सांप्रदायिक हिंसा | 24 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सांप्रदायिक हिंसा, भारत में सांप्रदायिक हिंसा की प्रमुख घटनाएँ, सांप्रदायिक हिंसा के प्रमुख कारण, सांप्रदायिक सद्भाव में राज्य की भूमिका

मेन्स के लिये:

सांप्रदायिक हिंसा, समाज और अर्थव्यवस्था पर सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव, सांप्रदायिक हिंसा से निपटने हेतु संस्थागत उपाय, अंतर-सामुदायिक समन्वय का महत्त्व। 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश के बहराइच में एक धार्मिक जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा होने से कई लोगों की मौत हो गई तथा कई अन्य घायल हुए। इस स्थिति को देखते हुए यहाँ पुलिस की मौजूदगी को बढ़ाने के साथ कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने हेतु कार्रवाई की गई। 

सांप्रदायिक हिंसा क्या है? 

  • परिचय: 
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) में सांप्रदायिक हिंसा को किसी भी ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिससे धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा मिलता है।
  •  BNS में सांप्रदायिक हिंसा संबंधी प्रावधान: 
    • भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 का उद्देश्य विभिन्न आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी और घृणा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को रोकना और दंडित करना है।
    • इसके तहत ऐसे कृत्यों (विशेषकर जब ये कृत्य पूजा स्थलों या धार्मिक समारोहों के दौरान होते हैं) के लिये कारावास और जुर्माने का प्रावधान करके सामाजिक सद्भाव बनाए रखने का प्रयास किया गया है। 

भारत में सांप्रदायिक हिंसा के क्या कारण हैं? 

  • राजनीतिक कारक:
    • राजनीतिक दल अक्सर चुनावी लाभ प्राप्त करने के क्रम में सांप्रदायिक भावनाओं का उपयोग करते हैं तथा सत्ता बरकरार रखने के लिये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाते हैं।
    • अप्रभावी राजनीतिक संस्थाएँ सांप्रदायिक संघर्षों को रोकने या उनका समाधान करने में विफल होने के कारण इस समस्या को और बढ़ावा मिलता है, जिससे अपराधियों में दंड से मुक्ति की संस्कृति विकसित होती है।
  • सामाजिक गतिशीलता:
    • पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता से अंतर-सामुदायिक समन्वय में बाधा आती है।
    • चरमपंथी समूहों के प्रभाव से सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा मिलता है।
    • सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिये धार्मिक प्रतीकों का दुरुपयोग किया जाता है।
  • आर्थिक कारक:
    • सीमित संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा से समुदायों के बीच संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
    • हाशिये पर स्थित समूहों को प्रायः भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • सांस्कृतिक संघर्ष:
    • भिन्न-भिन्न मूल्य और जीवन-शैलियों से टकराव को बढ़ावा मिलता है। बढ़ती धार्मिक रूढ़िवादिता से सांस्कृतिक बहुलवाद के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • पवित्र स्थल प्रायः सांस्कृतिक विनियोग या अपवित्रता के केंद्र बन जाते हैं।
  • शिक्षा और जागरूकता का अभाव:
    • व्यापक स्तर पर व्याप्त फेक न्यूज़ से अविश्वास को बढ़ावा मिलता है, जिससे विभिन्न समुदाय हिंसा के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।

सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में सरकार की क्या भूमिका है? 

  • भारत में गृह मंत्रालय (MHA) ने सांप्रदायिक सद्भाव से संबंधित कई पहल की हैं, जिनमें राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव फाउंडेशन (NFCH) और राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार शामिल हैं: 
    • राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव फाउंडेशन (NFCH): यह एक स्वायत्त संगठन है, जो सांप्रदायिक सद्भाव एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। NFCH के निम्न कार्य हैं: 
      • हिंसा के शिकार बच्चों के पुनर्वास हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना 
      • अंतर-धार्मिक समन्वय को प्रोत्साहित करना 
      • जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना 
  • राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार 
    • सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता में योगदान देने वाले व्यक्तियों, छात्र संघों और संगठनों को प्रतिवर्ष यह पुरस्कार दिया जाता है।
    • इस पुरस्कार की घोषणा प्रतिवर्ष 26 जनवरी को होती है। इस पुरस्कार के निर्णायक मंडल में भारत के उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, गृह सचिव और केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा नामित दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं। 
  • सांप्रदायिक सद्भावना संबंधी दिशानिर्देश 
    • सांप्रदायिक सद्भाव पर गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में सूचना के प्रबंधन के साथ प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ शामिल हैं। 

भारत में सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव क्या हैं?

