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राष्ट्रीय निकास परीक्षा (NExT) के विषय में चिंताएँ

  • 11 Jul 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

IMA, राष्ट्रीय निकास परीक्षा (National Exit Test- NExT), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission- NMC) के विषय में चिंताएँ

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय निकास परीक्षा के विषय में चिंताएँ

चर्चा में क्यों? 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) से भारत में सभी MBBS छात्रों के लिये प्रस्तावित राष्ट्रीय निकास परीक्षा (NeXT) पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है, इसके लिये अब लाइसेंसिंग परीक्षा और स्नातकोत्तर चयन परीक्षा होगी।

राष्ट्रीय निकास परीक्षा:

  • NExT मेडिकल लाइसेंसिंग परीक्षा है जिसे मेडिकल स्नातकों की योग्यता का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  • जिन छात्रों ने NMC से मान्यता प्राप्त चिकित्सा संस्थानों और विदेशी छात्रों से अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त की है, उन्हें भी राष्ट्रीय निकास परीक्षा क्वालिफाई करनी होगी।
    • भारत में चिकित्सा पेशा के लिये पंजीकरण कराने हेतु उन्हें NExT परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।
  • यह केंद्रीकृत सामान्य परीक्षा, इस उद्देश्य के लिये आयोग द्वारा गठित एक निकाय द्वारा आयोजित की जाएगी।
    • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (संशोधन) विधेयक, 2022 'चिकित्सा विज्ञान में परीक्षा बोर्ड' का प्रस्ताव करता है, जो प्रभावी होने पर NExT परीक्षा आयोजित करने के लिये  ज़िम्मेदार होगा।
  • NExT, FMGE और NEET PG जैसी परीक्षाओं का स्थान लेगा। 
  • NExT में दो अलग-अलग परीक्षाएँ होंगी जिन्हें 'स्टेप्स' कहा जाएगा।
  • प्रयासों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है, बशर्ते उम्मीदवार MBBS में शामिल होने के 10 वर्ष के भीतर दोनों चरणों में उत्तीर्ण हो। 

IMA की चिंताएँँ:  

  • भारत के लगभग 50% मेडिकल कॉलेज पिछले 10-15 वर्षों में स्थापित किये गए हैं और हो सकता है कि उनमें पुराने संस्थानों के समान स्तर के सुप्रशिक्षित शिक्षक और प्रणालियाँ न हों। अतः इन नए कॉलेजों के मानकों की तुलना अधिक स्थापित कॉलेजों से करना उचित नहीं हो सकता है। 
  • IMA के अनुसार, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के माध्यम से NExT का संचालन वर्तमान में स्थापित मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को हानि पहुँचा सकता है।
  • वे 30% से अधिक के न्यूनतम उत्तीर्ण अंक का समर्थन करते हैं और सुझाव देते हैं कि लाइसेंसिंग परीक्षा का ध्यान चुनौतीपूर्ण प्रश्नों को शामिल करने के बजाय न्यूनतम मानक का आकलन करने पर होना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त IMA  इस बात पर ज़ोर देता है कि सबसे मेधावी छात्रों का मूल्यांकन करने के लिये स्नातकोत्तर मेडिकल प्रवेश परीक्षा NExT द्वारा नहीं ली जानी चाहिये।

भारत में चिकित्सा शिक्षा के मानक: 

  • प्रवेश प्रक्रिया:
    • भारत में सभी चिकित्सा संस्थानों में MBBS सहित स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश तभी होता है जब छात्र राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित NEET की परीक्षा पास कर लेता है।
    • नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज़ (NBEMS) पोस्ट ग्रेजुएशन (NEET PG) के लिये परीक्षा आयोजित करवाता है।
  • प्रत्यायन: 
    • नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा प्रतिस्थापित मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI), भारत में मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देती है।
    • प्रत्यायन यह सुनिश्चित करता है कि कॉलेज बुनियादी ढाँचे, संकाय, सुविधाओं और पाठ्यक्रम के निर्धारित मानकों को पूरा करते हैं। हालाँकि ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ कॉलेज इन मानकों को पूरा करने में विफल रहे, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ पैदा हुईं।
  • सीटें: 
    • हाल के वर्षों में कॉलेजों में मेडिकल (MBBS) की उपलब्ध सीटों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023 तक 60,000 से बढ़कर 1,04,333 हो गई है। इन सीटों में से 54,278 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों को आवंटित की गई हैं, जबकि शेष 50,315 निजी मेडिकल कॉलेजों के लिये नामित हैं।

