श्रेणी-C के कोयला संयंत्रों के लिये अनुपालन की समय-सीमा | 28 May 2022

प्रिलिम्स के लिये:

कोयला संयंत्र श्रेणियाँ, फ़्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड। 

मेन्स के लिये :

ऊर्जा संसाधन, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट। 

चर्चा में क्यों?    

विद्युत मंत्रालय (MoP) ने उत्सर्जन मानदंडों का पालन करने के लिये 398 थर्मल श्रेणी-C कोयला बिजली संयंत्रों के लिये पुनः 20 वर्ष के विस्तार की मांग की है। 

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 78% कोयले से चलने वाली तापीय बिजली क्षमता वाली इकाइयों के लिये वर्ष 2017 की मूल समय-सीमा तय की थी, वर्ष 2021 में इस समय-सीमा को संशोधित कर वर्ष 2024 कर दिया गया था। 
  • वर्तमान में श्रेणी-C वाले बिजली संयंत्र केवल 5% उत्सर्जन क्षमता मानदंडों का अनुपालन करते हैं। 

समय-सीमा में विस्तार के प्रमुख कारण:  

  • पृष्ठभूमि: 
    • भारत ने प्रारंभ में ज़हरीले सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) इकाइयों को स्थापित करने हेतु उत्सर्जन मानकों का पालन करने को थर्मल पावर प्लांट के लिये वर्ष 2017 की समय-सीमा निर्धारित की थी। 
    • वर्ष 2021 में विद्युत मंत्रालय ने कोरोनोवायरस महामारी और आयात प्रतिबंधों सहित विभिन्न कारणों से देरी का हवाला देते हुए पर्यावरण मंत्रालय से अनुरोध किया कि वह वर्ष 2022 से 2024 तक सभी ताप विद्युत संयंत्रों के लिये उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने की समय-सीमा को बढ़ाए। 
    • अतः अप्रैल 2021 में पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिये उत्सर्जन मानदंडों का पालन करने हेतु समय-सीमा को तीन वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष कर दिया।  
      • ये संशोधित मानदंड बिजली संयंत्रों को उनकी अवस्थिति के आधार पर अनुपालन के लिये समय-सीमा को कम कर देते हैं। 
      • इसके अंतर्गत सभी ताप विद्युत संयंत्रों को तीन समूहों- श्रेणी- A, B और C में वर्गीकृत किया गया है। 
    • पर्यावरण के हितों की रक्षा करना प्राथमिकता होनी चाहिये और प्रदूषण फैलाने वालों और लगातार उल्लंघन करने वालों का पक्ष नहीं लिया जाना चाहिये। 
    • बिजली संयंत्रों को अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए कोयला गैसीकरण, कोयला लाभकारी जैसी नई तकनीकों को आसानी से नियोजित किया जाना चाहिये। 
    • साथ ही भारतीय ऊर्जा संक्रमण क्षेत्र में परिवर्तन के लिये अक्षय ऊर्जा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  • कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन: 
    • थर्मल पावर कंपनियांँ देश की बिजली का तीन-चौथाई उत्पादन करती हैं, इनके द्वारा उत्सर्जित पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर एवं नाइट्रस-ऑक्साइड औद्योगिक उत्सर्जन का लगभग 80% हिस्सा है, जो फेफड़ों की बीमारियों, अम्ल वर्षा और स्मॉग का कारण बनती हैं। 
    • े सभी उद्योग कुल पीने योग्य ज़ल का 70% उपयोग करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
  • विस्तार का कारण: 
    • 'आत्मनिर्भर भारत' को प्रोत्साहित करने हेतु फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) के लिये चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम। 
      • FGD थर्मल प्रोसेसिंग, उपचार और दहन भट्टियों, बॉयलरों तथा अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा उत्पादित फ्लू गैसों से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) को हटाना है। 
    • मांग-आपूर्ति में अंतर के कारण FGD की प्रति यूनिट उत्पादन उच्च लागत 0.39 करोड़ रुपए से बढ़कर 1.14 करोड़ रुपए हो गईं। 
    • कोविड-19 महामारी के कारण FGD की योजना, निविदा और कार्यान्वयन बाधित हो गया था। 
    • इसके अलावा भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण एब्जॉर्बर लाइनिंग और बोरोसिलिकेट्स जैसे FGD के घटकों के लिये आयात बाधाएंँ मौजूद हैं। 

