भारतीय अर्थव्यवस्था
‘कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी’ में देरी
- 09 Aug 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय स्थायी समिति, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी मेन्स के लिये:दिवाला और दिवालियापन संहिता, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 के तहत ‘कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी’ प्रक्रिया में देरी पर ध्यान आकर्षित किया गया है।
- इसके तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLTs) में लगातार हो रही रिक्तियों के बारे में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) को सूचित किया गया है।
- इससे पहले सरकार ने लोकसभा में दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 पेश किया, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये एक वैकल्पिक दिवाला समाधान प्रक्रिया पेश करता है जिसे प्री-पैकेज़्ड दिवाला समाधान प्रक्रिया (PIRP) कहा जाता है।
दिवाला और दिवालियापन संहिता:
- इसे वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करती है।
- यह दिवालियापन की समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों को एक समान मंच प्रदान करने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को मज़बूत करती है।
नोट
- इन्सॉल्वेंसी: यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होती है।
- बैंकरप्सी: यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति या संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और न्यायालय द्वारा इसका समाधान करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश दिया गया हो। यह किसी कंपनी अथवा व्यक्ति द्वारा ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख चिताएंँ:
- NCLT में रिक्तियांँ:
- देश भर में NCLT की ब्रांचों में सदस्यों की स्वीकृत संख्या कुल 63 है जिनमें वर्तमान में केवल 29 सदस्य हैं।
- स्वीकृति में देरी:
- समिति ने कहा कि NCLT द्वारा इन्सॉल्वेंसी/दिवाला मामलों को स्वीकार करने में हुई देरी और समाधान योजनाओं की मंज़ूरी, IBC के तहत समयसीमा का पालन न करने के प्रमुख कारण थे।
- NCLT की ओर से मामलों को स्वीकार करने में हुई देरी में चूक से मालिकों को फंड डायवर्ट करने और परिसंपत्तियों को स्थानांतरित करने का अवसर मिला।
- निर्णयों को चुनौती दी गई:
- IBC के तहत कई हाई प्रोफाइल मामलों में हितधारकों द्वारा कई निर्णयों को चुनौती दी गई। इनमें से कई अपील दिवालिया कार्यवाही को धीमा करने के लिये की गई हैं।
- विलंबित योजनाएँ:
- जिन मामलों में लेनदारों ने निर्दिष्ट समयसीमा के बाद प्रस्तुत समाधान योजनाओं का मूल्यांकन किया है, वे बोलीदाताओं को निर्धारित समयसीमा के भीतर बोली लगाने में हतोत्साहित करेंगे और ऐसी योजनाएँ देरी और मूल्यह्वास को भी बढ़ावा देती हैं।
सिफारिशें:
- समय पर कार्रवाई:
- NCLT द्वारा एक डिफॉल्ट कंपनी को दिवाला कार्यवाही में शामिल करने और 30 दिनों के भीतर इसके नियंत्रण को एक समाधान पेशेवर को सौंपने की आवश्यकता है।
- मंत्रालय को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये:
- नोडल मंत्रालय के रूप में MCA को एनसीएलटी/नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल में परिचालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने हेतु अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये, जबकि समाधान, वसूली, समय आदि के संबंध में कार्य की गति, निपटान और परिणामों की लगातार निगरानी एवं विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- IBC में संशोधन:
- मौजूदा आर्थिक माहौल में एमएसएमई, जो कि IBC के तहत परिचालन लेनदार हैं, को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये आईबीसी में संशोधन किया गया है।
- वित्तीय लेनदार वे हैं जिनका इकाई के साथ संबंध एक शुद्ध वित्तीय अनुबंध है, जैसे कि ऋण या ऋण सुरक्षा।
- परिचालन लेनदार वे हैं जिनका दायित्व इकाई संचालन को लेकर लेन-देन से है।
- मौजूदा आर्थिक माहौल में एमएसएमई, जो कि IBC के तहत परिचालन लेनदार हैं, को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये आईबीसी में संशोधन किया गया है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण
परिचय
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) का गठन किया था।
- यह भारत में पंजीकृत कंपनियों को नियंत्रित करने हेतु एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है और इसने ‘कंपनी लॉ बोर्ड’ का स्थान लिया है।
- इसके पास भारत में पंजीकृत कंपनियों को नियंत्रित करने हेतु समग्र शक्तियाँ मौजूद हैं।
- NCLT और NCLAT की स्थापना के साथ कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत गठित ‘कंपनी लॉ बोर्ड’ भंग कर दिया गया था।
- यह नागरिक प्रक्रिया संहिता में निर्धारित नियमों से बाध्य है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है, साथ ही यह अधिनियम के अन्य प्रावधानों और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी नियम के अधीन है।
- ट्रिब्यूनल और अपीलीय ट्रिब्यूनल को अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति है।
अपील
- ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध NCLAT में अपील की जा सकती है। NCLT के आदेश या निर्णय से व्यथित कोई भी अपीलकर्त्ता आदेश या ट्रिब्यूनल के निर्णय की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों की अवधि के भीतर अपील कर सकता है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)
परिचय
- NCLAT का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिये किया गया था।
- यह दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 61 के तहत पारित आदेश तथा दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 202 और 211 के तहत ‘भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड’ (IBBI) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ भी एक अपीलीय अधिकरण है।
अपील
- NCLAT के किसी भी आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है।