  • मानव जीवन की हानि: सांप्रदायिक हिंसा परिवारों और समुदायों को नष्ट कर देती है और बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो सकती है। इस नुकसान के कारण होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों से कई पीढ़ियाँ प्रभावित होती हैं।
  • संपत्ति का विनाश: हिंसा से घर, व्यवसाय और पूजा स्थल अक्सर नष्ट हो जाते हैं, जिससे आर्थिक नुकसान होता है। इस तरह के विनाश से आजीविका बाधित होती है और सामुदायिक बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है।
  • सामाजिक विघटन: सांप्रदायिक हिंसा से सामाजिक सामंजस्य कमज़ोर होने के साथ समुदायों के बीच विश्वास एवं एकता में कमी आती है। इससे लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते तनावपूर्ण होने के साथ टूट सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप समाज में विभाजन बढ़ सकता है।
  • आर्थिक बाधाएँ: हिंसा के कारण संसाधनों का दुरुपयोग होता है और निवेश के लिये प्रतिकूल माहौल बनता है। आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होती हैं, जिससे संवृद्धि और विकास में बाधा आती है।
  • मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव: इससे पीड़ितों को मानसिक आघात, चिंता और अवसाद का सामना करना पड़ता है। राजनीतिक रूप से सांप्रदायिक हिंसा से लोकतंत्र एवं विधि का शासन कमज़ोर होने के साथ तानाशाही एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।

नोट: 

  • सांप्रदायिक हिंसा (निवारण, नियंत्रण और पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक, 2005:
    • विधेयक का उद्देश्य सांप्रदायिक हिंसा का निवारण, संघर्षों के दौरान त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करना तथा पीड़ितों का पुनर्वास करना है।
    • यह केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को सांप्रदायिक दंगों में हस्तक्षेप करने और उन्हें नियंत्रित करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • हिंसा को नियंत्रित करने में विफलता या लापरवाही हेतु सार्वजनिक अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
    • मुकदमों में तेज़ी लाने के लिये विशेष न्यायालय स्थापित किये जा सकते हैं।
    • पीड़ितों के मुआवज़े और पुनर्वास हेतु कानूनी प्रावधान प्रदान करता है।

सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के क्या समाधान हैं?

  • कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: हेट स्पीच और सांप्रदायिक हिंसा से निपटने हेतु कानूनों को मज़बूत करना, अपराधियों के लिये सख्त प्रवर्तन तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना।
    • राज्य स्तरीय एकीकरण समिति, ज़िला प्रशासन के साथ मिलकर, संभावित सांप्रदायिक तनावों की निगरानी करके तथा समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित करके सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
  • अंतर-समुदाय संवाद को बढ़ावा देना: समझ, विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देने तथा मिथ्याबोध के निराकरण हेतु विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को सुलभ बनाना।
    • अंतर्धार्मिक विवाह सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक विभाजन के अंतर को कम करके सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • सामुदायिक सहभागिता पहल: जागरूकता कार्यक्रमों और समुदाय-संचालित संघर्ष समाधान रणनीतियों के माध्यम से शांति स्थापित करने के प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
  • सक्रिय निगरानी और प्रतिक्रिया: तनावों की निगरानी करने और ज़िला प्रशासन द्वारा समय पर हस्तक्षेप के समन्वय के लिये राज्य स्तरीय एकीकरण समितियों की स्थापना करना।
  • जागरूकता कार्यक्रम: स्कूलों और सामुदायिक संगठनों को लक्षित करते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिये शैक्षिक पहलों को लागू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

प्रश्न: भारत में सांप्रदायिक हिंसा के कारणों का विश्लेषण कीजिये और इसे संबोधित करने के लिये सरकारी उपायों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये, जिसमें राज्य स्तरीय एकीकरण समितियों और गृह मंत्रालय की भूमिकाएँ शामिल हैं। 


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