हिरासत में यातना | 22 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता मेन्स के लिये:हिरासत में यातना और हिरासत में मौत के कारण, पुलिस प्रणाली में सुधार, प्रौद्योगिकी और पूछताछ, हिरासत में मौत से बचाव के उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दो पुलिस अधिकारियों को पुलिस हिरासत में अभियुक्तों को प्रताड़ित करने, हिरासत में यातना (हिंसा) देने के आरोप में निलंबित किया गया है।
हिरासत में यातना (हिंसा):
- परिचय:
- हिरासत में यातना से तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक यातना या पीड़ा देना है जो पुलिस या अन्य अधिकारियों की हिरासत में है।
- यह मानवाधिकारों और गरिमा का गंभीर उल्लंघन है तथा अक्सर यह हिरासत में होने वाली मौत ,जो किसी व्यक्ति की हिरासत के दौरान होती है, का कारण भी बनता है।
- हिरासत में मौत के प्रकार:
- पुलिस हिरासत में मौत:
- पुलिस हिरासत में मौत अत्यधिक बल, यातना, चिकित्सा देखभाल से इनकार या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप हो सकती है।
- न्यायिक हिरासत में मौत :
- अत्यधिक भीड़भाड़, अपर्याप्त स्वच्छता, चिकित्सा सुविधाओं का अभाव, कैदी हिंसा या आत्महत्या न्यायिक हिरासत में मौत के कारण हो सकते हैं।
- सैन्यबलों या अर्द्धसैनिक बलों की हिरासत में मौत :
- यह यातना, असामान्य हत्याओं, मुठभेड़ या गोलीबारी की घटनाओं के माध्यम से हो सकता है।
- पुलिस हिरासत में मौत:
- भारत में हिरासत में मौत:
- गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, वर्ष 2017-2018 की अवधि में पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले पाए गए, जबकि:
- वर्ष 2018-2019 में 136
- वर्ष 2019-2020 में 112
- वर्ष 2020-2021 में 100
- वर्ष 2021-2022 में 175
- पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में सबसे अधिक (80) मौतें गुजरात में दर्ज की गई हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (76), उत्तर प्रदेश (41), तमिलनाडु (40) और बिहार (38) का स्थान है।
- गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, वर्ष 2017-2018 की अवधि में पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले पाए गए, जबकि:
- भारत में हिरासत अवधि में अत्याचार को रोकने में चुनौतियाँ:
- अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा (UNCAT) के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसमर्थन का अभाव, जिस पर भारत ने वर्ष 1997 में हस्ताक्षर किये थे लेकिन अब तक इसकी पुष्टि नहीं की है।
- यह भारत को हिरासत में यातना को रोकने और विरोध करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों और मानकों द्वारा बाध्य होने से रोकता है।
- अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा (UNCAT) के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसमर्थन का अभाव, जिस पर भारत ने वर्ष 1997 में हस्ताक्षर किये थे लेकिन अब तक इसकी पुष्टि नहीं की है।
हिरासत में यातना संबंधी संवैधानिक तथा कानूनी ढाँचा:
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें यातना तथा अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा से मुक्त होने का अधिकार शामिल है।
- अनुच्छेद 20(1) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को तब तक किसी भी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जाएगा,जब तक कि उसने ऐसा कार्य करते समय,जो कि अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है इस प्रकार यह कानून अपराध से संबंधित कानूनी रूप से उल्लिखित सज़ा से अधिक की सज़ा पर रोक लगाता है।
- अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, किसी को भी अपने विरुद्ध गवाही देने हेतु विवश नहीं किया जा सकता। यह एक बहुत ही उपयोगी नियम है क्योंकि यह अभियुक्तों के कबूलनामे, जब उन्हें ऐसा करने के लिये मजबूर या प्रताड़ित किया जाता है, पर रोक लगता है ।
- कानूनी सुरक्षा:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 24 में यह घोषित किया गया है कि अभियुक्त द्वारा जाँच एजेंसियों की धमकी, वादे या प्रलोभन के कारण दिये गए सभी इकबालिया बयान कानून की अदालत में स्वीकार्य नहीं होंगे। यह धारा मुख्य रूप से अभियुक्त को उसकी इच्छा के विरुद्ध संस्वीकृति देने से रोकने का काम करती है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 330 और 331 के तहत जब कोई संपत्ति हड़पने के इरादे से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाता है या उस व्यक्ति को अवैध कार्य करने के लिए प्रेरित करता है तो उसे दंडित किया जाता है।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41 को वर्ष 2009 में संशोधित किया गया और इसमें सुरक्षा उपाय शामिल किये गए ताकि पूछताछ के लिए गिरफ्तारी एवं हिरासत हेतु उचित आधार एवं दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए, गिरफ्तारी को परिवार, दोस्तों एवं आम जनता के लिये पारदर्शी बनाया जा सके तथा कानून के माध्यम से सुरक्षा प्रदान की जाए।
मानवाधिकारों के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, 1948:
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में एक प्रावधान है जो लोगों को यातना और जबरन गायब करने से बचाता है।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 1945:
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर कैदियों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करने का आह्वान करता है। चार्टर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कैदी होने के बावजूद उनकी मौलिक स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध व आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध में निर्धारित हैं।
- नेल्सन मंडेला नियम, 2015:
- नेल्सन मंडेला नियमों को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2015 में कैदियों से सम्मान के साथ व्यवहार करने और यातना एवं अन्य दुर्व्यवहार को प्रतिबंधित करने हेतु अपनाया गया था।
हिरासत में यातना से निपटने संबंधी उपाय:
- कानूनी प्रणालियों को मज़बूत बनाना:
- ऐसे कानून पारित करना जो हिरासत में यातना का अपराधीकरण करता हो।
- हिरासत में प्रताड़ना के आरोपों की त्वरित और निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करना।
- निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के माध्यम से अपराधियों को जवाबदेह ठहराना।
- पुलिस सुधार और संवेदीकरण:
- मानवाधिकारों और गरिमा के सम्मान पर ज़ोर देने हेतु पुलिस प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाना।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों के भीतर जवाबदेही, व्यावसायिकता और सहानुभूति की संस्कृति को बढ़ावा देना।
- हिरासत में प्रताड़ना के मामलों की प्रभावी ढंग से निगरानी और समाधान करने हेतु निरीक्षण तंत्र स्थापित करना।
- नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों को सशक्त बनाना:
- नागरिक समाज संगठनों को हिरासत में यातना के पीड़ितों की सक्रिय रूप से वकालत करने हेतु प्रोत्साहित करना।
- पीड़ितों और उनके परिवारों को सहायता एवं कानूनी सहायता प्रदान करना।
- निवारण और न्याय के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों एवं संगठनों के साथ सहयोग करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्वों का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति और उनकी रक्षा करने में न्यायपालिका तथा अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014) |