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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जलवायु परिवर्तन समस्या और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

  • 10 Jan 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सतत विकास लक्ष्य, वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, UN Climate Action Summit, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दा,जलवायु परिवर्तन से निपटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का योगदान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आधुनिक विश्व

चर्चा में क्यों?

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) विश्व के समक्ष एक जटिल चुनौती है, विभिन्न देशों द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science and Technology- S&T) के क्षेत्र में सहयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्तमान समय में प्रमुख मुद्दों और विकासात्मक चुनौतियों का सामना करने वाले राष्ट्रों के समक्ष महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम सृजित हुए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार (Innovation) इन बहुमुखी चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को प्राप्त करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचारों का अत्यधिक महत्त्व है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत सहित विश्व के अन्य देश प्रतिबद्ध हैं जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में सीमा पार से सहयोग के लिए एक नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
  • भारत जैसे विविधता वाले देश में यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से वहाँ के लोग सशक्त होंगे और उनकी जीवन शैली आसान बनेगी तथा S&T अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस प्रकार वैश्विक राजनीति में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत आयाम है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित बहुत से नवाचार हुए हैं जो मानव जीवन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौरतलब है कि इन्हीं नवाचारों से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ पर्यावरण को हानि भी पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिये फ्रिज, AC इत्यादि उपकरणों का प्रयोग एक तरफ मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाते है और दूसरी ओर वातावरण में तापमान की वृद्धि के अहम कारक हैं।
  • साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से ही पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले वस्तुओं/तत्वों के विकल्पों की तलाश करना संभव है। अतः यह कहा जा सकता है कि विज्ञान के उन्नयन से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का निवारण विज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

वैज्ञानिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक स्तर उठाए गए कदम

  • कुछ वर्ष पहले ही भारत ने वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन (Global Innovation Technology Alliance- GITA) लॉन्च किया था जो फ्रंटलाइन तकनीकी-आर्थिक गठजोड़ के लिये एक सक्षम मंच प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारत के उद्यम कनाडा, फिनलैंड, इटली, स्वीडन, स्पेन और यूके सहित अन्य देशों के अपने समकक्षों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं तथा विश्व स्तर पर मौजूद चुनौतियों से निपटने की दिशा में प्रयासरत हैं।
  • भारत के नेतृत्व वाले और सौर उर्जा संपन्न 79 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों तथा लगभग 121 सहभागी देशों वाला अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) आधुनिक समय में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। ध्यातव्य है कि ISA का उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करना है। इस तरह का मंच सदस्य देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को सुरक्षित, सस्ती, न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से पूरा कर सौर ऊर्जा के उपयोग के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक योगदान दे सकता है।
  • हाल ही में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यवाही शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में भारत के प्रधानमंत्री ने आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) की घोषणा की।
    • गौरतलब है कि CDRI 35 देशों के परामर्श से भारत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का एक और उदाहरण है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने के लिये आवश्यक जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु विकसित और विकासशील देशों को सहयोग प्रदान करेगा। CDRI सदस्य देशों को तकनीकी सहायता और क्षमता विकास, अनुसंधान एवं ज्ञान प्रबंधन तथा वकालत व साझेदारी प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य जोखिम की पहचान, उसका निवारण तथा आपदा जोखिम प्रबंधन करना है।
    • गठबंधन का उद्देश्य दो-तीन वर्षों के भीतर सदस्य देशों के नीतिगत ढाँचे, भविष्य के बुनियादी ढाँचे के निवेश और क्षेत्रों में जलवायु से संबंधित घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने संबंधी योजनाओं पर तीन गुना सकारात्मक प्रभाव डालना है।
    • इस गठबंधन के माध्यम से किफायती आवास, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से बचाने के लिये आवश्यक मज़बूत मानकों के अनुरूप बनाना इत्यादि बातों को सुनिश्चित करके भूकंप, सुनामी, बाढ़ और तूफान के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

आगे की राह

  • यह स्पष्ट है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महज दिखावा नहीं है बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता है। गौरतलब है कि किसी भी राष्ट्र के पास बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन की वह क्षमता नहीं हैं, जिससे पृथ्वी और मानव जाति के समक्ष मौजूद विशाल चुनौतियों से निपटा जा सके। इसलिये, यह अपरिहार्य है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार को ध्यान में रखकर भारत एवं अन्य देशों द्वारा एक आंतरिक कूटनीतिक उपकरण (Intrinsic Diplomatic Tool) बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव के लिए प्रभावी उपकरणों को डिज़ाइन करने एवं उन्हें विकसित करने हेतु हितधारकों के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय के सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं की खोज कर एवं उन तक आसान पहुँच प्रदान कर ही पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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