छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव | 09 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

COP-27 (2022), न्यू लॉस एंड डैमेज फंड, जलवायु परिवर्तन, हरिकेन मारिया, ऋण-GDP अनुपात, COP-29

मेन्स के लिये:

विकासशील देशों की सहायता में जलवायु वित्तपोषण का महत्त्व।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

शर्म अल शेख में UNFCCC COP-27 (2022) के दौरान, जलवायु-संवेदनशील देशों, विशेष रूप से छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (SIDS) की मदद के लिये एक नया लॉस एंड डैमेज फंड बनाया गया था।

  • समझौते के बावजूद, विकसित राष्ट्र- जो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक हैं, अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिसके कारण कई संवेदनशील देशों को आवश्यक सहायता नही मिल पायी हैं। 

छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य (SIDS)

  • छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य (SIDS) छोटे द्वीपीय राष्ट्रों और क्षेत्रों के समूह को संदर्भित करते हैं, जो महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कमज़ोरियों के साथ-साथ सतत् विकास में साझा चुनौतियों का सामना करते हैं। 
    • SIDS में मालदीव, सेशेल्स, मार्शल द्वीप, सोलोमन द्वीप, सूरीनाम, मॉरीशस, पापुआ न्यू गिनी, वानूआतू, गुयाना और सिंगापुर शामिल हैं।
  • SIDS मुख्य रूप से तीन प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित हैं: कैरीबियाई, प्रशांत, और अटलांटिक, हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर (AIS) क्षेत्र।
  • वर्ष 1992 में पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में, SIDS को उनकी अद्वितीय पर्यावरणीय और विकासात्मक चुनौतियों के कारण औपचारिक रूप से एक विशेष मामले के रूप में मान्यता दी गई थी।

जलवायु परिवर्तन SIDS को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

  • SIDS की बढ़ती संवेदनशीलता: अन्य देशों की तुलना में SIDS को सरकारी राजस्व के सापेक्ष 3-5 गुना अधिक जलवायु-संबंधी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
    • यहाँ तक ​​कि बारबाडोस और बहामास जैसे विकसित SIDS देशों को भी अन्य उच्च आय वाले देशों की तुलना में चार गुना अधिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • 2°C तापमान वृद्धि परिदृश्य के तहत, SIDS के लिये चरम मौसमी घटनाओं से अनुमानित नुकसान वर्ष 2050 तक सालाना 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • प्रत्यक्ष प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसमी घटनाओं से घरों, बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं को काफी नुकसान पहुँचता है, साथ ही जान-माल की हानि भी होती है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2016 में चक्रवात विंस्टन के कारण फिजी में व्यापक बाढ़ आई, जिसके परिणामस्वरूप 44 लोगों की जान चली गई तथा महत्त्वपूर्ण आर्थिक व्यवधान उत्पन्न हुआ।
  • अप्रत्यक्ष प्रभाव: पुनर्प्राप्ति लागत और विपथन संसाधनों के कारण आर्थिक सुधार धीमा हो जाता है, तथा पर्यटन और कृषि जैसे क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
    • आर्थिक विकास में देरी होती है या प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे रिकवरी व्यय बढ़ जाता है तथा आय सृजन कम हो जाता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2016 के चक्रवात के कारण फिजी की GDP वृद्धि 1.4% कम हो गई थी।
    • छोटे द्वीपीय राज्यों को लंबे समय तक वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वसूली लागत राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि कर रही है। हरिकेन मारिया से उबरने के बाद डोमिनिका का ऋण-GDP अनुपात 150% रह गया है।
  • जलवायु परिवर्तन की लागत: वर्ष 2000 और 2020 के बीच, SIDS ने 141 बिलियन अमेरिकी डॉलर या औसतन प्रति व्यक्ति 2,000 अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव अनुभव किया। हालाँकि, कुछ देशों में प्रति व्यक्ति व्यय काफी अधिक है (उदाहरण के लिये डोमिनिका में हरिकेन मारिया के बाद प्रति व्यक्ति 20,000 अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ)।
    • चरम घटना-संबंधी अध्ययनों के अनुसार, कुल नुकसान का 38% जलवायु परिवर्तन के कारण होता है।

छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों पर प्रभाव को कम करने के लिये क्या प्रमुख पहल की गई हैं?