भारत में चिकित्सा शिक्षा को प्रभावित करने वाली समस्याएँ: 

  • मांग-आपूर्ति में असंतुलन:  
    • जनसंख्या मानदंडों के संदर्भ में मांग-आपूर्ति में गंभीर विसंगति के साथ-साथ सीटें भी अपर्याप्त हैं। निजी कॉलेजों में एक सीट की कीमत 15-30 लाख रुपए प्रतिवर्ष (हॉस्टल खर्च और अध्ययन सामग्री शामिल नहीं) के बीच है।
    • यह अधिकांश भारतीयों की क्षमता से कहीं अधिक है। गुणवत्ता पर टिप्पणी करना कठिन है क्योंकि कोई भी इसे मापता नहीं है। हालाँकि निजी-सार्वजनिक विभाजन के बावजूद अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में यह अत्यधिक परिवर्तनशील और खराब है।
  • कुशल फैकल्टी का मुद्दा:  
    • नए मेडिकल कॉलेज खोलने की सरकार की पहल के कारण संकाय की कमी की गंभीर स्थिति है। सबसे निचले स्तर को छोड़कर जहाँ नए प्रवेशकर्त्ता आते हैं, नए मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी को नियुक्त करने के साथ ही शैक्षणिक गुणवत्ता एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।
    • MCI ने होस्ट फैकल्टी तथा भ्रष्टाचार की कई पूर्व कमियों को दूर करने का प्रयास किया। इसने फैकल्टी की शैक्षणिक कठोरता में सुधार के लिये पदोन्नति के साथ प्रकाशनों की आवश्यकता को प्रस्तुत किया। इसका परिणाम यह हुआ कि संदिग्ध गुणवत्ता वाली पत्रिकाएँ तीव्रता से बढ़ने लगीं।
  • निजी मेडिकल कॉलेजों की समस्याएँ:  
    • 1990 के दशक में कानून में बदलाव किये जाने से निजी स्कूल खोलना आसान हो गया और देश में ऐसे कई मेडिकल संस्थान खुले, जिनका वित्तपोषण ऐसे व्यवसायियों एवं राजनेताओं ने किया जिनके पास मेडिकल स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं था। इस कारण चिकित्सा शिक्षा का बड़े पैमाने पर व्यवसायीकरण हुआ
  • चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार:  
    • चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में फर्ज़ी डिग्री, रिश्वत और दान, प्रॉक्सी संकाय आदि जैसी धोखाधड़ी की प्रथाएँ और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है।

आगे की राह 

  • कॉलेज फीस को विनियमित करने के NMC के हालिया प्रयासों का मेडिकल कॉलेजों द्वारा विरोध किया जा रहा है। सरकार को निजी क्षेत्र में भी चिकित्सा शिक्षा को सब्सिडी देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिये अथवा वंचित छात्रों के लिये चिकित्सा शिक्षा के वित्तपोषण के वैकल्पिक तरीकों पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • मेडिकल कॉलेजों का नियमित रूप से गुणवत्ता मूल्यांकन किया जाना चाहिये और यह रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराई जानी चाहिये। गुणवत्ता नियंत्रण उपाय के रूप में NMC सभी मेडिकल स्नातक के लिये एक सामान्य निकास परीक्षा के आयोजन पर विचार कर रहा है।
  • बढ़ती उम्र की आबादी पुरानी और जीवनशैली संबंधी बीमारियों के इलाज को लेकर काफी परेशान होती है, इस समस्या के निराकरण और स्वास्थ्य पेशेवरों की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने हेतु चिकित्सा पेशेवरों के लिये मानक में वृद्धि करने के साथ ही चिकित्सा प्रणाली में नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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