कोयला संयंत्रों की विभिन्न श्रेणियांँ: 

  • मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों, गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों, गैर-प्राप्ति शहरों और दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र आदि को उनकी हवाई दूरी के आधार पर कोयला संयंत्रों को श्रेणी-A, श्रेणी-B और श्रेणी-C संयंत्रों में वर्गीकृत किया गया है। 
    • श्रेणी-A: 
      • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किमी. के दायरे में बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2022 की समय-सीमा पूरी करनी होगी। 
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा तैयार की गई सूची के अनुसार, ऐसे 79 कोयला आधारित बिजली संयंत्र हैं। 
    • श्रेणी-B और श्रेणी- C: 
      • गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के 10 किमी. के दायरे में बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2023 की समय-सीमा पूरी करनी होगी। इस समय B-श्रेणी के 68 संयंत्र हैं। 
      • शेष संयंत्रों में कुल मिलाकर 75% श्रेणी-C के अंतर्गत आते हैं, जिनके दिसंबर 2024 की समय-सीमा में पूरा किये जाने की उम्मीद थी। इस समय C-श्रेणी के तहत 449 संयंत्र हैं। 
  • वर्ष 2021 के संशोधन ने पहली बार दंड की शुरुआत की। श्रेणी-ए में गैर-सेवानिवृत्त संयंत्रों के लिये समय-सीमा के उल्लंघन पर अधिकतम जुर्माना 20 पैसे प्रति यूनिट है; श्रेणी-बी संयंत्रों के लिये प्रति यूनिट 15 पैसे और श्रेणी-C संयंत्रों के लिये 10 पैसे प्रति यूनिट। सेवानिवृत्त होने वाले संयंत्रों मामले में 20 पैसे प्रति यूनिट की दर से ज़ुर्माना लगाया जाता है। 

श्रेणी-A और श्रेणी-B संयंत्रों की अनुपालन स्थिति: 

  • श्रेणी-A के लगभग आधे (54%) संयंत्र दिसंबर 2022 की समय-सीमा का पालन नहीं करते हैं। अब तक सिर्फ 13 फीसदी संयंत्र ही उत्सर्जन मानकों पर खरे उतरे हैं। 
  • श्रेणी-B के केवल 8% संयंत्र अनुपालन का दावा करते हैं और 30% समय-सीमा को पूरा करने की संभावना रखते हैं। 61% के समय-सीमा से चूकने की आशंका है। 

आगे की राह 

  • पर्यावरण की रक्षा करना प्राथमिकता होनी चाहिये और प्रदूषण फैलाने वालों तथा लगातार उल्लंघन करने वालों का पक्ष नहीं लिया जाना चाहिये। 
  • बिजली संयंत्रों को अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिये कोयला गैसीकरण जैसी  लाभकारी नई तकनीकों को आसानी से नियोजित किया जाना चाहिये। 
  • साथ ही भारतीय ऊर्जा संक्रमण क्षेत्र में परिवर्तन के लिये अक्षय ऊर्जा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। 

िगत वर्ष के प्रश्न:

 

प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से किस प्रकार भिन्न है? (2018) 

  1. NGT को एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है जबकि CPCB सरकार के एक कार्यकारी आदेश द्वारा बनाया गया है।
  2. NGT पर्यावरणीय न्याय प्रदान करता है तथा उच्च न्यायालयों में मुकदमों के बोझ को कम करने में मदद करता है, जबकि CPCB नदियों और कुओं की सफाई को बढ़ावा देता है तथा इसका उद्देश्य देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(A) केवल 1 
(B) केवल 2 
(C) 1 और 2 दोनों 
(D) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (B) 

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) एक वैधानिक संगठन है जिसका गठन सितंबर 1974 में जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था। इसे वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत शक्तियांँ और कार्य सौंपे गए थे। NGT, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (2010) के तहत स्थापित एक विशेष निकाय है। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • CPCB के कार्यं: 
    • जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के माध्यम से राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नालों व कुओं की सफाई को बढ़ावा देकर जल की गुणवत्ता की निगरानी करना। 
    • देश में वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के माध्यम से वायु गुणवत्ता में सुधार करके वायु गुणवत्ता की निगरानी करना। 
  • NGT पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निपटान का प्रावधान करता है। अत: कथन 2 सही है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