  • छोटे द्वीपीय राज्यों का गठबंधन (AOSIS): यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो छोटे द्वीपीय राष्ट्रों का समर्थन करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीति को प्रभावित करता है।
  • बारबाडोस कार्य योजना: बारबाडोस कार्य योजना (1994), 1994 में बारबाडोस में आयोजित SIDS के सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सम्मेलन में स्थापित, जलवायु परिवर्तन, समुद्र-स्तर में वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तनशीलता के कारण SIDS की विशिष्ट कमज़ोरियों को संबोधित करती है।
  • छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य त्वरित कार्रवाई पद्धति (SAMOA) मार्ग: वर्ष 2014 में छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों पर तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपनाए गए SAMOA मार्ग का उद्देश्य SIDS के समक्ष आने वाली अनूठी चुनौतियों का समाधान करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और जलवायु कार्रवाई के माध्यम से उनके विकास का समर्थन करना है।
  • आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI): CDRI एक वैश्विक साझेदारी है, जिसे वर्ष 2019 में भारत सरकार के नेतृत्व में तथा आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR) के सहयोग से जलवायु और आपदा जोखिमों के लिये अवसंरचना के लचीलेपन तथा सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया है। 
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर रेज़िलिएंस एक्सेलेरेटर फंड (IRAF): UNDP और UNDRR के समर्थन से स्थापित, विकासशील देशों और SIDS पर विशेष रूप से ज़ोर देते हुए, IRAF (50 मिलियन अमेरिकी डॉलर) विकासशील देशों तथा SIDS पर ध्यान केंद्रित करते हुए आपदा रेज़िलिएंस का समर्थन करता है। 
  • SIDS के लिये भारत की सहायता: कुल मिलाकर, भारत ने SIDS को परियोजना सहायता के रूप में 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा रियायती ऋण तथा ऋण शृंखलाओं के रूप में 350 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जबकि इन देशों ने सतत् विकास, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं।

विकसित देशों को भुगतान करने की आवश्यकता क्यों है?

  • वित्तीय उत्तरदायित्व: विकसित, औद्योगिक राष्ट्र, जो ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक हैं, संवेदनशील देशों में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन के वित्तपोषण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी वहन करते हैं।
  • अपर्याप्त वर्तमान वित्तपोषण: वर्तमान वित्तीय वचनबद्धताएँ पहले से हो रहे नुकसान और क्षति के पैमाने को संबोधित करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
    • लॉस एंड डैमेज फंड (हानि एवं क्षति कोष) को प्रतिवर्ष अरबों डॉलर की अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता (विशेष रूप से SIDS जैसे सर्वाधिक असुरक्षित देशों के लिये) होती है।
  • मार्शल प्लान स्केल रेस्पोंस की तात्कालिकता: प्रभावों की गंभीरता को देखते हुए, इस कोष को "मॉडर्न मार्शल प्लान" की महत्वाकांक्षा के साथ डिज़ाइन किया जाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रभावित देशों के पास पुनर्प्राप्ति एवं अनुकूलन के लिये पर्याप्त संसाधन हों।
    • मार्शल प्लान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाली एक पहल थी, जिसने पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिये व्यापक आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे आर्थिक सुधार, राजनीतिक स्थिरता एवं दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा मिला।
  • प्रभावी रूप से कोष का उपयोग: लॉस एंड डैमेज फंड को बजट सहायता तंत्र उपलब्ध कराना चाहिये, कृषि एवं पर्यटन में समय पर सुधार के लिये त्वरित संवितरण सुनिश्चित करना चाहिये, तथा बढ़ते ऋण बोझ से बचने हेतु रियायती वित्त की पेशकश करनी चाहिये।
  • जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफलता: विकसित देश जलवायु वित्त लक्ष्यों और उत्सर्जन में कमी संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहे हैं।
    • SIDS वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 1% से भी कम के लिये ज़िम्मेदार हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
    • चूँकि जलवायु का प्रभाव अधिक गंभीर होता जा रहा है, इसलिये भविष्य के जलवायु वित्त लक्ष्यों को पर्याप्त रूप से महत्वाकांक्षी होना चाहिये ताकि वे SIDS के समक्ष आने वाली चुनौतियों सामना कर सकें।
  • प्रेरित आर्थिक हानि (IELD) और FRLD: चरम मौसमी घटनाओं के कारण अप्रत्यक्ष आर्थिक हानि वर्ष वर्ष 2000 से 2022 तक कुल 107 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही है, जिसमें से 36% जलवायु परिवर्तन के कारण हुई है।
    • हानि और क्षति का प्रत्युत्तर देने के लिये कोष (FRLD) जिसका उद्देश्य सुभेद्य देशों, विशेष रूप से SIDS और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे हानि, क्षति और पुनर्प्राप्ति के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है, को इन अप्रत्यक्ष हानियों का भी समाधान करना चाहिये तथा कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के लिये तेज़ी से पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • राजकोषीय तनाव: 2°C तापमान वृद्धि परिदृश्य के तहत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभावों से संचयी नुकसान वर्ष 2050 तक प्रति वर्ष 75.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
    • विकसित देशों को अपने वित्तीय योगदान को बढ़ाना होगा, तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि SIDS के तात्कालिक प्रभावों तथा दीर्घकालिक आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये धन उपलब्ध हो। 

निष्कर्ष:

UNFCCC COP27 में लॉस एंड डैमेज फंड का निर्माण SIDS के समर्थन हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, विकसित देशों को जलवायु समुत्थान के लिये पर्याप्त संसाधन प्रदान करने हेतु अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहिये, इन सुभेद्य देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रभावों को संबोधित करना चाहिये, जिससे उनका सतत् विकास सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन से निपटने में छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के समक्ष प्रमुख वित्तीय चुनौतियाँ क्या हैं? इन देशों को सहायता देने में अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) 

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल 
(b) UNEP सचिवालय 
(c) UNFCCC सचिवालय 
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)