कोई भी नियमन पेटेंट दवाओं या निश्चित खुराक संयोजन (FDC) दवाओं पर लागू नहीं होता है।
    • यही कारण है कि एंटीवायरल ड्रग रेमेडीविर (remdesivir), जो वर्तमान में कोविड-19 के गंभीर मामलों के उपचार के लिये काफी प्रचलित है, की कीमत सरकार द्वारा विनियमित नहीं की जा रही है।
  •  कोविड -19 के उपचार में उपयोग किये जाने वाले कोविड-19 के टीके या दवाओं के लिये संशोधन करना आवश्यक है जैसे-DPCO के तहत रेमेडिसविर को शामिल करना।

टीकों के मूल्य निर्धारण के लिये उपलब्ध अन्य कानूनी रास्ते:

  • पेटेंट अधिनियम, 1970:
    • इस कानून में ऐसे दो प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख सर्वोच्च न्यायालय ने किया है, जिसका उपयोग वैक्सीन के मूल्य निर्धारण को विनियमित करने के लिये संभावित रूप से किया जा सकता है।
    • इस अधिनियम की धारा 100 केंद्रीय सरकार को सरकार के प्रयोजनों के लिये आविष्कारों का उपयोग करने की शक्ति प्रदान करती है। 
      • यह प्रावधान सरकार को विनिर्माण में तेज़ी लाने और समान मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट कंपनियों को वैक्सीन के पेटेंट का लाइसेंस देने में सक्षम बनाता है।
    • अधिनियम की धारा 92 केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपातकाल या सार्वजनिक तात्कालिकता के मामले में अनिवार्य लाइसेंस देने का अधिकार देता है।
  • महामारी रोग अधिनियम, 1897:
    • सरकार ने महामारी के प्रकोप से लड़ने के लिये इसे मुख्य हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। 
    • इस अधिनियम की धारा 2 सरकार को विशेष उपाय करने और महामारी के दौरान विशेष नियम निर्धारित करने का अधिकार देती है।
    • अधिनियम के अंतर्गत अपरिभाषित शक्तियों का व्यापक उपयोग मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • इन कानूनी उपायों के अतिरिक्त विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार समान मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने के लिये निर्माताओं से प्रत्यक्ष खरीद के मार्ग पर विचार का सकती है, क्योंकि एक खरीदार के रूप सरकार के पास सौदेबाज़ी (bargaining) या मोल-भाव करने की शक्ति अधिक होगी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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