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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘डीप न्यूड’ संबंधी मुद्दा

  • 25 Apr 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फिशिंग

मेन्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उपयोगिता से उत्पन्न चुनैतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत के साइबर क्राइम अधिकारी उन एप और वेबसाइटों पर नज़र रख रहे हैं जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) एल्गोरिदम का उपयोग करके आम लोगों की नग्न तस्वीरें बनाते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • डीप न्यूड (Deep Nude) के बारे में:
  • कंप्यूटर की सहायता से बनाई गई नग्न तस्वीरों और वीडियो को डीप न्यूड कहा जाता हैं। साइबर अपराधी कृत्रिम बुद्धिमत्ता सॉफ्टवेयर की मदद से वीडियो, ऑडियो और तस्वीरों पर नग्न सामग्री अध्यारोपित कर देते हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम का उपयोग कर किसी व्यक्ति के बोलने के तरीके, सिर तथा चेहरे की गतिविधियों को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अध्यारोपित कर देने से यह बताना मुश्किल हो जाता है कि यह वीडियो/तस्वीरें सही हैं या गलत। कंप्यूटर द्वारा तैयार की गईं इन वीडियो/तस्वीरों की सत्यता की जाँच गहन विश्लेषण से ही की जा सकती है।
  • वर्ष 2017 में पहली बार एक व्यक्ति द्वारा ‘डीप फेक’ (Deepfake) नाम से अकाउंट बनाकर सोशल मीडिया पर नग्न सामग्री पोस्ट की गई तत्पश्चात दुनियाभर में इस तरह के एप और वेबसाइटों को बनाने का चलन बढ़ गया। इनमें से प्रमुख एप फेसएप (FaceApp) और डीप न्यूड (Deep Nude) हैं।

डीप न्यूड का प्रभाव:

  • ‘फयेत्तविले स्टेट यूनिवर्सिटी’ (Fayetteville State University) के अनुसार, साइबर स्पेस (Cyber Space) में डीप न्यूड द्वारा आधुनिक तरीके से धोखाधड़ी की जाती है। वर्तमान में धोखाधड़ी फर्जी खबर, फर्जी ई-मेल/फिशिंग अटैक, सोशल इंजीनियरिंग साइबर अटैक, इत्यादि के माध्यम से की जाती है।  

फिशिंग (Phishing):

  • इस प्रकार के साइबर हमलों में हैकर, लोगों को मोबाइल संदेश या ई-मेल इस उद्देश्य से भेजता है ताकि उनकी गोपनीय जानकारियों को चुराया जा सके। उदाहरण के लिये, हैकर आपको ऐसा ई-मेल भेज सकता है जो किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे- बैंक अथवा सरकार आदि द्वारा प्रसारित प्रतीत होता हो, परंतु असल में वह संदेश ऐसे ही किसी अन्य संदेश की कॉपी होता है और आप जैसे ही अपनी गोपनीय जानकारियाँ उसमें भरते हैं, वैसे ही वे जानकारियाँ हैकर के पास पहुँच जाती हैं।

क्या डीप फेक वैधानिक है?

  • दुनिया के कई देशों में डीपफेक की वैधानिकता जटिल है। अमेरिका के संदर्भ में बात करें तो, यदि किसी व्यक्ति को डीपफेक द्वारा परेशान किया जाता है तो वह मानहानि का दावा करने के साथ ही नग्न सामग्री को इंटरनेट से हटाने हेतु बाध्य कर सकता है।लेकिन अमेरिका में मौजूदा कानूनी प्रावधान किसी व्यक्ति को धर्म, अभिव्यक्ति और याचिका के अधिकार से संबंधित स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। अतः इंटरनेट से सामग्री को हटाने हेतु बाध्य करना प्रथम संशोधन (अमेरिकी संविधान) का उल्लंघन है।  
  • साइबर सिविल राइट्स इनिशिएटिव (Cyber Civil Rights Initiative) के अनुसार, अमेरिका के 46 राज्यों में 'रिवेंज पॉर्न' (किसी को परेशान कर बदलना लेना) से संबंधित कानून है।

निष्कर्ष:

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता विगत कई दशकों से चर्चा के केंद्र में रहा एक ज्वलंत विषय है। वैज्ञानिक इसके अच्छे और बुरे परिणामों को लेकर समय-समय पर विचार-विमर्श करते रहते हैं। जहाँ दुनिया तकनीक के माध्यम से तेज़ी से बदल रही है वहीं इसने कई नई समस्याओं को भी जन्म दिया है, जिनका समाधान करने के लिये नित नए उपाय अपनाए जाने चाहिये।
  • साइबर दुनिया के गलत इस्तेमाल पर अंकुश लगाना ज़रूरी है। साइबर सुरक्षा और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का मुद्दा ऐसा है, जिसकी और अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। विभिन्न प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये गलत सामग्री के साझा करने से लोगों के निजता के अधिकार का हनन होता है, ऐसे में इसके खिलाफ कड़ा नियमन करने तथा साइबर अपराधों और हमलों को लेकर काफी सजग रहने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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