RBI के गैर-अनुपालन संबंधी आदेशों पर चिंता | 24 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:RBI, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949, SEBI, IRDAI, SAT, अपीलीय न्यायाधिकरण, बैंकिंग लोकपाल। मेन्स के लिये:गैर-अनुपालन पर RBI के आदेशों पर चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
जनवरी 2020 से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कुछ निर्देशों के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये बैंकों से जुड़े 48 मामलों में 73.06 करोड़ रुपए का मौद्रिक जुर्माना लगाया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अंतर्गत कतिपय उपबंधों का अनुपालन न करने पर बैंकों को दंडित करता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के आदेश संबंधी समस्याएँ:
- जानकारी तक विरल पहुँच:
- बैंकों के ग्राहकों और निवेशकों के पास बैंकों द्वारा RBI के निर्देशों का अनुपालन न करने के बारे में जानकारी तक विरल पहुँच है।
- अन्य वित्तीय नियामकों के मामलों के विपरीत RBI केवल उस इकाई का विवरण प्रदान करता है जिसे उल्लंघन के लिये दंडित किया जा रहा है।
- पक्षों की बात को अनसुना करना:
- RBI अपने आदेशों में न केवल कारण और विस्तृत स्पष्टीकरण देता है, बल्कि पक्षों की बात को अनसुना भी करता है।
- किसी भी गैर-अनुपालन के लिये दो अन्य नियामकों, बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority- IRDAI) तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा जारी दंड आदेश अधिक विस्तृत हैं, साथ ही इसमें उल्लंघन और इसके तरीके के संचालन संदर्भ में अधिक जानकारी शामिल है।
- SEBI संबंधित पक्ष को सुनता है या कार्रवाई करने से पहले कम-से-कम उन्हें स्पष्टीकरण देने का कुछ अवसर देता है तथा संतुष्ट नहीं होने पर संबंधित पक्ष SEBI के फैसले को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती भी दे सकता है।
- RBI अपने आदेशों में न केवल कारण और विस्तृत स्पष्टीकरण देता है, बल्कि पक्षों की बात को अनसुना भी करता है।
- RBI के आदेशों को चुनौती नहीं दी जा सकती:
- वर्तमान में, RBI एकमात्र ऐसी नियामक संस्था है जिसके पास अपीलीय निकाय नहीं है।
- चूँकि RBI में अपील नहीं कर सकते, इसलिये RBI के आदेशों को गुण-दोष के आधार पर चुनौती नहीं दी जाती। विनियामक प्रणाली में इस तरह की व्यवस्था के साथ RBI आसानी से कारण और स्पष्टीकरण दिये बिना केवल एक सरसरी या मुख्य आदेश पारित करके बच सकता है।
- लेकिन RBI के पास बैंकिंग लोकपाल की एक प्रणाली है जहाँ एक पीड़ित बैंक ग्राहक बैंक से विवाद या उसके अनुचित कार्यों और सेवाओं पर प्रश्न उठा सकता है।
- RBI के तर्क:
- जब RBI किसी बैंक में हुई किसी अनियमितता पर आदेश पारित करता है, तो वह आमतौर पर विनियमन के कुछ खंडों या उप-धाराओं का संदर्भ देता है जिसके तहत गैर-अनुपालन हुआ है। इसलिये पारित आदेश में और विस्तार की आवश्यकता नहीं होती है।
- RBI को अपने आदेशों में सभी विवरण सार्वजनिक नहीं करने चाहिये। इससे लोगों के मन में अनावश्यक भय पैदा हो सकता है और बैंकों पर से उनका विश्वास उठ सकता है।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949:
- यह भारत में बैंकिंग फर्मों को नियंत्रित करता है। इसे बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के रूप में पारित किया गया था और 1 मार्च, 1966 से इसे बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में बदल दिया गया था।
- यह अधिनियम RBI को वाणिज्यिक बैंकों को लाइसेंस जारी करने, शेयरधारकों की शेयरधारिता और मतदान अधिकारों को विनियमित करने, बोर्डों तथा प्रबंधन की नियुक्ति की निगरानी करने, बैंकों के संचालन को विनियमित करने, ऑडिट के लिये निर्देश देने, अधिस्थगन, विलय एवं परिसमापन को नियंत्रित करने का निर्देश जारी करने का अधिकार देता है। लोक कल्याण और बैंकिंग नीति के हित में आवश्यकता पड़ने पर बैंकों पर ज़ुर्माना लगाते हैं।
- वर्ष 2020 में सरकार ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 को बदलने के लिये एक अध्यादेश पारित किया, जिससे सभी सहकारी समितियाँ रिज़र्व बैंक की निगरानी में आ गईं, ताकि जमाकर्त्ताओं के हितों की ठीक से रक्षा की जा सके।
आगे की राह
- RBI के आदेशों को चुनौती देने के लिये सेबी के पास इसी तरह की एक अपीलीय व्यवस्था की आवश्यकता है।
- शासन और नीति विशेषज्ञों का कहना है कि हितधारकों को सूचित रखने की आवश्यकता है और एक अपीलीय प्राधिकरण इस उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।
- नियामक के लिये स्पीकिंग ऑर्डर पारित करना बहुत महत्त्वपूर्ण है ताकि इसे पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति इस मुद्दे को जान सके और समझ सके कि क्या गलत हुआ तथा इसे कैसे ठीक किया जा सकता है।
- RBI के एक विस्तृत आदेश से व्याख्या की संभावना बढ़ सकती है, जिसका अगर सही विश्लेषण नहीं किया गया तो बैंकिंग प्रणाली में विश्वास समाप्त हो सकता है।
- प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal- SAT) की तरह, RBI के आदेशों को चुनौती देने के लिये एक अपीलीय प्राधिकरण की आवश्यकता है। एक बार आदेश अपील योग्य होने के बाद, अपीलीय निकाय पूरी मेरिट पर गौर करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही उत्तर है। |