भारतीय राजनीति
CBI जाँच हेतु राज्यों की सहमति
- 22 Jul 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, संघवाद, भारतीय न्याय संहिता, सातवीं अनुसूची, केंद्रीय सतर्कता आयोग मेन्स के लिये:CBI से संबंधित मुद्दे और सिफारिशें, संस्थागत सुधार |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को अब राज्य के अधिकारियों के खिलाफ कोई भी जाँच शुरू करने के लिये राज्य सरकार से लिखित सहमति की आवश्यकता होगी।
- यह कदम कई राज्यों द्वारा CBI जाँच के लिये सामान्य सहमति वापस लेने की पृष्ठभूमि में उठाया गया है, जिससे CBI की स्थिति, कार्य और शक्तियों को परिभाषित करने के लिये नए कानून की आवश्यकता के बारे में चर्चा हो रही है।
मध्य प्रदेश ने CBI जाँच के लिये पूर्व सहमति क्यों अनिवार्य की?
- यह निर्णय भारतीय न्याय संहिता (BNS) में बदलावों और CBI के साथ हाल ही में हुए परामर्शों पर विचार करता है।
- इसके अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A के तहत, एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जाँच करने के लिये अनुमति की आवश्यकता होती है।
- इसमें प्रावधान है कि PC अधिनियम के तहत किसी लोक सेवक द्वारा किये गए किसी भी अपराध में पुलिस अधिकारी द्वारा उचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई जाँच नहीं की जाएगी।
- इसके अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17A के तहत, एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जाँच करने के लिये अनुमति की आवश्यकता होती है।
- किसी भी अन्य अपराध के लिय सभी पिछली सामान्य सहमति और किसी भी अन्य अपराध के लिये राज्य सरकार द्वारा केस-दर-केस आधार पर दी गई कोई भी सहमति लागू रहेगी।
- मेघालय, मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल और पंजाब समेत कई राज्यों ने CBI जाँच के लिये सामान्य सहमति वापस ले ली है।
- मध्य प्रदेश के निर्णय के निहितार्थ:
- लिखित सहमति की आवश्यकता राज्य के अधिकारियों के खिलाफ CBI जाँच शुरू करने की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है।
- इससे राज्य सरकार और CBI दोनों पर प्रशासनिक बोझ बढ़ सकता है, जिससे भ्रष्टाचार की जाँच की दक्षता प्रभावित हो सकती है।
- यह निर्णय राज्यों द्वारा केंद्रीय जाँच एजेंसियों पर अधिक नियंत्रण रखने की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो भारत में संघीय शासन की गतिशीलता को प्रभावित करता है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: संथानम समिति की भ्रष्टाचार निवारण समिति (1962-1964) की सिफारिशों के बाद, CBI की आधिकारिक स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
- यह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी जाँच शक्तियाँ प्राप्त करता है।
- यह कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आता है।
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जाँच के संदर्भ में CBI की निगरानी केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा की जाती है।
- यह इंटरपोल सदस्य देशों के साथ जाँच के समन्वय के लिये नोडल पुलिस एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- CBI का निदेशक दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (Delhi Special Police Establishment- DSPE) का पुलिस महानिरीक्षक (IGP) भी होता है जो संगठन के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- CBI निदेशक की नियुक्ति: प्रारंभ में DSPE अधिनियम, 1946 के तहत नियुक्ति की जाती थी। विनीत नारायण मामले में सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों के बाद, वर्ष 2003 में इस प्रक्रिया को संशोधित किया गया।
- वर्तमान व्यवस्था में, लोकपाल अधिनियम 2014 के तहत प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश) की एक समिति नियुक्ति की सिफारिश करती है।
- निदेशक का कार्यकाल दो वर्ष का होता है जिसे जनहित में पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- वर्ष 2021 में, राष्ट्रपति ने CBI और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों के कार्यकाल को दो वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने के लिये दो अध्यादेश जारी किये।
- DSPE अधिनियम, 1946 में किये गए संशोधनों के अनुसार, CBI प्रमुख का कार्यकाल अब तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा।
- CBI के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला विधिक ढाँचा:
- CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के तहत कार्य करती है।
- DSPE अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, CBI अधिकारियों को केंद्रशासित प्रदेशों या रेलवे क्षेत्रों को छोड़कर किसी भी राज्य क्षेत्र में शक्तियों का प्रयोग करने के लिये राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होगी।
- CBI का विधिक आधार संघ सूची की प्रविष्टि 80 पर आधारित है, जो अन्य राज्यों को उनकी अनुमति से पुलिस शक्तियों का विस्तार करने की अनुमति देता है।
- केंद्रशासित प्रदेशों के लिये एक बल होने के नाते CBI केवल राज्यों की सहमति से ही जाँच कर सकती है, जैसा कि वर्ष 1970 में एडवांस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में निर्धारित किया गया था।
- सहमति या तो मामला-विशिष्ट या सामान्य हो सकती है। सामान्य सहमति आमतौर पर राज्यों के अंदर केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जाँच को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रदान की जाती है, क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत 'पुलिस' राज्य सूची की प्रविष्टि 2 में है।
- CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के तहत कार्य करती है।
- प्राथमिक कार्य:
- भ्रष्टाचार विरोधी अपराध: सरकारी अधिकारियों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों की जाँच करना।
- आर्थिक अपराध: प्रमुख वित्तीय घोटाले, आर्थिक धोखाधड़ी, बैंक धोखाधड़ी, साइबर अपराध और नशीले पदार्थों, प्राचीन वस्तुओं और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी से निपटना।
- विशेष अपराध: आतंकवाद, बम विस्फोट, फिरौती हेतु अपहरण और माफिया से संबंधित गतिविधियों जैसे गंभीर एवं संगठित अपराधों की जाँच करना।
- स्वतः संज्ञान मामले: इसके द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों में और केंद्र सरकार के प्राधिकरण के संदर्भ में उनकी सहमति से राज्यों में जाँच शुरू की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय भी राज्य की सहमति के बिना देश में कहीं भी अपराधों की जाँच करने के लिये CBI को निर्देश दे सकते हैं।
कौन से मुद्दे CBI के लिये नए कानून की आवश्यकता को उजागर करते हैं?
