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तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023

  • 14 Aug 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023, तटीय जलकृषि प्राधिकरण, सी-वीड फार्मिंग, प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, एंटीबायोटिक्स

मेन्स के लिये:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 से संबंधित प्रमुख प्रावधान

चर्चा में क्यों?

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 को भारतीय संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है। इस संशोधन का लक्ष्य अस्पष्टताओं को दूर करना, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और उभरती जलीय कृषि प्रथाओं को एकीकृत करना है।

तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम, 2005:

  • तटीय जलकृषि का आशय समुद्र तट अथवा मुहाने पर समुद्री अथवा खारे जलीय वातावरण में मछली, शंख और जलीय पादपों जैसे जलीय जीवों की खेती से है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य तट के करीब समुद्री भोजन की खेती में शामिल प्रक्रियाओं की देख-रेख और विनियमन के लिये तटीय जलकृषि प्राधिकरण नामक एक विशेष संगठन की स्थापना करना है।
  • अधिनियम के अनुसार, सरकार का कर्त्तव्य है कि वह धारणीय तटीय जलकृषि की प्रथा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कार्रवाई करे।

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 से संबंधित प्रमुख प्रावधान:

  • तटीय जलकृषि गतिविधियों के दायरे में वृद्धि:
    • तटीय जलकृषि का विस्तार: यह संशोधन विधेयक इस अधिनियम के दायरे में तटीय जलकृषि की सभी गतिविधियों को व्यापक रूप से कवर करने के लिये व्यापक आधार वाली "तटीय जलकृषि" का प्रावधान करता है और तटीय जलकृषि के अन्य कार्य क्षेत्रों के बीच मूल अधिनियम में मौजूद अस्पष्टता को दूर करता है।
    • उभरती जलकृषि प्रथाओं का समावेश: इस संशोधन के तहत झींगा पालन के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल तटीय जलकृषि के नए रूपों जैसे- केज कल्चर, सी वीड कल्चर, बाई-वाल कल्चर, मरीन ऑर्नेमेंटल फिश कल्चर आदि को शामिल किया गया है।
      • इन गतिविधियों में भारी राजस्व उत्पन्न करने और तटीय मछुआरा समुदायों, विशेष रूप से मछुआरा महिलाओं के लिये बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा करने की भी क्षमता है।
    • नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ) के भीतर जलकृषि इकाइयों को सुविधा प्रदान करना: इस अधिनियम के माध्यम से हैचरी, ब्रूडस्टॉक मल्टीप्लिकेशन सेंटर (BMC),और न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर (NBC) जैसे प्रतिष्ठानों को अब हाई टाइड लाइन (HTL) से 200 मीटर के भीतर संचालित करने की अनुमति दे दी गई है।
      • संशोधन का उद्देश्य वर्ष 2005 के मूल CAA अधिनियम की धारा 13(8) की व्याख्या द्वारा उत्पन्न पूर्व की अस्पष्टताओं को हल करना है, जिसमें तटीय जलीय कृषि को CRZ प्रतिबंधों से बाहर रखा गया था।
  • विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना एवं व्यावसायिक सुगमता को बढ़ावा देना:
    • पंजीकरण में संशोधन: मूल अधिनियम में पंजीकरण के बिना तटीय जलकृषि करने पर 3 वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। यह पूरी तरह से नागरिक प्रकृति के अपराध के लिये बहुत कठोर सज़ा प्रतीत होती है और इसलिये इस संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि नागरिक अपराधों के गैर-अपराधीकरण के सिद्धांत के अनुसार इस अपराध हेतु ज़ुर्माने जैसी उपयुक्त नागरिक अनुकूल प्रणाली अपनाई जाएगी।
    • संचालनात्मक लचीलापन: संशोधन स्वामित्व या गतिविधि के आकार में परिवर्तन के मामले में पंजीकरण प्रमाणपत्रों को संशोधित करने के प्रावधान प्रस्तुत करते हैं।
      • वे प्रशासनिक लचीलेपन में वृद्धि करते हुए तटीय जलकृषि प्राधिकरण को नवीनीकरण आवेदनों में देरी के लिये चक्रवृद्धि लागत वसूलने का अधिकार भी देते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण एवं अनुपालन:
    • उत्सर्जन एवं अपशिष्टों के लिये मानक: संशोधन तटीय जलकृषि प्राधिकरण को जलीय कृषि इकाइयों से उत्सर्जन अथवा अपशिष्टों के लिये मानक स्थापित करने का अधिकार देता है, जिससे मालिकों को इन मानकों का पालन करने के लिये उत्तरदायी ठहराया जाता है।
    • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: यह संशोधन 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' को बनाए रखता है, जिसके अंर्तगत जलीय कृषि इकाई मालिकों को प्राधिकरण द्वारा मूल्यांकन किये गए किसी भी पर्यावरण-संबंधी हानि या विध्वंस की लागत वहन करने के लिये बाध्य किया जाता है।
    • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निषेध: संशोधन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों अथवा महत्त्वपूर्ण भू-आकृति विज्ञान विशेषताओं वाले क्षेत्रों में तटीय जलीय कृषि गतिविधियों पर रोक लगाते हैं, जिससे कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा बढ़ जाती है।
  • बीमारियों की रोकथाम के प्रयास और धारणीय कृषि प्रथाओं का विकास:
    • एंटीबायोटिक-मुक्त जलीय कृषि: एंटीबायोटिक दवाओं एवं औषधीय रूप से सक्रिय पदार्थों के उपयोग पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाकर, संशोधन जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं,साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता में वृद्धि भी करते हैं।

भारत में तटीय जलकृषि की स्थिति:

  • भारत की तटरेखा लगभग 7,517 कि.मी. लंबी है और इसमें तटीय जलकृषि के विकास की व्यापक संभावनाएँ हैं। भारत में प्रमुख तटीय जलकृषि जीवों की प्रजातियाँ झींगा (Shrimp), मछली (Fish), केकड़ा (Crab), सीप (Oyster), मसल्स (Mussel), सी-वीड (Seaweed) और मोती (Pearl) हैं।
    • पिछले 9 वर्षों में भारत में झींगा उत्पादन में 267% की वृद्धि हुई है।
  • देश के समुद्री खाद्य निर्यात में दोगुना प्रभाव देखा गया, जो वर्ष 2013-14 के 30,213 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 63,969 करोड़ रुपए हो गया
    • विशेष रूप से इन निर्यातों में बड़ा हिस्सा झींगा का है।
  • आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे प्रमुख तटीय राज्यों ने तटीय जलकृषि झींगा उत्पादन और उसके बाद के निर्यात के विस्तार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

निष्कर्ष:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक [Coastal Aquaculture Authority (Amendment) Bill], 2023 के नियमों को स्पष्ट करके स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने तथा पर्यावरण की सुरक्षा करके भारत के जलकृषि क्षेत्र को बढ़ाता है। यह SDG 14 (जल के नीचे जीवन/Life Below Water) के अनुरूप है और ज़िम्मेदार आर्थिक विकास तथा पारिस्थितिक कल्याण के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. ‘नीली क्रांति’ को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018)

स्रोत: पी.आई.बी

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