शासन व्यवस्था
CSDS लोकनीति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024
- 27 Apr 2024
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:चुनाव आयोग, लोकनीति सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024, EVM , सच्चर आयोग रिपोर्ट, CBI मेन्स के लिये:स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना, चुनाव सुधार, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये समितियों की सिफारिशें। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) के लोकनीति कार्यक्रम द्वारा प्री-पोल स्टडी 2024 का आयोजन किया, जिसमें EVM तथा भारत के चुनाव आयोग पर विश्वास एवं अन्य सामाजिक-धार्मिक मुद्दों जैसे विभिन्न मुद्दों पर जनता की राय सामने आई है।
लोकनीति सर्वेक्षण के निष्कर्ष क्या हैं?
- संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं में मतदाताओं का विश्वास:
- भारतीय चुनाव आयोग पर जनता का विश्वास कम हुआ है, यह विश्वास वर्ष 2019 में 51% से गिरकर वर्ष 2024 में केवल 28% तक सीमित रह गया है।
- लगभग 17% उत्तरदाताओं का मानना है कि सत्तारूढ़ दल, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में हेरफेर करने की अत्यधिक संभावना होती है।
- उत्तरदाता कमोबेश उन लोगों में से थे जो महसूस करते थे कि केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) तथा प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate- ED) जैसी एजेंसियों का प्रयोग राजनीतिक प्रतिशोध के लिये किया जा रहा है और साथ ही उन्होंने कहा कि एजेंसियाँ कानून के दायरे में रहकर काम कर रही हैं।
- धार्मिक बहुलवाद के लिये समर्थन:
- सर्वेक्षण में शामिल लगभग 79% लोगों का मानना है कि "भारत केवल हिंदुओं का नहीं, बल्कि समान रूप से सभी धर्मों का देश है", केवल 11% लोगों का मानना है कि "भारत केवल हिंदुओं का देश है"।
- बहुलता में यह विश्वास शहरी क्षेत्रों (कस्बों में 85% और शहरों में 84%) में अधिक स्पष्ट था और बिना स्कूली शिक्षा वाले लोगों (72%) की तुलना में शिक्षित (83%) में अधिक था।
- अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा:
- केवल 22% सर्वेक्षणों में राम मंदिर के निर्माण को सरकार की 'सबसे उचित कार्रवाई' बताया गया।
- लगभग 24% लोगों का मानना है कि मंदिर मुद्दे से धार्मिक विभाजन उत्पन्न होने की संभावना है।
- अनुसूचित जाति वर्ग में मुस्लिमों को आरक्षण:
- लगभग 57% उत्तरदाताओं का मानना है कि हिंदू और मुस्लिम दलितों दोनों को नौकरियों में आरक्षण प्रदान करने के लिये अनुसूचित जाति श्रेणी का दायरा बढ़ाया जाना चाहिये।
- 19% उत्तरदाताओं का मानना है कि अनुसूचित जाति वर्ग में केवल हिंदुओं को आरक्षण दिया जाना चाहिये।
- सामाजिक न्याय की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिये यह समर्थन सच्चर आयोग रिपोर्ट, 2006 और रंगनाथ मिश्रा आयोग रिपोर्ट, 2007 द्वारा की गई सिफारिशों की भी पुष्टि करता है, जो दृढ़ता से दावा करता है कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 को स्थापित संवैधानिक सिद्धांतों के संबंध में फिर से पढ़ने की ज़रूरत है।
- लगभग 57% उत्तरदाताओं का मानना है कि हिंदू और मुस्लिम दलितों दोनों को नौकरियों में आरक्षण प्रदान करने के लिये अनुसूचित जाति श्रेणी का दायरा बढ़ाया जाना चाहिये।
सर्वेक्षण के निष्कर्षों के निहितार्थ क्या हैं?
- EVM और चुनाव मशीनरी पर घटता विश्वास:
- जनमत संग्रह सर्वेक्षण हाल के वर्षों में चुनाव मशीनरी पर घटते विश्वास पर लोगों की चिंता और बहस को सामने लाता है।
- यह चुनाव मशीनरी और EVM तथा VVPAT जैसे उपकरणों के साथ छेड़छाड़ या हेरफेर को रोकने के लिये उचित सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- अस्मिता की राजनीति:
- सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत में राजनीति में धर्म अभी भी एक प्रमुख कारक है।
- भारत में राजनीतिक दल अक्सर अपने समर्थन आधार को मज़बूत करने के लिये धार्मिक आधार पर मतदाताओं को लामबंद करते हैं, जिसे अस्मिता की राजनीति के रूप में जाना जाता है।
- धर्म का राजनीतिकरण सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है: जैसे राजनीतिक बयानबाज़ी, सांप्रदायिक एजेंडे के कारण धार्मिक हिंसा, भेदभाव और असहिष्णुता की घटना।
- सार्वजनिक संस्थानों पर आरोप:
- CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप और इसे विपक्षी दल के विरुद्ध एक उपकरण के रूप में प्रयोग करने के कई आरोप लगे हैं।
- ऐसी धारणा है कि केंद्रीय एजेंसियाँ राजनीतिक संबद्धता या अन्य बाहरी विचारों के आधार पर चुनिंदा व्यक्तियों या संगठनों को निशाना बना सकती हैं।
- रोज़गार, मुद्रास्फीति और अन्य मुद्दे:
- लोगों का मानना है कि हाल के दशकों में मज़बूत आर्थिक विकास के बावजूद, बढ़ती श्रम शक्ति के साथ रोज़गार सृजन में तेज़ी नहीं आई है।
- हाल के वर्षों में बढ़ती खाद्य कीमतों ने देश की बड़ी आबादी और बेरोज़गारी के कारण भारत में मुद्रास्फीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
आगे की राह
- चुनाव सुधार आयोग: यह आयोग स्वतंत्र विशेषज्ञों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, नागरिक समाज संगठनों और चुनाव अधिकारियों से बना हो सकता है।
- चुनावी कानूनों, प्रक्रियाओं और संस्थानों में बदलावों की समीक्षा तथा सिफारिश करने के काम के साथ।
- केंद्रीय जाँच एजेंसियों की कार्यप्रणाली:
- इन केंद्रीय निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति, स्थानांतरण और निष्कासन को विनियमित करने के लिये सभी जाँच एजेंसियों को एक ही वैधानिक निकाय के तहत लाया जाए। हटाने के लिये राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की जाँच के अधीन होनी चाहिये और कार्यकाल निश्चित होना चाहिये।
- समावेशी नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ विकसित तथा किर्यान्वित करें जो हाशिये पर और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों की ज़रूरतों एवं हितों को प्राथमिकता दें।
- इसमें सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने, सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने, अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करने और सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता को आगे बढ़ाने की पहल शामिल है।
- मुद्रास्फीति और बेरोज़गारी को लक्षित करना: इसके लिये व्यापक आर्थिक नीतियों, संरचनात्मक सुधारों एवं लक्षित हस्तक्षेपों के संयोजन की आवश्यकता होगी जैसे:
- कुल मांग और मुद्रास्फीति को प्रभावित करने के लिये ब्याज दरों का समायोजन, कर निर्धारण और शासकीय व्यय जैसे राजकोषीय नीति उपायों जैसे मौद्रिक नीति उपकरणों का उपयोग करना।
- रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने और बेरोज़गारी कम करने के लिये निरंतर एवं समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के इस्तेमाल को लेकर काफी विवाद हुआ है। भारत में चुनावों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022) |