- स्पष्ट कानून की आवश्यकता: वर्ष 2023 में एक संसदीय पैनल ने CBI की स्थिति, कार्यों और शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने हेतु नए कानून की आवश्यकता पर बल दिया।
- वर्तमान विधायी ढाँचा, सामान्य सहमति प्रदान करने में राज्यों की बढ़ती अनिच्छा के कारण CBI की जाँच करने की क्षमता को जटिल बना रहा है।
- नियुक्तिकरण संबंधी समस्याएँ: CBI में स्वीकृत पदों की संख्या 7,295 है, जबकि इस समय लगभग 1,700 पद रिक्त हैं। कार्यकारी रैंक, विधि अधिकारी और तकनीकी अधिकारियों के पदों पर रिक्तियों के कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
- इन रिक्तियों के कारण जाँच की गुणवत्ता और एजेंसी की समग्र प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
- CBI की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता: CBI के पास दर्ज मामलों का विवरण, उनकी जाँच में प्रगति और परिणाम, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। CBI की वार्षिक रिपोर्ट भी आम जनता के लिये सुलभ नहीं है।
- आलोचना: CBI अभी भी DPSE अधिनियम 1946 द्वारा निर्देशित है, जो इसकी जवाबदेही और स्वायत्तता में बाधा डालता है। इसकी आलोचना राजनीतिक रूप से पक्षपाती होने तथा अनुचित दबाव के प्रति संवेदनशील होने के लिये की जाती रही है।
- वर्ष 2013 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने वैधानिक समर्थन की कमी के कारण CBI को असंवैधानिक माना था, लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय पर रोक लगा दी। इसमें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के उदाहरण भी सामने आए हैं।
आगे की राह
- वर्ष 2023 में एक संसदीय पैनल ने CBI की स्थिति, कार्य और शक्तियों को परिभाषित करने और इसकी कार्यप्रणाली में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये एक नया कानून बनाने की सिफारिश की थी। यह सिफारिश राज्यों द्वारा सामान्य सहमति प्रदान करने में बढ़ती अनिच्छा के जवाब में आई थी, जिससे CBI की जाँच करने की क्षमता जटिल हो गई थी।
- इस तरह के कानून से विभिन्न राज्यों में CBI के कार्य निष्पादन में आने वाली अस्पष्टताओं और चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।
- इस पैनल ने सिफारिश की है कि CBI के निदेशक को तिमाही आधार पर रिक्तियों को भरने की प्रगति की निगरानी करनी चाहिये। CBI को प्रतिनियुक्ति पर निर्भरता कम करनी चाहिये और अधिक स्थायी कर्मचारियों, विशेषकर पुलिस निरीक्षक तथा पुलिस उपाधीक्षक के पदों के लिये, भर्ती करनी चाहिये।
- CBI को अपनी वेबसाइट पर केस के आँकड़े और वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिये। सूचना तक पहुँच प्रदान करने से CBI की कार्यप्रणाली अधिक जवाबदेह, ज़िम्मेदार, कुशल और पारदर्शी बनेगी।
- इस पैनल ने सुझाव दिया कि CBI के पास एक केंद्रीकृत केस प्रबंधन प्रणाली होनी चाहिये, जिसमें केस का विवरण और प्रगति शामिल हो। सिस्टम को केस की प्रगति पर नज़र रखने की अनुमति देनी चाहिये तथा यह आम जनता हेतु सुलभ होनी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्थिति, कार्यों और शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के लिये नए कानून की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. एक राज्य-विशेष के अंदर प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर करने तथा जाँच करने के केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी. बी. आई.) के क्षेत्राधिकार पर कई राज्य प्रश्न उठा रहे हैं। हालाँकि सी. बी. आई. जाँच के लिये राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोके रखने की शक्ति आत्यंतिक नहीं है। भारत के संघीय ढाँचे के विशेष संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2021) |