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सामाजिक न्याय

शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग से निपटान

  • 23 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में रैगिंग के कानूनी परिणाम, राघवन समिति, सर्वोच्च न्यायालय 

मेन्स के लिये:

रैगिंग के खतरे को रोकने के लिये UGC के दिशा-निर्देश, भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में लगातार परेशान करने वाली रैगिंग की समस्या के मुद्दे ने जादवपुर विश्वविद्यालय में हाल ही में हुई एक घटना के कारण एक बार फिर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है।

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों और दिशा-निर्देशों के माध्यम से इस मुद्दे के समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

भारत में रैगिंग विरोधी उपायों की वर्तमान स्थिति:

  • रैगिंग को परिभाषित करना: सर्वोच्च न्यायालय का परिप्रेक्ष्य:
    • वर्ष 2001 (विश्व जागृति मिशन) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग की एक व्यापक परिभाषा प्रदान की।
    • इसमें रैगिंग को किसी भी अव्यवस्थित आचरण के रूप में वर्णित किया गया है जिसमें साथी छात्रों को चिढ़ाना, उनके साथ अशिष्ट व्यवहार करना, अनुशासनहीन गतिविधियों में शामिल होना, जिससे झुंझलाहट या मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है या जूनियर छात्रों के बीच डर पैदा होता है।
      • न्यायालय ने यह भी कहा कि रैगिंग के पीछे के उद्देश्यों में अक्सर परपीड़क आनंद प्राप्त करना, नए छात्रों की तुलना में वरिष्ठों द्वारा शक्ति, अधिकार या श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना शामिल होता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मुख्य दिशा-निर्देश: 
    • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में रैगिंग को रोकने तथा उसे संबोधित करने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के भीतर प्रॉक्टोरल समितियाँ (Proctoral Committees) स्थापित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है।
    • इसके अलावा इसमें रैगिंग की घटनाओं की रिपोर्ट पुलिस से करने की संभावना पर प्रकाश डाला गया है यदि वे असहनीय हो जाती हैं या संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ जाती हैं।
  • राघवन समिति और UGC दिशा-निर्देश:
    • 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग मुद्दे पर पुनः विचार किया और इसे व्यापक रूप से संबोधित करने के लिये पूर्व CBI निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में एक समिति नियुक्त की थी।
    • समिति की सिफारिशों को बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा अपनाया गया/अंगीकृत किया गया।
      • रैगिंग का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए UGC ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जिनका पालन करना विश्वविद्यालयों के लिये आवश्यक था।
    • UGC के दिशा-निर्देश जिसका शीर्षक है, "उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर विनियमन", रैगिंग के कई रूपों पर प्रकाश डालता है, जिसमें चिढ़ाना, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाना, हीन भावना उत्पन्न करना और पैसे की ज़बरन वसूली में शामिल होना है।
    • दिशा-निर्देशों में विश्वविद्यालयों को रैगिंग रोकने के लिये सार्वजनिक रूप से अपनी प्रतिबद्धता घोषित करने का आदेश दिया गया है और छात्रों को शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया है कि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे।
    • UGC ने रैगिंग के खिलाफ सक्रिय कदम उठाने की ज़िम्मेदारी शैक्षणिक संस्थानों पर भी डाली है।
      • विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम-प्रभारी, छात्र सलाहकार, वार्डन और वरिष्ठ छात्रों वाली समितियाँ स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
      • इन समितियों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिये नए तथा पुराने छात्रों के मध्य बातचीत की निगरानी एवं विनियमन करने का काम सौंपा गया था।

नोट: यूजीसी ने भी 2016 में लिंग पहचान और यौन अभिविन्यास को रैगिंग के आधार के रूप में मान्यता दी थी।

  • भारत में रैगिंग के कानूनी नतीजे:
    • हालाँकि रैगिंग को एक विशिष्ट अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के विभिन्न प्रावधानों के तहत इसमें दंडित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये IPC की धारा 339 के तहत परिभाषित रोंगफुल रिस्ट्रेंट (जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकता है) के अपराधी को एक महीने तक की कैद या पाँच सौ रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
    • IPC की धारा 340 के तहत रोंगफुल कन्फाइनमेंट (जो भी कोई किसी व्यक्ति को गलत तरीके से प्रतिबंधित करेगा) के अपराधी को एक वर्ष तक की कैद या एक हज़ार रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है।
  • संबंधित राज्य स्तरीय विधान: 
    • कई भारतीय राज्यों ने रैगिंग से निपटने हेतु विशेष कानून पेश किया है।
      • उदाहरण के लिये केरल रैगिंग निषेध अधिनियम, 1998; आंध्र प्रदेश रैगिंग निषेध अधिनियम, 1997; असम रैगिंग निषेध अधिनियम 1998 और महाराष्ट्र रैगिंग निषेध अधिनियम, 1999।

आगे की राह

  • रैगिंग विरोधी ठोस उपाय करना: रैगिंग विरोधी उपायों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये बाहरी विशेषज्ञों, छात्रों और संकाय सदस्यों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक ऑडिट आयोजित करने की आवश्यकता है।
  • ये ऑडिट कमियों, सुधार के क्षेत्रों और सफल प्रथाओं के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं
  • इससे प्राप्त निष्कर्षों का उपयोग शासन की रणनीतियों में सुधार करने और अनुकूलित करने के लिये किया जा सकता है, जिससे रैगिंग को रोकने के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • डिजिटल रिपोर्टिंग: कोई छात्र गोपनीय तरीके से रैगिंग की जानकारी साझा कर सके, इसके लिये एक समर्पित रिपोर्टिंग पोर्टल अथवा मोबाइल एप विकसित किया जा सकता है।
  • त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित करते हुए उपयुक्त प्राधिकारियों को बिना किसी विलंब के इसकी सूचना साझा करने की सुविधा इस प्रणाली में शामिल की जा सकती है।
  • सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम: छात्रों को स्वयंसेवी कार्य, सामुदायिक सेवा और सामाजिक आउटरीच में शामिल करते हुए नियमित रूप से सामुदायिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा सकता है। ज़िम्मेदारी और एकता की भावना पैदा करने से इस समस्या के प्रभावी समाधान में मदद मिल सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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