सामाजिक न्याय
सीखने की प्रक्रिया पर कोविड-19 का प्रभाव: ASER 2021
- 18 Nov 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन, राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क, प्रज्ञाता दिशा-निर्देश, प्रौद्योगिकी वर्द्धन शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम मेन्स के लिये:शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER 2021) सर्वेक्षण का 16वांँ संस्करण जारी किया गया। सर्वेक्षण में सीखने की प्रक्रिया पर कोविड-19 के प्रभाव का विश्लेषण किया गया।
- यह निजी ट्यूशनों पर निर्भरता में वृद्धि और स्मार्टफोन तक पहुंँच की अनुपस्थिति को दर्शाता है।
- विशेष रूप से छोटी कक्षाओं में सीखने के नुकसान की भरपाई में मदद करने के लिये विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट सर्वेक्षण:
- प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन (Pratham Education Foundation) द्वारा संचालित एएसईआर सर्वेक्षण देश में अपनी तरह का सबसे पुराना सर्वेक्षण है।
- यह प्रारंभिक स्तर पर आधारभूत शिक्षा के स्तरों पर प्रदान की जाने वाली अंतर्दृष्टि की श्रेणी हेतु सबसे बेहतर माना जाता है।
- यह वर्ष 2011 की जनगणना को सैंपलिंग फ्रेम के रूप में उपयोग करता है और देश भर में बच्चों के मूलभूत कौशल के बारे में जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय स्रोत बना हुआ है।
- ASER 2018 में 3 से 16 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों का सर्वेक्षण किया गया और भारत के लगभग सभी ग्रामीण ज़िलों को शामिल किया तथा 5 से 16 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की मूलभूत पढ़ने और अंकगणितीय क्षमताओं का अनुमान लगाया गया।
- ASER 2019 ने 26 ग्रामीण ज़िलों में 4 से 8 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की प्री-स्कूल या स्कूली शिक्षा की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा सामग्री ज्ञान के बजाए 'शुरुआती वर्षों' पर ध्यान केंद्रित किया और 'समस्या-समाधान संकायों के विकास व बच्चों की स्मृति के निर्माण' पर ज़ोर दिया गया।
- ASER 2020 पहला फोन-आधारित सर्वेक्षण है जिसे स्कूल बंद होने के छठे महीने में सितंबर 2020 में आयोजित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि:
- सरकारी स्कूल के छात्रों के नामांकन में एक अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई, जबकि निजी स्कूलों में नामांकन दर का स्तर पिछले 10 वर्षों में सबसे कम रहा।
- निजी स्कूलों के बजाए सरकारी स्कूलों में स्पष्ट वृद्धि/बदलाव देखा गया जो वर्ष 2018 में 64.3% वर्ष 2020 में 65.8% तथा वर्ष 2021 में 70.3% हो गया।
- निजी स्कूलों में नामांकन में वर्ष 2020 में 28.8% से वर्ष 2021 में 24.4% की गिरावट दर्ज की गई है।
- ट्यूशन पर निर्भरता:
- निजी ट्यूशन कक्षाओं पर निर्भरता में वृद्धि देखी गई।
- छात्र, विशेष रूप से गरीब परिवारों के छात्रों की निजी ट्यूशन पर पहले से कहीं अधिक निर्भरता बढ़ी है।
- डिजिटल डिवाइड:
- एक बड़ा डिजिटल विभाजन मौजूद है, जो प्राथमिक कक्षा के छात्रों की सीखने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
- पहली और दूसरी कक्षा के लगभग एक-तिहाई बच्चों के पास घर पर स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं था।
- नए प्रवेशकों के साथ समस्याएँ:
- प्री-प्राइमरी क्लास या आंगनवाड़ी का कोई अनुभव नहीं होने के कारण डिजिटल उपकरणों तक पहुँच की कमी तथा महामारी ने भारत की औपचारिक शिक्षा प्रणाली में सबसे कम उम्र के प्रवेशकों को विशेष रूप से कमज़ोर बना दिया है।
- कक्षा I और II में 3 में से 1 बच्चे ने कभी भी व्यक्तिगत कक्षा में भाग नहीं लिया है।
- महामारी के बाद स्कूल प्रणाली में प्रवेश करने वाले छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली हेतु वातावरण तैयार करने के लिये समय की आवश्यकता होगी।
- अधिगम अंतराल:
- 65.4% शिक्षकों ने बच्चों के ‘समझने में असमर्थ’ होने की समस्या को अपनी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक के रूप में चिह्नित किया।
- एक चेतावनी यह भी दी गई है कि उनके सीखने के परिणाम प्रभावित होंगे जब तक कि उनका तत्काल समाधान नहीं किया जाता है।
- केंद्र सरकार के हालिया राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) के दौरान देश भर के शिक्षकों और क्षेत्र जाँचकर्त्ताओं ने बताया कि प्राथमिक कक्षा के बच्चों को बुनियादी समझ और संख्यात्मक कौशल का परीक्षण करने वाले प्रश्नों की प्रकृति को समझने हेतु संघर्ष करना पड़ा।
- सकारात्मक दृष्टिकोण: रिपोर्ट में उन बच्चों के अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है जो वर्तमान में 15-16 आयु वर्ग में नामांकित नहीं हैं। यह उन वर्गों में से एक है जो स्कूल छोड़ने वाले मुद्दों के उच्चतम जोखिम का सामना करता है।
- वर्ष 2010 में 15-16 वर्ष के बच्चों का अनुपात 16.1% (स्कूल में नामांकन नहीं) था।
- माध्यमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लिये सरकार के अथक प्रयास के बावजूद यह संख्या लगातार घट रही है और वर्ष 2018 में यह 12.1% थी। यह गिरावट वर्ष 2020 में 9.9% और 2021 में 6.6% हो गई।
- संबंधित सरकारी पहल:
आगे की राह
- एक बहु-आयामी दृष्टिकोण: छात्रों के एक बड़े वर्ग को शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने के लिये स्कूलों, शिक्षकों और अभिभावकों के सहयोग से अकादमिक समय सारिणी का लचीला पुनर्निर्धारण और विकल्प तलाशना।
- कम सुविधा वाले उन छात्रों को प्राथमिकता देना जिनकी ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
- ऑनलाइन शिक्षा को अधिक प्रभावी बनाना: लंबे समय तक निरूद्देश्य बैठने और एकतरफा संचार के बजाय छोटी लेकिन गुणवत्तापूर्ण चर्चाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- शिक्षक की भूमिका केवल कक्षा पर नियंत्रण से आगे बढ़कर ज्ञान के हस्तांतरण के लिये एक सूत्रधार होने की है।
- ज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर अधिक ध्यान देना: शिक्षा योग्यता के बारे में नहीं बल्कि प्रेरणा के बारे में अधिक महत्त्वपूर्ण है। छात्रों को केवल पाठ्यक्रम को कवर करने के उद्देश्य न पढ़ाकर बल्कि उस विषय की समझ विकसित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।