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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के स्टोन क्रशर सेक्टर के लिये CPCB के नए दिशा-निर्देश

  • 31 May 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA), ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP), जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

मेन्स के लिये:

स्टोन क्रशिंग यूनिट्स से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

स्टोन क्रशिंग इकाइयों को लंबे समय से अस्थायी धूल उत्सर्जन और गंभीर वायु प्रदूषण का प्रमुख योगदानकर्त्ता माना गया है।

  • स्टोन क्रशिंग इकाइयों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर बढ़ती चिंता के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने हाल ही में इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • ये दिशा-निर्देश नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) की सिफारिशों के अनुरूप हैं

CPCB द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश:

  • CPCB दिशा-निर्देश स्टोन क्रशिंग के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं जैसे- स्रोत उत्सर्जन, उत्पाद भंडारण, परिवहन, जल की खपत तथा कानूनी अनुपालन आदि। 
  • दिशा-निर्देशों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
    • स्टोन क्रशरों का संचालन शुरू करने से पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) से इन्हें संचालित करने की सहमति प्राप्त की जानी चाहिये।
    • स्टोन क्रशिंग इकाई को पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के तहत निर्धारित उत्सर्जन मानदंडों और संबंधित SPCB/PCC द्वारा CTO  में निर्धारित शर्तों का पालन करना चाहिये।
    • क्रशिंग, लोडिंग और अनलोडिंग गतिविधियों से धूल के उत्सर्जन को कम करने के लिये उन्हें पर्याप्त प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, जैसे- धूल दमन प्रणाली, कवर, स्क्रीन और स्प्रिंकलर स्थापित करने चाहिये।
      • वायु के साथ उड़ने वाली धूल को रोकने के लिये उन्हें अपने उत्पादों को ढके हुए क्षेत्रों या भूमिगत कक्ष में स्टोर करना चाहिये।
    • स्टोन क्रशरों को जल का विवेकपूर्ण उपयोग और इसकी उपलब्धता तथा गुणवत्ता भी सुनिश्चित करनी चाहिये, साथ ही कच्चे माल को कानूनी स्रोतों से खरीदना चाहिये तथा लेन-देन का उचित रिकॉर्ड रखना चाहिये।
    • मजिस्ट्रेट/उपायुक्त की अध्यक्षता में ज़िला स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा ताकि उनके अधिकार क्षेत्र में स्थित स्टोन क्रशिंग इकाइयों का नियमित निरीक्षण किया जा सके।
    • स्टोन क्रेशर द्वारा अर्द्धवार्षिक आधार पर श्रमिकों का स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जाना चाहिये।

स्टोन क्रशिंग यूनिट्स से जुड़ा मुद्दा:

  • परिचय:  
    • स्टोन क्रशिंग इकाइयाँ भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में शामिल हैं।
      • ये इकाइयाँ क्रशिंग स्टोन का उत्पादन करती हैं जिनका उपयोग विभिन्न निर्माण गतिविधियों के लिये कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
    • हालाँकि स्टोन क्रशिंग की प्रक्रिया में बहुत अधिक धूल भी उत्पन्न होती है जो श्रमिकों और आसपास की आबादी के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
      • इसके अलावा पत्थर खनन भी इस गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जो पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालता है।
  • हाल के उदाहरण:
    • दिसंबर 2022 में हरियाणा सरकार द्वारा एक मसौदा अधिसूचना में आवासीय क्षेत्रों के पास नए स्टोन क्रशर स्थापित करने के लिये निकटता संबंधी मानदंडों में ढील देने का प्रस्ताव किया गया था। इसकी पर्यावरणविदों द्वारा आलोचना की गई थी, जिन्हें डर था कि यह हवा की गुणवत्ता को खराब करेगा और कृषि भूमि को प्रभावित करेगा।
    • जून 2023 में CSE की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में कई स्टोन क्रशर SPCB से सहमति या पर्यावरण मंज़ूरी के बिना चल रहे हैं।
    • रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इनमें से अधिकतर इकाइयों में उचित प्रदूषण नियंत्रण उपकरण या निगरानी प्रणाली नहीं थी।
  • समस्या के समाधान के लिये कदम: 
    • पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के कार्यान्वयन के तहत ईंट भट्टों और हॉट मिक्स प्लांट के साथ स्टोन क्रशर इकाइयों के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया।
      • GRAP में वे उपाय शामिल हैं जो विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता को बिगड़ने से रोकने और पीएम10 तथा पीएम2.5 के स्तर को 'मध्यम' राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) श्रेणी से आगे जाने से रोकने के लिये उठाए जाएंगे।
    • मई 2023 में पुणे विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला कि पुणे में एक मॉडल स्टोन क्रशर इकाई ने प्रदूषण नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया तथा अपने धूल उत्सर्जन को 90% तक कम कर दिया। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि ऐसी इकाइयाँ भारत में अन्य स्टोन क्रशर हेतु उदाहरण के रूप में काम कर सकती हैं।  

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB):  

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
    • इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
    • यह भारत में पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिये शीर्ष निकाय है। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत कार्य करता है तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) एवं अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करता है। 
  • CPCB के पास विभिन्न प्रभाग हैं जो प्रदूषण नियंत्रण के विभिन्न पहलुओं जैसे- वायु गुणवत्ता प्रबंधन, जल गुणवत्ता प्रबंधन, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरण मूल्यांकन, प्रयोगशाला सेवाएँ, सूचना प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक भागीदारी आदि का निपटान करती हैं। 

आगे की राह

  • हालाँकि CPCB के दिशा-निर्देशों में प्रदूषण नियंत्रण के कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में और अधिक ध्यान देने एवं सुधार की आवश्यकता है। दिशा-निर्देश ध्वनि उत्सर्जन एवं स्टैंडअलोन स्टोन क्रशर के संचालन की अवधि को संबोधित नहीं करते हैं, जो अक्सर आस-पास के निवासियों हेतु असुविधा और समस्या का कारण बनते हैं।  
  • इसके अतिरिक्त दिशा-निर्देशों का पालन करने हेतु स्टोन क्रशरों के लिये विशिष्ट समय-सीमा प्रदान करना तथा SPCBs को दिशा-निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु निर्देशित करना आवश्यक है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक का परिकलन करने में साधरणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016

  1. कार्बन डाईऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोआक्साइड 
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मीथेन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1, 4 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (ए.क्यू.जी) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। वर्ष 2005 के अद्यतन से ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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